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प्रतिंचा  : स्त्री०=प्रत्यंचा (धनुष का डोरा)।
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प्रति  : अव्य० [सं०] १. एक संस्कृत अव्यय जो क्रियाओं और संज्ञाओं से पहले उपसर्ग के रूप में लगकर नीचे लिखे अर्थ देता है—(क) किसी काम या बात के आधार, परिणाम या फलस्वरूप होनेवाला। जैसे—प्रतिक्रिया, प्रतिध्वनि, प्रतिफल। (ख) विपरीत, विरोधी या समानान्तर पक्ष या स्थिति में होनेवाला। जैसे—प्रतिकूल, प्रतिद्वंद्वी, प्रतिवाद, प्रतिक्रिया। (ग) किसी के अनुकरण पर अथवा अनुरूप बनने या होनेवाला। जैसे—प्रतिकृति, प्रतिच्छाया, प्रतिमान, प्रतिमूर्ति, प्रतिलिपि। (घ) आगे या सामने। जैसे—प्रत्यक्ष। (च) अच्छी तरह। भली भाँति। जैसे—प्रतिपादन, प्रतिबोध। (छ) चारों ओर अथवा चारों ओर से। जैसे—प्रतिमंडल, प्रतिरक्षा। (ज) पहले या पूर्व से। जैस—प्रति-नियत। (झ) साधारण या सामान्य। जैसे—प्रति-नियम। (ट) पुनः या फिर। जैसे—प्रतिनिर्देश। (ठ) किसी के अधीन, सहायक अथवा स्थानापन्न रूप से काम करनेवाला। जैस—प्रति-अधीक्षक, प्रति निर्देशन, प्रतिनिधि। (ड) समान। जैसे—प्रतिबल। २. विशुद्ध अव्यय की तरह और स्वतंत्र रूप में प्रयुक्त होने पर यह नीचे लिखे अर्थ देता है—(क) किसी की ओर या दिशा में। (ख) किसी को उद्दिष्ट या लक्षित करते हुए। जैसे—देवता (या पति) के प्रति उसमें यथेष्ट श्रद्धा थी। (ग) कइयों या बहुतों में से हर एक और अलग-अलग। जैसे—प्रति व्यक्ति एक रुपया कर लाया था। स्त्री० १. चित्र, पुस्तक, लेख, सामयिक-पत्र आदि की बहुत सी छपी अथवा लिखी हुई नकलों या प्रतिकृतियों में से हर एक। नकल। (कापी) जैसे—(क) इस पुस्तक के पहले संस्करण की दो हजार प्रतियाँ छपी थीं। (ख) इस चित्र (अथवा लेख) की एक प्रति हमारे लिए भी तैयार करा देना। २. किसी चीज की कोई अनुकृति या नकल। ३. प्रतिबिंब। परछाईं। ४. कोटि। वर्ग। जैसे—उच्च प्रति के लोग।
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प्रतिक  : वि० [सं० कार्षापण+ठिठन्—इक्, प्रति-आदेश] १. जो एक कार्षापण में खरीदा गया हो। २. पुस्तकों आदि की प्रति से सम्बन्ध रखनेवाला। जैसे—पुस्तक का प्रतिक स्वत्व।
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प्रतिकर  : पुं० [सं० प्रति√कृ (फेंकना)+अप्] अपकार, क्षति, हानि आदि के बदले में दिया जानेवाला धन। मुआवजा। (कम्पेन्सेशन)
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प्रतिकरण  : पुं० [सं० प्रति√कृ+ल्युट्—अन] किसी कार्य, उत्तर, प्रतिकार या विरोध में किया जानेवाला कार्य। (काउन्टर एक्शन)
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प्रतिकर्त्ता (तृ)  : वि० [सं० प्रति√कृ+तृच] प्रतिकरण या प्रतिकार करनेवाला।
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प्रतिकर्म (न्)  : पुं० [सं० मध्य० स०] १. वेश। भेस। २. किसी के कर्म के उत्तर में या उसका बदला चुकाने के लिए किया जानेवाला कर्म। प्रतिकार। बदला। ३. शरीर को सजाने-सँवारने के लिए किये जानेवाले अंग-कर्म। श्रृंगार।
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प्रतिकर्मक  : वि० [सं०] प्रतिकर्म करनेवाला।
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प्रतिकर्मक  : पुं० [सं०] रसायन शास्त्र में किसी द्रव्य के अस्तित्व या विद्यमानता की जाँच करने के लिए उसमें मिलाया जानेवाला वह द्रव्य जो पहलेवाले परीक्ष्य द्रव्य में प्रतिक्रिया उत्पन्न करता हो। (रि-एजेन्ट)
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प्रतिकर्ष  : पुं० [सं० प्रति√कृष् (खींचना)+घञ्] १. एकत्र करना। २. संयोग।
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प्रतिकश  : वि० [सं० प्रति√कश् (गति और शासन)+अच्] चाबुक की परवाह न करनेवाला (घोड़ा)।
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प्रतिकष  : पुं० [सं० प्रति√कष् (गति)+अच्] १. नेता। २. सहायक। ३. दूत।
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प्रतिक स्वत्व  : पुं० [सं०] किसी कवि, लेखक, कलाकार आदि की कृति की प्रतियाँ छापने अथवा और किसी प्रकार प्रस्तुत करने का वह स्वत्व जो उसके कर्ता की अनुमति के बिना और किसी को प्राप्त नहीं होता। (कॉपी राइट)
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प्रति-कामिनी  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] सौत। सपत्नी।
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प्रतिकाय  : पुं० [सं० प्रति√चि (चयन करना)+घञ्, कुत्व] १. किसी की काया के अनुरूप बनाई हुई काया। प्रतिमूर्ति। पुतला। २. दुश्मन। शत्रु। ३. लक्ष्य।
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प्रतिकार  : पुं० [सं० प्रति√कृ (करना)+घञ्] १. किसी काम, चीज या बात के बदले में या क्षतिपूर्ति के निमित्त दिया जानेवाला धन। २. किसी काम या बात का बदला चुकाने के लिए किया जानेवाला कार्य। बदला। ३. किसी काम या बात को दबाने, रोकने आदि के लिए किया जानेवाला उपाय या प्रयत्न। (काउन्टर-एक्शन) जैसे—उन्होंने जो यह व्यर्थ का उपद्रव खड़ा कर रखा है, इसका कुछ प्रतिकार होना चाहिए। ४. रोग की चिकित्सा। इलाज।
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प्रतिकारक  : वि० [सं० प्रति√कृ+ण्वुल्—अक] १, किसी प्रकार कि क्रिया या प्रतिकार या विरोध करनेवाला। २. किसी क्रिया के गुण या प्रभाव को नष्ट करनेवाला। मारक। (एन्टीडोट)
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प्रतिकारिक  : वि० [सं० प्रतिकार से] १. प्रतिकार के रूप में होने या उससे संबंध रखनेवाला। २. किसी गुण, परिणाम, प्रभाव आदि के विपरीत होकर उसे निष्फल या व्यर्थ करनेवाला। (काउन्टर-एक्टिव)
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प्रतिकार्य  : वि० [सं० प्रति√कृ+ण्यत् जिसका प्रतिकार किया जा सके या किया जाना चाहिए।
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प्रति-कितव  : [ सं० प्रा० स०] १. वह जुआरी जो किसी दूसरे जुआरी के मुकाबले में जुआ खेलते हो। २. जोड़ीदार।
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प्रतिकुंचित  : पुं० [सं० प्रति√कुंच् (टेढ़ा होना)+क्त] झुका हुआ। टेढ़ा।
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प्रतिकूप  : पुं० [सं० प्रा० स०] परिखा। खाईं।
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प्रतिकूल  : पुं० [सं० ब० स०] नदी का सामनेवाला अर्थात् उस ओर का कूल अर्थात् किनारा या तट। वि० [भाव० प्रतिकूलता] १. जो इस ओर या हमारे पक्ष में नहीं, बल्कि उस, दूरवर्ती या सामनेवाले पक्ष में हो। ‘अनुकूल’ का विपर्याय। २. (व्यक्ति) जो हमसे अलग या दूर रहकर हमारे कामों में बाधक होता हो। ३. (कार्य, वस्तु या स्थिति) जो किसी अन्य कार्य, वस्तु या स्थिति के मार्ग में बाधक होती हो। (एडवर्स) ४. रुचि, वृत्ति, स्वभाव आदि के विरुद्ध पड़ने या होनेवाला। जैसे—यहाँ का जलवायु हमारे लिए प्रतिकूल है। ‘अनुकूल’ का विपर्याय, उक्त सभी अर्थों में।
