शब्द का अर्थ
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प्रक्ष :
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वि० [सं० प्रच्छक] प्रश्न करनेवाला। पूछनेवाला। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
प्रक्षय :
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पुं० [सं० प्र√क्षि (नाश)+अच्] =क्षय। |
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प्रक्षयण :
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पुं० [सं० प्र√क्षि+ल्युट्—अन] नष्ट या बरबाद करना। |
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प्रक्षर :
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पुं० [सं० प्र√क्षर् (झरना)+अच्] घोड़ों आदि की पक्खर या पांखर। |
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प्रक्षरण :
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पुं० [सं० प्र√क्षर्+ल्युट्—अन] १. चूना। रिसना। २. बहना। |
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प्रक्षालन :
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पुं० [सं० प्र√क्षल्+णिच्+ल्युट्—अन] १. कोई चीज जल से साफ करने की क्रिया। धोना। २. वैज्ञानिक क्षेत्र में जल के संयोग से या विशिष्ट प्रक्रिया से किसी वस्तु में की मैल या अवांछित अंश अलग करना (ब्लीचिंग)। ३. स्वच्छ या निर्मल करना। ४. नहाना। ५. नहाने, कपड़े धोने आदि का जल। |
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प्रक्षालन-गृह :
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पुं० [ष० त०] हाथ-मुँह आदि धोने का कमरा या प्रकोष्ठ। |
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प्रक्षालयिता (तृ) :
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पुं० [सं० प्र√क्षल्+णिच्+क्त] १. धोनेवाला। २. अतिथियों के चरण धोनेवाला। |
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प्रक्षालित :
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भू० कृ० [सं० प्र√क्षल्+णिच्+क्त] १. जिसका प्रक्षालन हुआ हो। २. धोया हुआ। |
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प्रक्षाल्य :
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वि० [सं० प्र√क्षल्+णिच्+यत्] धोये जाने के योग्य। |
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प्रक्षिप्त :
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भू० कृ० [सं० प्र√क्षिप् (फेंकना)+क्त] १. फेंका हुआ। २. अलग, ऊपर या बाहर से लाकर बढ़ाया या मिलाया हुआ। जैसे—तुलसी-कृत रामायण का प्रक्षिप्त अंश। ३. आगे की ओर बढ़ा या निकला हुआ। (प्रॉजेक्टेड) |
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प्रक्षीण :
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वि० [सं० प्रा० स०] जो पूरी तरह से क्षीण, नष्ट या लुप्त हो चुका हो। विनष्ट। पुं० वह स्थल या स्थिति जहाँ पहुँचकर पूर्ण विनाश होता हो। |
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प्रक्षीवित् :
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वि० [सं० प्र√क्षीव् (नशे में होना)+क्त] जो नशे में हो। |
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प्रक्षुण्ण :
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वि० [सं० प्र√क्षुद् (पीसना)+क्त] १. कूटा या पीसा हुआ। २. चूर्ण किया हुआ। ३. उत्तेजित किया हुआ। |
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प्रक्षेप :
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पुं० [सं० प्र√क्षिप्+घञ्] १. आगे की ओर जोर से फेंकना। २. युद्ध में दूरवर्ती शत्रु पर कोई अस्त्र फेंकना। ३. छितराना। बिखेरना। वह जो फेंका या छितराया गया हो। ५. बढ़ाने के लिए इधर-उधर से लाकर कुछ मिलाना। ६. वह अंश जो उक्त प्रकार से मिलाया जाय। ७. वह पदार्थ जो औषध आदि के ऊपर से डाला या मिलाया जाय। ८. किसी कारोबार या व्यापार में लगा हुआ किसी हिस्सेदार का मूल धन। |
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प्रक्षेपक :
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वि० [सं० प्र√क्षिप्+ण्वुल्—अक] प्रक्षेपण करनेवाला। पुं० १. वह यंत्र जिसके द्वारा किसी आकृति या चित्र का प्रतिबिंब सामनेवाले परदे पर डाला जाता है। (प्रोजेक्टर)। २. लिखाई में वह चिह्र जो इस बात का सूचक होता है कि इसके आगे का अंश मूल में नहीं है, बल्कि बाद में किसी ने क्षेपक के रूप में बढ़ाया है। |
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प्रक्षेपण :
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पुं० [सं० प्र√क्षिप्+ल्युट—अन्] १. सामने की ओर कोई चीज फेकने की क्रिया या भाव। २. ऊपर से मिलाना। ३. जहाज आदि चलाना। ४. निश्चित करना। ५. साधारण सीमा या नियमित रेखा से आगे निकालना या बढ़ाना। ६. उक्त प्रकार से निकला या बढ़ा हुआ अंश (प्रोजेक्शन)। |
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प्रक्षेपणीय :
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वि० [सं० प्र√क्षिप्+अनीयर्] प्रक्षेपण के योग्य। |
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प्रक्षोभण :
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पुं० [सं० प्र√क्षुभ् (विचलित होना)+णिच्+ ल्युट्—अन] १. क्षोभ उत्पन्न करने की क्रिया या भाव। २. घबराहट। बेचैनी। |
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