| शब्द का अर्थ | 
					
				| पृथक्					 : | वि० [सं०√प्रथ् (फेंकना)+अजि, कित्, संप्रसारण] [भाव० पृथक्ता] १. जो प्रस्तुत से संबंधित न हो और उससे अतिरिक्त हो। २. जो अंगों से अलग हो चुका हो। ३. आकार-प्रकार, गुण रूप आदि की दृष्टि से प्रस्तुत से भिन्न प्रकार का। ४. अपने कार्य पद से हटाया हुआ। | 
			
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				| पृथक्करण					 : | पुं० [सं० पृथक्-करण, सुप्सुपा स०] १. पृथक् या अलग करने की क्रिया या भाव। २. किसी पदार्थ को काटकर उसके अंग अलग-अलग करना। ३. एक में मिली हुई बहुत सी वस्तुओं को छाँटकर उनके वर्ग या श्रेणियाँ बनाना। ४. अधिकार, पद आदि से हटाना। | 
			
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				| पृथक्-क्षेत्र					 : | पुं० [सं० ब० स०] एक ही पिता परन्तु विभिन्न माताओं से उत्पन्न भाई और बहन। | 
			
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				| पृथक्ता					 : | स्त्री० [सं० पृथक्+तल्+टाप्] पृथक् होने की अवस्था या भाव। पार्थक्य। | 
			
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				| पृथक्त्व					 : | पुं० [सं० पृथक्+त्व] पृथक् होने की अवस्था या भाव। अलगाव। पार्थक्य। | 
			
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