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प्रतिकूलता  : स्त्री० [सं० प्रतिकूल+तल्+टाप्] १. प्रतिकूल होने की अवस्था, गुण या भाव। विपरीतता। २. विरोध।
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प्रतिकूलत्व  : पुं० [सं० प्रतिकूल+त्व] प्रतिकूलता।
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प्रतिकूला  : स्त्री० [सं० प्रतिकूल+टाप्] सौत। सपत्नी।
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प्रतिकूलाक्षर  : पुं० [सं० प्रतिकूल-अक्षर, ब० स०] साहित्य में किसी प्रसंग के वर्णन में ऐसे खटकनेवाले अक्षरों या वर्णों का प्रयोग जो वस्तुत
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प्रतिकृत  : वि० [सं० प्रति√कृ (करना)+क्त] १. जिसका प्रतिकार हो चुका हो। २. जिसका उत्तर दिया अथवा बदला चुकाया जा चुका हो। ३. जिसके अन्त या विनाश का उपाय किया जा चुका हो।
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प्रतिकृति  : स्त्री० [सं० प्रति√कृ+क्तिन्] १. किसी चीज के आकार-प्रकार आदि के अनुरूप बनी या बनाई हुई वैसी ही दूसरी चीज। जैसे—यह लड़का अपने पिता की प्रतिकृति है। २. प्रतिमा। प्रतिमूर्ति। ३. चित्र। तसवीर। ४. छाया। प्रतिबिंब। ५. प्रतिकार। बदला। ६. पूजा। ७. प्रतिनिधि।
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प्रतिकृत्य  : वि० [सं० प्रति√कृ+क्यप्] १. जिसका प्रतिकार किया जा सकता हो या किया जाने को हो। २. जिसका प्रतिकार करना उचित हो। पुं० ऐसा कार्य जो किसी के विरोध में किया गया हो। प्रतिकार।
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प्रतिकृष्ट  : वि० [सं० प्रति√कृष्+क्त] १. दोबारा जोता हुआ (खेत)। २. जिसका निवारण किया गया हो। ३. छिपा हुआ। ४. तुच्छ। हेय।
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प्रतिक्रम  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. उलटा या विपरीत क्रम। २. प्रतिकूल अथवी विपरीत आचरण या कार्य। वि० जो किसी नियत या मानक क्रम के अनुसार न होकर विपरीत क्रम से बना या लगा हुआ हो।
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प्रतिक्रमात्  : अव्य० [सं० प्रतिक्रम का पञ्चम्यन्त] उल्लिखित, निर्दिष्ट या बताये हुए क्रम के उलटे या विपरीत क्रम से। (वाइस-वर्सा)
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प्रतिक्रांति  : स्त्री० [सं०] किसी क्रांति के बल या वेग के बहुत बढ़ने पर उसे दबाने या रोकने के लिए होनेवाली क्रांति। (काउन्टर रिवोल्यूशन)
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प्रतिक्रिया  : वि० [सं० प्रतिक्रिया से] १. (पदार्थ) जिससे कोई रसायनिक क्रिया हो चुकने पर उसके विपरीत कोई क्रिया उत्पन्न हो। २. कोई क्रिया होने पर उसके फलस्वरूप या विपरीत क्रिया उत्पन्न या सम्पन्न करनेवाला। (रि-एक्टिव)
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प्रतिक्रियक  : वि० दे० ‘प्रतिक्रियावादी’।
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प्रतिक्रिया  : स्त्री० [सं० प्रति√कृ+श, इयङ-देश,+टाप्] १. किसी के किये हुए काम या बात का होनेवाला प्रतिकार। बदला। (रिएक्शन) २. कोई क्रिया या घटना होने पर उसके विपक्ष या विरोध में अथवा उसकी पुनरावृत्ति रोकने के लिए होनेवाली क्रिया या घटना। जैसे—वह दमन की प्रतक्रिया ही थी, जिसने आंदोलन का रूप और भी उग्र कर दिया था। ३. कोई क्रिया होने पर उसकी विपरीत दिशा में आप से आप प्राकृतिक नियमों के अनुसार या स्वाभाविक रूप से होनेवाली क्रिया। जैसे—फेंका हुआ पत्थर जहाँ गिरता है, वहाँ से इसी लिए उछल कर दूर जा पड़ता है कि उस पर आघात की प्रतिक्रिया होती है। ४. किसी काम, चीज या बात के बहुत आगे बढ़ चुकने पर पीछे की ओर अथवा किसी अन्य विपरीत दिशा में होनेवाली उसकी गति या प्रवृत्ति। जैसे—इस थकावट (या शिथिलता) को परिश्रम की प्रतिक्रिया समझना चाहिए। ५. रसायन शास्त्र में, दो या अधिक द्रव्यों का मिश्रण या संयोग होने पर उनमें से किसी पर दूसरे द्रव्य का पड़नेवाला प्रभाव या होनेवाला परिणाम। ६. भौतिक शास्त्र में, एक अवस्था का अन्त होने पर स्वभाविक रूप से दूसरी विपरीत अवस्था का आविर्भाव या संचार। जैसे-बहुत अधिक गरमी के बाद होनेवाली ठंढ़क, या ज्वर उतर जाने पर शरीर का बिलकुल ठंढ़ा हो जाना। ७. प्राचीन संस्कृत साहित्य में (क) परिष्करण या संस्कार। (ख) श्रृंगार या सजावट।
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प्रतिक्रियात्मक  : वि० [सं० प्रतिक्रिया-आत्मन्, ब० स०,+कप्] १. जिसके साथ कोई प्रतिक्रिया लगी हो। या लगी रहती हो। प्रतिक्रिया से युक्त। २. दे० ‘प्रतिक्रियक’।
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प्रतिक्रियावाद  : पुं० [सं० ष० त०] [वि० प्रतिक्रियावादी] यह मत या सिद्धान्त की जो बातें पहले से चली आ रही हैं, उनमें परिवर्तन या सुधार करनेवालों का विरोध करना चाहिए। (रिएक्शनिज़्म)
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प्रतिक्रियावादी (दिन्)  : वि० [सं० प्रतिक्रियावाद+इनि] प्रतिक्रिया वाद-संबंधी। पुं० वह जो प्राचीन मान्यताओं, सिद्धान्त आदि को माननेवाला तथा नवीन मान्यताओं, सिद्धान्तों आदि का विरोधी हो।
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प्रतिक्रोश  : पुं० [सं० प्रति√क्रुश् (आह्वाण)+घञ्] बिक्री का वह प्रकार जिसमें प्रतिस्पर्धा ग्राहकों में से किसी चीज का बढ़-चढ़कर और सबसे अधिक मूल्य लगानेवाले ग्राहक के हाथ चीज बेची जाती है। नीलामी। (ऑक्शन)
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प्रतिक्षय  : पुं० [सं० प्रति√क्षि (ऐश्वर्य)+अच्] अंगरक्षक।
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प्रतिक्षिप्त  : भू० कृ० [सं० प्रति√क्षिप्] (प्रेरणा करना)+क्त] १. किसी के प्रति फेंका हुआ। २. जो अमान्य किया गया हो। ३. बलपूर्वक पीछे की ओर ढकेला या हटाया हुआ। (रिपल्सड)
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प्रतिक्षेप  : पुं० [सं० प्रति√क्षिप् (प्रेरित करना)+घञ्] १. बलपूर्वक पीछे की ओर फेंकना या हटाना। जैसे—आक्रमण करनेवाले शत्रु का प्रतिक्षेप। २. गृहीत, मान्य या स्वीकृत न करना। अग्राह्य, अमान्य या अस्वीकृत करना। ३. अपने अनुकूल न समझकर या अरुचिकर होने पर अलग या दूर करना अथवा हटाना। ४. किसी प्रकार के गुण, प्रकृति आदि का उत्कट विरोध होने के कारण एक तत्त्व या पदार्थ का दूसरे तत्त्व या पदार्थ को दूर हटाना। (रिपल्सन; उक्त सभी अर्थों में) ५. रोकना। ६. तिरस्कार।
