| शब्द का अर्थ | 
					
				| पेखन					 : | पुं० [सं० प्रेक्षण] १. कतूहलपूर्वक और मनोविनोद के लिए देखी जानेवाली कोई चीज या दृश्य। उदा०—जगुपेखन, तुम देखन हारे।—तुलसी। २. तमाशा। | 
			
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				| पेखना					 : | स० [सं० प्रेक्षण, प्रा० पेक्खण] १. कुतूहलपूर्वक और मनोविनोद के लिए कुछ समय तक देखते रहना। २. अवलोकन करना। देखना। पुं० १. दृश्य। २. तमाशा। उदा०—दिवस चारि कौ पेखना, अंति खेह की खेह।—कबीर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पेखनि					 : | स्त्री० [हिं० पेखना] १. पेखने की क्रिया या भाव। देखना। २. दे० ‘पेखन’। | 
			
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				| पेखनियाँ					 : | वि० [हिं० पेखना] १. पेखनेवाला २. विनोद के लिए तमाशा आदि देखनेवाला। | 
			
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				| पेखनी					 : | स्त्री० [सं० प्रेक्षण, हिं० पेखन] देखने योग्य बढ़िया और विलक्षण चीज या बात। उदा०—नटवरबाजी पेखनी।...कबीर। | 
			
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