| शब्द का अर्थ | 
					
				| प्रणय					 : | पुं० [सं० प्र√नी (पहुँचना)+अच्] १. प्रेमपूर्वक की जानेवाली प्रार्थना। २. प्रेम विशेषतः ऐसा श्रृंगारिक प्रेम जो साधारण अनुराग या स्नेह से बहुत आगे बढ़ा हुआ होता है। ३. भरोसा। विश्वास। ४. मोक्ष। निर्वाण। ५. श्रद्धा। ६. प्रसव। | 
			
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				| प्रणय-कोप					 : | पुं० [सं० सुप्सुपा स०] परेमियों का एक दूसरे पर बिगड़ना या रोष प्रकट करना। | 
			
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				| प्रणयन					 : | पुं० [सं० प्र√नी+ल्युट्—अन] १. कोई चीज कहीं से ले आना या ले जाकर कहीं पहुँचाना। २. कोई काम पूरा करना। ३. कोई नई चीज बनाकर तैयार करना। रचना। ४. साहित्यिक काव्य, सामने लाना। ६. होम आदि के समय किया जानेवाला अग्नि का एक संस्कार। | 
			
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				| प्रणयमान					 : | पुं० [सं० सुप्सुपा स०] प्रेम में किया जानेवाला मान। रूठना। | 
			
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				| प्रणयिता					 : | स्त्री० [सं० प्रणयिता+तल्,+टाप्] प्रणय-युक्त होने की अवस्था या भाव। अनुरक्ति। | 
			
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				| प्रणयिनी					 : | स्त्री० [सं० प्रणयिन्+ङीप्] पुरुष की दृष्टि से वह स्त्री जिससे वह प्रणय या बहुत अधिक प्रेम करता हो। | 
			
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				| प्रणयी (यिन्)					 : | पुं० [सं० प्रणय+इनि] [स्त्री० प्रणयिनी] वह पुरुष जो किसी स्त्री से प्रेम करता हो। स्त्री का प्रेमी। | 
			
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