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प्रतिक्षेपण  : पुं० [सं० प्रति√क्षिप्+ल्युट्—अन] प्रतिक्षेप करने की क्रिया या भाव।
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प्रतिखुर  : पुं० [सं० प्रा० स०] गर्भ में मरा हुआ बच्चा, जिसके कारण योनिमार्ग अवरुद्ध हो जाता है।
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प्रतिख्यात  : वि० [सं० प्रति√ख्या (कहना)+क्त] [भाव० प्रतिख्याति] जिसकी चारों ओर प्रसिद्धि हो।
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प्रतिगत  : भू० कृ० [सं० प्रति√गम् (जाना)+क्त] १. जो कहीं जाकर लौट या वापस आ गया हो। २. जो पुनः प्राप्त हुआ हो। ३. भूला हुआ। विस्मृत। पुं० पक्षियों की एक प्रकार की उढ़ान।
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प्रतिगमन  : पुं० [सं० प्रति√गम्+ल्युट्—अन] वापस आना। लौटना।
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प्रतिगामी (मिन्)  : पुं० [सं० प्रति√गम् (जाना)+णिनि] [भाव० प्रतिगामिता] दे० ‘प्रतिक्रियावादी’।
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प्रतिगिरि  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. एक पहाड़ के सामनेवाला दूसरा पहाड़। २. वह जो देखने में पहाड़ के समान हो।
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प्रतिगृहीत  : भू० कृ० [सं० प्रति√ग्रह् (ग्रहण करना)+क्त] १. जिसका प्रतिग्रहण हुआ हो। गृहीत या स्वीकृत किया हुआ। २. ब्याहा हुआ। विवाहित।
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प्रतिगृहीता  : स्त्री० [प्रतिगृहीत+टाप्] १. वह स्त्री जिसका पाणिग्रहण किया गया हो। विवाहिता स्त्री। २. धर्पपत्नी।
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प्रतिगृह्य  : वि० [सं० प्रति√ग्रह्+क्यप्]=प्रतिग्राह्य।
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प्रतिग्या  : स्त्री०=प्रतिज्ञा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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प्रतिग्रह  : पुं० [सं० प्रति√गह्+अप्] १. किसी की दी हुई चीज ग्रहण करना। लेना। २. अधिकार या वश में करना। ३. मंजूरी। स्वीकृति। ४. ब्राह्मण का ऐसा दान लेना जो उसे विधिपूर्वक दिया जाय। ५. दान आदि ग्रहण करने का अधिकार। ६. ग्रहण किया हुआ उपहार या भेंट। ७. अभ्यर्थना। ८. सूर्य, चन्द्रमा आदि को लगनेवाला ग्रहण। उपराग। ९. किसी बात का किया जानेवाला प्रतिकार या विरोध। १॰. किसी बात का दिया जानेवाला उत्तर। जवाब। ११. सेना का पिछला भाग। १२. रक्षा पूर्वक रखने के लिए मिली हुई संपत्ति। धरोहर। १३. अभियुक्त या संदिग्ध व्यक्ति का अधिकारियों के हाथ में जाँच या विचार के लिए लिया जाना। (कस्टडी) १४. सिलाई के समय उँगली में पहनने का अंगश्ताना। १५. उगालदान। पीकदान।
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प्रतिग्रहण  : पुं० [सं० प्रति√गह्+ल्युट्—अन] १. विधिपूर्वक दी हुई चीज ग्रहण करना या लेना। प्रतिग्रह। २. दे० ‘प्रतिग्रह’।
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प्रतिग्रही (हिन्)  : वि० [सं० प्रतिग्रह+इनि] प्रतिग्रहण करने या प्रतिग्रह लेनेवाला।
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प्रतिग्रहीता (तृ)  : पुं० [सं० प्रति√गह्+तच्]=प्रतिग्रही।
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प्रतिग्राह  : पुं० [सं० प्रति√गह्+ण] १. प्रतिग्रहण। २. दे० ‘प्रतिग्रह’। ३. उगालदान। पीकदान।
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प्रतिग्राहक  : वि० [सं० प्रति√गह्+ण्वुल्—अक] [स्त्री० प्रतिग्राहिका] प्रतिग्रह या दान लेनेवाला। दी हुई चीज लेनेवाला। पुं० १. दे० ‘आदाता’। २. आज-कल न्यायालय द्वारा नियुक्त वह अधिकारी जो कसी विवादास्पद या ऋण-ग्रस्त संपत्ति आदि की व्यवस्था के लिए नियुक्त किया जाता है। ३. बिजली की सहायता से आई हुई ध्वनियाँ आदि ग्रहण करनेवाले यंत्रों का वह अंग जो उन ध्वनियों को ग्रहण कर उपयोग के लिए सुरक्षित रखता है। (रिसीबर, उक्त दोनों अर्थों के लिए)
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प्रतिग्राह्य  : वि० [सं० प्रति√ग्रह्+ण्यत्] १. जो प्रतिग्रह या दान के रूप में लिया जा सके। २. जो ठीक मानकर गृहीत किया जा सके। स्वीकार्य।
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प्रतिघ  : पुं० [सं० प्रति√हन् (हिंसा)+ड, कुत्व] १. विरोध। २. द्धयु। लड़ाई। ३. शत्रु। ४. क्रोध। गुस्सा। ५. मूर्च्छा।
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प्रतिघात  : स्त्री० [सं० प्रति√हन्+णिचि+अप्] १. वह आघात जो किसी के आघात करने पर किया जाय। २. आघात लगने पर उसके फलस्वरूप आप से आप होनेवाला दूसरा आघात। टक्कर। ३. बाधा। रुकावट।
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प्रतिघातक  : वि० [सं० प्रति√हन्+णिच्+ण्वुल्—अक] प्रतिघात करनेवाला।
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प्रतिघातन  : पुं० [सं० प्रति√हन्+णिच्√ल्युट्—अन] १. प्रतिघात करने की क्रिया या भाव। २. जान से मार डालना। प्राणघात। हत्या। ३. रुकावट। बाधा।
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प्रतिघाती (तिन्)  : वि० [सं० प्रति√हन्+णिच्+णिनि] १. प्रतिघात करनेवाला। २. टक्कर मारने या लेनेवाला। ३. सामने आकर मुकाबला या विरोध करनेवाला। प्रतिद्वंद्वी।
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प्रतिघ्न  : पुं० [सं० प्रति√हन्+क] काया। शरीर।
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प्रतिचार  : पुं० [सं० प्रति√चर् (गति)+घञ्] सजावट करना। अपने आपको सजाना।
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प्रतिचिंतन  : पुं० [सं० प्रति√चित् (स्मरण करना)+ल्युट्—अन] पुनः या फिर से चिंता या विचार करना।
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प्रतिचिकीर्षा  : स्त्री० [सं० प्रति√कृ+सन्+अ,+टाप्] बदला लेने की भावना।
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प्रतिच्छन्न  : भू० कृ० [सं० प्रति√छद् (ढकना)+क्त] १. छाया या ढका हुआ। २. छिपा हुआ।
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प्रतिच्छवि  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] १. प्रतिबिंब। परछाईं। २. चित्र। तसवीर।
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प्रतिच्छा  : स्त्री०=प्रतीक्षा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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प्रतिच्छाया  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] १. परछाईं। प्रतिबिंब। २. पत्थर, मिट्टी आदि की बनी हुई मूर्ति। प्रतिकृति। ३. चित्र। तसवीर।
