| शब्द का अर्थ | 
					
				| प्रकीर्ण					 : | वि० [सं० प्र√कृ+क्त] १. फैला हुआ। विस्तृत। २. इधर-उधर यों ही छितराया या बिखरा हुआ। ३. मिला हुआ। मिश्रित। ४. जिसमें अनेक प्रकार की चीजें मिली हो। (विशेषतः ऐसा आय-व्यय जो किसी एक निश्चित मद में न हो, बल्कि इधर-उधर की फुटकर मदों का हो। (मिस्लेनिअस)। ५. पागल। विक्षिप्त। ६. उच्छृंखल। उद्दंड। ७. क्षुब्ध। पुं० [सं०] १. पुस्तक का अध्याय या प्रकरण। २. फुटकर कविताओं का संग्रह। ३. चँवर। ४. ऐसा करंज जिसमें से दुर्गंध निकलती हो। पूति। करंज। | 
			
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				| प्रकीर्णक					 : | पुं० [सं० प्रकीर्ण+कन्] १. चँवर। २. ग्रंथ का अध्याय या प्रकरण। ३. फैलाव। विस्तार। ४. ऐसा वर्ग या संग्रह जिसमें अनेक प्रकार की ऐसी वस्तुओं का मेल हो जो किसी विशिष्ट वर्ग या शीर्षक में न रखी जा सकती हों। फुटकर। ५. वह छोटा-मोटा पाप जिसके प्रायश्चित का उल्लेख किसी धर्म-ग्रंथ में न हो। | 
			
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				| प्रकीर्णकेशी					 : | स्त्री० [सं० ब० स०+ङीष्] दुर्गा। | 
			
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				| प्रकीर्णन					 : | पुं० [सं०] [भू० कृ० प्रकीर्णत] चीजें इधर-उधर छितराना या बिखेरना। (स्कैटरिंज) | 
			
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