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प्रतिछाँई  : स्त्री०=परछाईं।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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प्रतिछाँहरी  : स्त्री०=परछाईं।
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प्रतिछाया  : स्त्री०=प्रतिच्छाया (परछाईं)।
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प्रतिजन्म  : पुं० [सं० प्रा० स०] दुबारा होनेवाला जन्म। पुनर्जन्म।
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प्रतिजल्प  : पुं० [सं० प्रति√जल्प् (बोलना)+घञ्] १. किसी के उत्तर में कहीं हुई बात। २. विपरीत या विरुद्ध बात।
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प्रतिजल्पक  : पुं० [सं० प्रति√जल्प्+ण्वुल्—अक] टाल-मटोल करने के लिए दिया जानेवाला उत्तर। वि० किसी के विरुद्ध बोलनेवाला।
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प्रतिजागर  : पुं० [सं० प्रति√जागृ+घञ्] किसी चीज की खूब सचेत होकर देख-रेख करना।
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प्रति-जिह्वा  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] गले के अन्दर की घंटी। छोटी जीभ। कौआ।
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प्रति-जिह्विका  : स्त्री० [सं०]=प्रतिजिह्वा।
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प्रतिजीवन  : पुं० [सं० प्रति√जीव् (जीना)+ल्युट्—अन] पुनः या फिर से मिलने या प्राप्त होनेवाला। जीवन। पुनर्जन्म।
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प्रतिज्ञांतर  : पुं० [सं० प्रतिज्ञा-अंतर, मयू० स०] तर्क में एक प्रकार का निग्रह-स्थान, जिसमें अपनी की हुई प्रतिज्ञा का खंडन होने पर वादी अपने मन से कोई और दृष्टान्त देता हुआ अपनी प्रतिज्ञा में किसी नये धर्म का आरोप करता है। जैसे—यदि कहा जाय, ‘शब्द अनित्य है, क्योंकि वह घट के समान इंद्रियों का विषय है।’ तो उसके उत्तर में यह कहना कि प्रतिज्ञांतर होगा—शब्द नित्य है, क्योंकि वह जाति के समान इन्द्रियों का विषय है।
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प्रतिज्ञा  : स्त्री० [सं० प्रति√ज्ञा (जानना)+अङ्+टाप्] १. किसी बात की जानकारी की दी जानेवाली स्वीकृति। २. कोई बात कह चुकने के बाद अथवा कोई काम कर चुकने के बाद इस बात का किया जानेवाला दृढ़ निश्चय कि भविष्य में पुनः ऐसा काम नहीं करेंगे। ३. कुछ करने या न करने के संबंध में किया जानेवाला दृढ़ निश्चय। मुह०—प्रतिज्ञा पारना=प्रतिज्ञा पूरी करना। उदा०— जन प्रहलाद प्रतिज्ञा पारी।—सूर। ४. किसी प्रकार का कथन या वक्तव्य। ५. किसी के विरुद्ध उपस्थित किया जानेवाला अभियोग। ६. शपथ। सौगंध। ७. न्याय में किसी पक्ष से कही जानेवाली वह बात या उपस्थित किया जानेवाला वह मत जिसे आगे चलकर उसे प्रमाण, युक्ति आदि की सहायता से ठीक सिद्ध करना पड़ता हो। (प्रॉपोज़ीशन) विशेष—यह अनुमान के पाँच अवयवों में से एक माना गया है।
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प्रतिज्ञात  : वि० [सं० प्रति√ज्ञा+क्त] १. घोषित किया हुआ। कहा हुआ। २. जिसके संबंध में प्रतिज्ञा की गई हो। जो प्रतिज्ञा की विषय बन चुका हो। ३. जो किया जा सकता या हो सकता हो। संभव। साध्य।
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प्रतिज्ञान  : पुं० [सं० प्रति√ज्ञा+ल्युट्—अन] १. प्रतिज्ञा। २. किसी बात के संबंध में शपथ या सौगन्ध न खाकर सत्य-निष्ठापूर्वक कोई बात कहना।
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प्रतिज्ञा-पत्र  : पुं० [ष० त०] १. ऐसा पत्र जिस पर कोई की हुई प्रतिज्ञा लिखी हो। २. इकरारनामा।
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प्रतिज्ञापन  : पुं० [सं०] विशेष रूप से जोर देकर कोई बात कहना। (एफरमेशन)
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प्रतिज्ञा-पालन  : पुं० [ष० त०] की हुई प्रतिज्ञा के अनुसार काम करना या चलना।
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प्रतिज्ञा-भंग  : पुं० [ष० त०] प्रतिज्ञा का भंग होना। प्रतिज्ञा के विरुद्ध कार्य कर बैठना, जिससे उस प्रतिज्ञा का महत्त्व समाप्त हो जाता है।
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प्रतिज्ञेय  : वि० [सं० प्रति√ज्ञा+यत्] १. (कार्य या बात) जिसके करने या न करने की प्रतिज्ञा की गई हो या की जाने को हो। २. प्रशंसा या स्तुति करनेवाला। प्रशंसक।
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प्रतितंत्र  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. वह शासन या शासन-प्रणाली जो किसी दूसरे प्रकार के शासन या शासन-प्रणाली के बिलकुल विपरीत हो। २. प्रतिकूल शास्त्र।
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प्रतितंत्र-सिद्धान्त  : पुं० [सं० ष० त०] ऐसा सिद्धांत जो कुछ शास्त्रों में हो तो और कुछ में न हो। जैसे—मीमांस में ‘शब्द’ को नित्य माना जाता है परन्तु न्याय में वह अनित्य माना जाता है; इसलिए यह प्रति-तंत्र सिद्धान्त है।
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प्रति तर  : पुं० [सं० प्रति√तृ (तैरना)+अप्] वह जो उस पार ले जाता हो। मल्लाह। माँझी।
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प्रतिताल  : पुं० [सं० प्रा० स०] संगीत में ताल का एक वर्ग जिसके अन्तर्गत कांतार, समराव्य, वैकुंठ और वांछित ये चारों ताल हैं।
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प्रतितुलन  : पुं० [सं० प्रति√तुल्+ल्युट्—अन] [भू० कृ० प्रतितुलित] १. किसी ओर पड़े या बढ़े हुए भार की तुलना में दूसरी ओर का भार बढ़ाकर दोनों को समान करना। (काउन्टर-बैलेन्स) २. लाक्षणिक अर्थ में, ऐसी स्थिति जिसमें दोनों पक्षौं की शक्ति बराबर-बराबर हो। संतुलन।
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प्रतिदत्त  : भू० कृ० [सं० प्रति√दा (लेना)+क्त] १. प्रतिदान के रूप में अर्थात् किसी चीज के बदले में दिया हुआ। २. लौटाया या वापस किया हुआ।
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प्रतिदान  : पुं० [सं० प्रति√दा+ल्युट्—अन] १. किसी से पाई या ली हुई चीज उसे वापस करना या लौटाना। वापस करना। २. एक चीज लेकर उसके बदले में दूसरी चीज देना। विनिमय। ३. वह चीज जो किसी को किसी दूसरी चीज के बदले में दी गई हो। (रिटर्न)
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प्रतिदूत  : पुं० [सं० प्रा० स०] किसी के यहाँ से दूत आने पर उसके बदले में भेजा जानेवाला दूत।
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प्रतिदेय  : वि० [सं० प्रति√दा+यत्] १. जो लौटाया या वापस किया जाने को हो। २. जिसके बदले में कुछ दिया जाने को हो।
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प्रति-दृष्टांत सम  : पुं० [सं० प्रति-दृष्टांत, प्रा० स०, प्रतिदष्टांत-सम तृ० स०] न्याय में एक प्रकार की जाति।
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प्रतिद्वंद्व  : पुं० [सं० प्रा० स०] दो समान व्यक्तियों या शक्तियों का पारस्परिक विरोध। बराबर वालों का झगड़ा या मुकाबला।
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प्रतिद्वंद्विता  : स्त्री० [सं० प्रतिद्वंद्विन्+तल्+टाप्] प्रतिद्वंद्वी होने की अवस्था या भाव।
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प्रतिद्वंद्वी (द्विन्)  : पुं० [सं० प्रतिद्वंद्व+इनि] [भाव० प्रतिद्वंद्विता] १. वह व्यक्ति या वस्तु जो किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु के मुकाबले की हो अथवा जिससे उसका मुकाबला हो। २. एक व्यक्ति की दृष्टि से वह दूसरा व्यक्ति जो उसी की तरह किसी एक-ही पद का उम्मीदवार हो अथवा किसी एक ही वस्तु को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हो।
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प्रतिधान  : पुं० [सं० प्रति√धा (धारण)+ल्युट्—अन] १. कहीं धरना या रखना। २. लौटाना। ३. निराकरण।
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प्रतिध्रुव  : पुं० [सं०] भूगोल में किसी देश या स्थान के विचार से वह देश या स्थान जो उससे १८0० देशांतर पर स्थित हो।
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प्रतिध्वनि  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] १. किसी तल या रचना से परावर्तित होकर सुनाई पड़नेवाली ध्वनि-तरंगे। गूँज। प्रति-शब्द। २. उक्त के आधार पर लाक्षणिक रूप में दूसरे के विचारों आदि का कुछ परिवर्तित रूप में इस प्रकार दोहराया जाना कि उनमें से मूल विचारों की ध्वनि या छाया निकलती हो। (ईको, उक्त दोनों अर्थों में)
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प्रतिध्वनिक  : वि० [सं० प्रतिध्वनि से] प्रतिध्वनि-संबंधी। प्रतिध्वनि का।
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प्रतिध्वनिक शब्द  : पुं० [सं० प्रतिध्वनि से] भाषा विज्ञान में, कोई ऐसा निरर्थक शब्द जो प्रायः बोल-चाल में किसी शब्द के अनुकरण पर ठीक उसके अनुरूप बना लिया जाता है। (ईको वर्ड) जैसे—कुछ काम करो तो पैसा-वैसा मिले। में ‘वैसा’ निरर्थक शब्द ‘पैसा’ का प्रतिध्वनिक शब्द है।
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प्रतिध्वनित  : भू० कृ० [सं० प्रति√ध्वन् (शब्द)+क्त] जो प्रतिध्वनि के रूप में शब्द करता हो। गूँजा हुआ।
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प्रतिध्वान  : पुं० [सं० प्रति√ध्वन्+घञ्]=प्रतिध्वनि।
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प्रतिनंदन  : पुं० [सं० प्रति√नन्द् (प्रशंसा करना)+ल्युट्—अन] वह अभिनन्दन जो आशीर्वाद देते हुए किया जाय। बधाई देनेवाले के प्रति प्रकट की जानेवाली शुभ कामना।
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प्रतिनप्ता (प्तृ)  : पुं० [सं० प्रा० स०] प्रपौत्र। परपोता।
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प्रतिना  : स्त्री०=पृतना।
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प्रतिनाद  : पुं० [सं० प्रति√नद्+घञ्]=प्रतिध्वनि।
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प्रतिनायक  : पुं० [सं० प्रा० स०] नाटकों, काव्यों आदि में वह पात्र जो नायक का प्रतिद्वंद्वी हो या नायक से प्रतिद्वंद्विता होती हो।
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प्रतिनाह  : पुं० [सं० प्रति√नह् (बाँधना)+घञ्] एक प्रकार को रोग जिसमें नाक के नथनों में कफ रुकने से श्वास चलना बन्द हो जाता है।
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प्रति-निचयन  : पुं० [सं० प्रति-नि√चि+ल्युट्—अन] [भू० कृ० प्रतिनिचित] कहीं से आया या किसी का दिया हुआ देय। शुल्क आदि उचित से अधिक या अनियमित होने पर उसे दाता को लौटाना या उसके खते में जमा करना। (रिफन्ड)
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प्रतिनिधान  : पुं० [सं० प्रति-नि√धा+ल्युट्—अन] १. दे० ‘शिष्ट-मण्डल’। २. वह व्यक्ति या व्यक्तियों का दल जो इस प्रकार प्रतिनिधि बनकर कहीं भेजा जाय। प्रतिनिधि मण्डल। (डेपुटेशन)
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प्रतिनिधि  : पुं० [सं० प्रति-नि√धा (धारण)+कि] १. प्रतिमा। प्रतिमूर्ति। २. वह व्यक्ति जो दूसरों की ओर से कहीं भेजा जाय अथवा उनकी तरफ से कार्य करता हो। अभिकर्ता। ३. संसद, विधान-सभा आदि का वह सदस्य जो किसी निर्वाचन-क्षेत्र से चुना गया हो, और जिसे उस क्षेत्र के लोगों की ओर से बोलने तथा काम करने का अधिकार होता है। ४. वह जिसे देखकर उसी के वर्ग, जाति आदि के औरों के स्वरूप रंग-ढंग, आचार-विचार आदि का अनुमान या कल्पना की जा सके। ५. वह जो अपने वर्ग के औरों की जगह काम आ सके। (रिप्रेजेंटेटिव; उक्त चारों अर्थों के लिए) ६. दे० ‘प्रतिनिधि द्रव्य’
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प्रतिनिधित्व  : पुं० [सं० प्रतिनिधि+त्व] प्रतिनिधि होने की अवस्था या भाव। प्रतिनिधि होने का काम। (रिप्रेजेंटेशन)
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प्रतिनिधि-द्रव्य  : पुं० [सं० मध्य० स०] वैद्यक में, वह औषध जो किसी अन्य औषध के अभाव में दी जाती हो। जैसे—चित्रक के अभाव में दंती, तगर के अभाव में कुंठ, नखी के अभाव में लौंग दिया जाना।
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प्रतिनिधि-शासन  : पुं० [सं० ष० त०] वह शासन जिसमें विधान आदि बनाने और शासन की नीति आदि स्थिर करने के प्रायः सभी अधिकार जनता को चुने हुए प्रतिनिधियों के हाथ में रहते हैं। (रिप्रेजेंटेटिव गवर्नमेंट)
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प्रतिनियम  : पुं० [सं० प्रति-नि√यम्+अप्] सामान्य नियम या व्यवस्था।
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प्रतिनियुक्त  : वि० [सं० प्रति-नि√युज् (जोड़ना)+क्त] प्रतिनिधि या अधीनस्थ अधिकारी के रूप में बनकर कहीं भेजा हुआ। (डेप्यूटेड)
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प्रतिनियोजन  : पुं० [सं० प्रति-नि√युज्+ल्युट्—अन] किसी को कहीं भेजने के लिए अधीनस्थ कर्मचारी के रूप में नियुक्त करना। (डिप्यूटेशन)
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प्रतिनिर्देश  : पुं० [सं० प्रति-निर्√दिश् (बताना)+घञ्] पुनः उल्लेख या कथन करना।
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प्रतिनिर्देश्य  : वि० [सं० प्रति-निर्√दिश्+ण्युत्] जिसका पुनः कथन या निर्देशन करना आवश्यक या उचित हो अथवा किया जाने को हो।
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प्रति-निर्वतन  : पुं० [सं० प्रति-नि√यत् (प्रयत्न)+णिच्+ल्युट्—अन्] [भू० कृ० प्रतिनिवर्तित] १. लोटाना। २. बदला लेना।
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प्रतिनिविष्ट  : वि० [सं० प्रति-नि√निश् (घुसना)+क्त] जो दृढ़ हो गया हो।
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प्रतिपक्ष  : पुं० [प्रा० स०] १. मुकाबले का या विरोध पक्ष। अन्य या दूसरा पक्ष। २. दूसरे या विरोधी की कही हुई बात या उसके द्वारा उपस्थित किया हुआ मत या विचार। ३. [ब० स०] प्रतिवादी। ४. शत्रु। वैरी। ५. [प्रा० स०] बराबरी। समानता।
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प्रतिपक्षता  : स्त्री० [सं० प्रतिपक्ष+तल्—टाप्] १. प्रतिपक्षी होने की अवस्था या भाव। २. विरोध।
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प्रतिपक्षी(क्षिन्)  : वि० [सं० प्रतिपक्ष+इनि] १. दूसरे या विरोधी पक्ष में रहनेवाला। २. वह जो विरोधी पक्ष में रहकर सदा हानि पहुँचाने का प्रयत्न करता हो। (हॉस्टाइल)
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प्रतिपक्षीय  : वि०=प्रतिपक्षी।
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प्रतिपच्छ  : पुं०=प्रतिपक्ष।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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प्रतिपच्छी  : पुं० प्रतिपक्षी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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प्रतिपत्  : स्त्री०=प्रतिपद्।
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प्रतिपत्ति  : स्त्री० [सं० प्रति√पद् (गति)+क्तिन्] १. प्राप्ति। पाना। २. ज्ञान। ३. अनुमान। ४. दान देना। ५. कार्य के रूप में लाना। कार्यान्वित या प्रतिपादन। ७. कोई बात अच्छी तरह और प्रमापूर्वक कहते हुए किसी के मन में बैठना। ८. उक्त प्रकार से कही हुई बात मान लेना। ग्रहण। स्वीकार। ९. मान-मर्यादा। गौरव। प्रतिष्ठा। १॰. शक्तिमत्ता आदि की धाक या साख। ११. आदर-सत्कार। १२. प्रवृत्ति। १३. दृढ़ निश्चय या विचार। १५. परिणाम। नतीजा।
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प्रतिपत्ति-कर्म (न्)  : पुं० [ष० त०] १. श्राद्ध आदि में, वह कर्म जो सब के अन्त में किया जाय। २. अन्त या समाप्ति के समय किया जाने वाला काम।
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प्रतिपत्तिमान् (मत्)  : वि० [सं० प्रतिपत्ति+मतुप्] १. [स्त्री० प्रतिपत्तिमती] २. बुद्धिमान। ३. प्रसिद्ध। ४. कार्यकुशल।
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प्रतिपत्ति-मूढ़  : वि०=किंकर्तव्य-विमूढ़।
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प्रतिपत्र-फला  : स्त्री० [सं० ब० स०] करेली।
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प्रतिपद्  : स्त्री० [सं० प्रति√पद् (गति)+क्विप्] १. मार्ग। रास्ता। २. आरम्भ। ३. बुद्धि। समझ। ४. पंक्ति। श्रेणी। ५. पुरानी चाल का एक प्रकार का ढोल। ६. चांद्र मास के प्रत्येक पक्ष की पहली तिथि। प्रतिपदा।
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प्रतिपद  : स्त्री० [सं०] एकम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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प्रतिपन्न  : वि० [सं० प्रति√पद्+क्त] १. अवगत। जाना हुआ। २. अंगीकृत। स्वीकृत। ३. प्रचंड। ४. प्रमाणित। निरूपित। ५. भरा-पूरा। ६. शरणागत। ७. सम्मानित। ८. प्राप्त।
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प्रतिपन्नक  : पुं० [सं० प्रतिपन्न+कन्] बौद्ध शास्त्रों के अनुसार श्रोतापन्न, सकृदागामी, अनागामी, और अर्हत् ये चार पद।
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प्रतिपन्नत्व  : पुं० [सं० प्रतिपन्न+त्व] प्रतिपन्न होने की अवस्था या भाव।
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प्रति-परीक्षण  : पुं० [सं० प्रा० स०] न्यायालय आदि में, किसी के कुछ कह चुकने पर उससे दबी-दबाई बातों का पता लगाने के लिए उससे कुछ और प्रश्न करना। (क्रास-इग्ज़ामिनेशन)
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प्रतिपर्ण  : पुं० [सं० प्रा० स०] दो टुकड़ोंवाली पावती या रसीद, प्रमाण-पत्र आदि में का वह टुकड़ा जो देनेवाले के पास रह जाता है और जिस पर किसी को दिये हुए दूसरे टुकड़े की प्रतिलिपि रहती है। (काउन्टर फॉयल)
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प्रतिपाण  : पुं० [सं० प्रति√पण् (शर्त रखना)+घञ्] वह धन जो दाँव पर प्रतिपक्षी ने लगाया हो।
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प्रतिपादक  : वि० [सं० प्रति√पद्+णिच्+ण्वुल्—अक] १. प्रतिपादन करनेवाला। २. प्रतिपन्न करनेवाला। ३. उत्पादन करनेवाला। ४. निर्वाह करनेवाला।
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प्रतिपादन  : पुं० [सं० प्रति√पद्+णिच्+ल्युट्—अन] १. भली भाँति ज्ञान कराना। अच्छी तरह समझाना। प्रतिपत्ति। २. प्रमाण देते हुए कोई बात कहना या सिद्ध करना। निरूपण। निष्पादन। ३. प्रमाण। सबूत। ४. उत्पत्ति। जन्म। ५. दान। ६. इनाम। पुरस्कार।
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प्रतिपादयिता (तृ)  : वि० [सं० प्रति√पद्+णिच्+तृच्] प्रतिपादन करने अर्थात् अच्छी तरह बतलाने-समझानेवाला। पुं० १. शिक्षक। २. व्याख्याकार।
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प्रतिपादित  : भू० कृ० [सं० प्रति√पद्+णिच्+क्त] १. जिसका प्रतिपादन हो चुका हो। २. निर्धारित। निश्चित। ३. जो दिया जा चुका हो। दत्त।
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प्रतिपाद्य  : वि० [सं० प्रति√पद्+णिच्+यत्] १. जिसका प्रतिपादन किया जा सकता हो या किया जाने को हो। २. जो दिया जा सकता हो या दिया जाने को हो।
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प्रति-पाप  : पुं० [सं० प्रा० स०] वह कठोर और पाप-रूप व्यवहार जो किसी पापी के साथ किया जाय।
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प्रतिपार  : वि०, पुं०=प्रतिपाल।
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प्रतिपारना  : स०=प्रतिपालना।
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प्रतिपाल  : वि० [सं० प्रति√पाल् (रक्षा करना)+णिच्+अच्] १. प्रतिपालन करनेवाला। प्रतिपालक। २. रक्षा करनेवाला। रक्षक। पुं० १. रक्षा। २. सहायता।
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प्रतिपालक  : वि० [सं० प्रति√पाल्+णिच्+ण्वुल्—अक] [स्त्री० प्रतिपालिका] १. पालन-पोषण करनेवाला। पोषक २. रक्षक। पुं० राजा।
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प्रतिपालक-अधिकरण  : पुं० [सं० कर्म० स०] वह राजकीय अधिकरण या विभाग जो ऐसे लोगों की संपत्ति की व्यवस्था करता है जो अल्पवयस्क, बौद्धिक दृष्टि से अयोग्य अथवा शारीरिक दृष्टि से असमर्थ हों। (कोर्ट ऑफ वार्डस्)
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प्रतिपालन  : पुं० [सं० प्रति√पाल्+णिच्+ल्युट्—अन्] [भू० कृ० प्रतिपालित] १. दूसरों से रक्षित रखते हुए किसी का किया जानेवाला पालन। २. आज्ञा, आदेश आदि का कर्तव्यपूर्वक किया जानेवाला पालन। ३. देख-रेख। निगरानी। रक्षण।
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प्रतिपालना  : सं० [स० प्रतिपालन] १. प्रतिपालन करना। २. भरण-पोषण और रक्षा करना। ३. आज्ञा, आदेश आदि का निर्वाह करना।
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प्रतिपालनीय  : वि० [सं० प्रति√पाल्+णिच्+अनीयर्] जिसका प्रतिपालन करना आवश्यक या उचित हो।
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प्रतिपालित  : भू० कृ० [सं० प्रति√पाल्+णिच्+क्त] [स्त्री० प्रतिपालिता] १. जिसका प्रतिपालन किया गया हो या हुआ हो। २. अपनी देख-रेख में पाला-पोसा हुआ। ३. (आज्ञा, आदेश आदि) जिसके अनुसार आचरण किया गया हो।
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प्रतिपाल्य  : वि० [सं० प्रति√पाल्+णिच्+ल्युट्+यत्] १. प्रतिपालन किये जाने के योग्य। २. जिसका प्रतिपालन किया जा सकता हो। ३. जिसका पालन और रक्षा करना उचित हो। रक्षणीय।
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प्रतिपीडन  : पुं० [सं० प्रति√पीड् (कष्ट पहुँचाना)+ल्युट्—अन्] [भू० कृ० प्रतिपीडित] पीडित करनेवाले को पीड़ा पहुँचाना। (रिप्राइज़ल)
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प्रतिपुरुष  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. वह पुरुष जो किसी दूसरे पुरुष के स्थान पर उसका प्रतिनिधि या स्थानापन्न होकर काम करता हो। प्रतिनिधि। २. बराबर या जोड़ का व्यक्ति। ३. वह पुतला जिसे चोर किसी घर में घुसने से पहले यह जानने के लिए अंदर फेंकते थे कि लोग सोये हैं या जागते।
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प्रतिपुरुष-पत्र  : पुं० [ष० त०] वह पत्र जिसके द्वारा किसी व्यक्ति को किसी के बदले कुछ काम करने, मत देने आदि का अधिकार दिया जाता है। (प्रॉक्सी)
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प्रतिपूजक  : वि० [सं० प्रति√पूज् (पूजा करना) णिच्+ल्युट्—अक] प्रतिपूजन अर्थात् अभिवादन करनेवाला। अभिवादक।
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प्रतिपूजन  : पुं० [सं० प्रति√पूज्+णिच्+ल्युट्—अन] १. अभिवादन। साहब-सलामत। २. पारस्परिक किया जानेवाला अभिवादन। अभिवादन का आदान-प्रदान।
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प्रतिपूजा  : स्त्री० [सं० प्रति√पूज्+अ+टाप्] प्रतिपूजन। (दे०)
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प्रतिपूजित  : भू० कृ० [सं० प्रति√पूज्+णिच्+क्त] १. जिसका प्रतिपूजन का अभिवादन किया गया हो। अभिवादित। २. (व्यक्ति) जिसके साथ आदरपूर्वक व्यवहार किया गया हो। सम्मानित।
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प्रतिपूज्य  : वि० [सं० प्रति√पूज्+ण्यत्] जिसका प्रतिपूजन या अभिवादन करना आवश्यक हो। अभिवाद्य।
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प्रतिमूर्ति  : स्त्री० [सं० प्रति√पृ+क्तिन] किसी व्यक्ति या मद से लिया हुआ या लेकर व्यय किया हुआ धन उसे देकर या उसमें जमाकर उस की पूर्ति करना। (रि-इम्बार्समेन्ट)
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प्रतिपोषक  : वि० [सं० प्रति√पुष्+ल्युट्—अन] [भू० कृ० प्रतिपोषित] सहायता। मदद।
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प्रति-पौतिक  : वि० [सं० प्रा० स०] जो पूति (सड़ायँध आदि) का नाश करनेवाला हो। पूतिका-मारक। (एन्टिसेप्टिक)
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प्रतिप्रभा  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] १. प्रतिबिंब। २. परछाईं। छाया।
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प्रतिप्रसव  : पुं० [सं० प्रति-प्र√सू (उत्पन्न करना)+अप्] ऐसा तथ्य या बात जो किसी सामान्य नियम के अपवाद का भी अपवाद हो। (काउन्टर-एक्सेपशन्)
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प्रति-प्रसूत  : वि० [सं० प्रति-प्र√सू+क्त] १. प्रतिप्रसव-संबंधी। २. प्रतिप्रसव के रूप में होनेवाला।
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प्रति-प्राकार  : पुं० [सं० प्रा० स०] दुर्ग के बाहर की ओर का प्राकार। बाहरी परकोटा।
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प्रति-प्राप्ति  : स्त्री० [सं०] [भू० कृ० प्रतिप्राप्त] १. पुनः प्राप्त करने या होने की अवस्था या भाव। २. किसी के हाथ में गई हुई अथवा अधिकार से निकली हुई चीज से प्राप्त करना। (रिकवरी)
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प्रतिफल  : पुं० [सं० प्रति√फल् (फलना)+अच्] १. चीज या फल के रूप में होनेवाली वह प्राप्ति जो किसी को कोई काम करने के बदले में, अथवा कोई काम करने के परिणामस्वरूप होती है। किसी काम या बात के पहले में या परिणाम के रूप में प्राप्त होनेवाला फल। २. परिणाम। नतीजा। ३. प्रतिबिंब।
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प्रतिफलक  : पुं० [सं० प्रतिफल+णिच्+ण्वुल्—अक] १. वह फलक जिसकी सहायता से किसी चीज की पड़नेवाली परछाईं दूसरी ओर या दूसरी चीज पर परावर्तित की जाती है।
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प्रतिफलित  : भू० कृ० [सं० प्रति√फल्+क्त] १. जो प्रतिफल के रूप में हो। २. जो प्रतिफल दे रहा हो। ३. जिसका प्रतिफल मिल रहा हो। ४. प्रतिबिंबित।
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प्रतिबंध  : पुं० [सं० प्रति√बन्ध् (बाँधना)+घञ्] १. वह बंधन या रोक जो किसी काम बात या व्यक्ति पर लगाई गई हो। २. विशेषतः ऐसी आज्ञा, आदेश या सूचना जो किसी बात को कोई प्रायिक, स्वाभाविक या अधिकृत आचरण, व्यवहार आदि करने से पहले ही रोकने के लिए दी गई हो। मनाही। (रेस्ट्रिक्शन) ३. किसी काम या बात में लगाई हुई शर्त। पण। (कन्डिशन) ४. निश्चय, विधि आदि में पड़नेवाली कठिनता से बचने के लिए निकाला हुआ ऐसा मार्ग या निश्चित किया हुआ विधान जिसके साथ कोई शर्त भी लगी हो। उपबंध। (प्राविजो) जैसे—परन्तु प्रतिबंध यह है कि...।
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प्रतिबंधक  : वि० [सं० प्रति√बन्ध्+ण्वुल्—अक] १. प्रतिबंध लगाने वाला। मनाही करनेवाला। २. रुकावट डालनेवाला। बाधक। पुं० पेड़। वृक्ष।
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प्रतिबंधकता  : स्त्री० [सं० प्रतिबंधक+तल्+टाप्] १. प्रतिबंधक होने की अवस्था या भाव। २. प्रतिबंध। रुकावट। बाधा। विघ्न।
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प्रतिबंधि  : स्त्री० [सं० प्रति√बन्ध्+इन्] १. ऐसा तर्क या दलील जो दोनों पक्षों पर समान रूप से घटती या लागू होती हो। २. आपत्ति।
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प्रतिबंधु  : पुं० [सं० प्रा० स०] वह जो समान पद या पदवीवाला हो।
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प्रतिबद्ध  : भू० कृ० [सं० प्रति√बन्ध्+क्त] १. बँधा हुआ। २. जिसके सम्बन्ध में कोई प्रतिबंध या रुकावट लगी हो। ३. जिसके मार्ग में बाधा खड़ी की गई हो। ४. नियंत्रित। ५. जो इस प्रकार किसी से संबद्ध हो कि उससे अलग न किया जा सके।
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प्रति-बल  : वि० [सं० ब० स०] १. समर्थ। सशक्त। २. बल या शक्ति में बराबरी का। सम-बल।
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प्रतिबाधक  : वि० [सं० प्रति√बाध् (रोकना)+ण्वुल्—अक] १. बाधा खड़ी करनेवाला। बाधक। २. रोकने या रुकावट खड़ी करनेवाला। ३. कष्ट पहुँचाने या पीड़ा देनेवाला।
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प्रतिबाधन  : पुं० [सं० प्रति√बाध्+ल्युट्—अन] [भू० कृ० प्रतिबाधित] १. विघ्न। बाधा। २. कष्ट। पीड़ा।
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प्रतिबाधित  : भू० कृ० [सं० प्रति√बाध्+क्त] १. जिसके लिए किसी प्रकार की बाधा या रुकावट खड़ी की गई हो। २. हटाया हुआ। निवारित। ३. पीड़ित।
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प्रतिबाधी (धिन्)  : वि० [सं० प्रति√बाध्+णिनि] १. रोकनेवाला २. बाधा डालनेवाला। ३. कष्ट पहुँचानेवाला। ४. विरोध करनेवाला। पुं० वैरी। शत्रु।
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प्रतिबाहु  : पुं० [सं० अत्या० स०] १. बाँह का अगला भाग। २. ज्यामिति में; वर्गिक क्षेत्र में किसी एक बाहु की दृष्टि से उसकी सामनेवाली बाहु। ३. पुराणानुसार श्वफल्क के एक पुत्र और अक्रूर के भाई का नाम।
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प्रतिबिंब  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. किसी पारदर्शक तल में किसी वस्तु की दिखलाई पड़नेवाली आकृति। परछाई। प्रतिच्छाया। जैसे—जल में दिखाई देनेवाला चंद्रमा का प्रतिबिंब, शीशे में दिखाई पड़नेवाला मुख का प्रतिबिम्ब। २. छाया। ३. मूर्ति। ४. चित्र। ५. शीशा। झलक।
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प्रतिबिंबक  : वि० [सं० प्रतिबिंब+कन्] परछाई के समान पीछे-पीछे चलनेवाला। पुं० अनुगामी। अनुचर।
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प्रतिबिंबन  : पुं० [सं० प्रतिबिंब+क्विप्+ल्युट्—अन] १. छाया या परछाईं डालना या पड़ना। २. अनुकरण। ३. तुलना।
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प्रतिबिंबना  : अ० [सं० प्रतिबिंबन] प्रतिबिंबित होना। स० प्रतिबिंबित करना।
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प्रतिबिंबवाद  : पुं० [सं० ष० त०] वेदांत का एक सिद्धान्त जिसमें यह माना जाता है कि जीव वास्तव में ईश्वर का प्रतिबिंब मात्र है।
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प्रतिबिंबवादी (दिन्)  : पुं० [सं० प्रतिबिंबवाद+इनि] प्रतिबिंबवाद का अनुयायी या समर्थक।
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प्रतिबिंबित  : भू० कृ० [सं० प्रतिबिंब+इतच्] १. जिसका प्रतिबिंब पड़ता हो। जिसकी परछाईं पड़ती हो। २. जो परछाईं के कारण दिखाई देता या होता हो। कुछ-कुछ या अस्पष्ट रूप से दिखाई देनेवाला। झलकता हुआ।
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प्रतिबीज  : वि० [सं० ब० स०] १. जिसका बीज नष्ट हो गया हो। २. जिसकी उत्पन्न करने की शक्ति नष्ट हो गई हो। निर्बीज। पुं० मरा या सड़ा हुआ हुआ बीज।
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प्रतिबुद्ध  : वि० [सं० प्रति√बुध् (जानना)+क्त] १. जिसे प्रतिबोध मिला हो या हुआ हो। २. जागा हुआ। ३. चतुर। होशियार। ४. प्रसिद्ध।। मशहूर। ५. उन्नत
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प्रतिबुद्धि  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] १. प्रतिबुद्ध होने की अवस्था या भाव। २. विपरीत बुद्धि।
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प्रतिबोध  : पुं० [सं० प्रति√बुध्+घञ्] १. जागरण। जागना। २. ज्ञान। ३. चातुर्य। होशियारी।
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प्रतिबोधक  : वि० [सं० प्रत्ति√बुध्+णिच्+ण्वुल्—अक] १. प्रतिबोध करानेवाला। २. जगानेवाला। ३. ज्ञान उत्पन्न करनेवाला। ४. शिक्षा देनेवाला। ५. तिरस्कार करनेवाला। पुं० अध्यापक। शिक्षक।
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प्रतिबोधन  : पुं० [सं० प्रति√बुध्+णिच्+ल्युट्—अन] १. जगाना। २. ज्ञान उत्पन्न करना।
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प्रतिबोधित  : भू० कृ० [सं० प्रति√बुध्+णिच्+क्त] १. जगाया हुआ। २. जिसे किसी बात का ज्ञान या प्रतिबोध कराया गया हो।
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प्रतिबोधी (धिन्)  : वि० [सं० प्रति√बुध्+णिनि] १. जागता हुआ। २. जो शीघ्र ही ज्ञान प्राप्त करने को हो।
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प्रतिभट  : पुं० [सं० प्रा० स०] [भाव० प्रतिभटता] १. बराबर का योद्घा। समान शक्तिवाला योद्धा। २. वह जिससे मुकाबला या लड़ाई होती हो। प्रतिद्वन्द्वी। ३. वैरी। शत्रु। ४. विपक्षी दल का सैनिक।
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प्रतिभय  : वि० [ब० स०] भयंकर। पुं० [प्रा० स०] भय। डर।
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प्रतिभा  : स्त्री० [सं० प्रति√भा (दीप्ति)+अङ्+टाप्] १. ऊपर या सामने दिखाई देनेवाली आकृति या रूप। २. प्रकाश। ३. चमक। ४. ऐसी प्राकृतिक बुद्धि या मानसिक शक्ति जिसमें असाधारण तीव्रता या प्रखरता हो; और जिसके फल-स्वरूप मनुष्य अपनी कल्पना के द्वारा कला, विज्ञान, साहित्य, आदि के क्षेत्रों में उच्च कोटि की बिलकुल नई या मौलिक तथा रचनात्मक कृतियों को प्रस्तुत करने में समर्थ होता है। असाधारण बुद्धि-बल। (जीनियस)
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प्रतिभाग  : पुं० [सं० प्रा० स०] [वि० प्रातिभागिक] १. प्राचीन काल का एक प्रकार का राजकर। २. आज-कल वह शुल्क जो राज्य में बनाने वाले कुछ विशिष्ट पदार्थों (यथा—नमक, मादक, द्रव्य, दीया-सलाई कपड़ों आदि) पर उनके बनते ही और बाजार में बिक्री के लिए जाने से पहले ही ले लिया जाता है। उत्पादनकर। (एक्साइज़ ड्यूटी)
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प्रतिभागिक  : वि०=प्रतिभागिक।
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प्रतिभात  : वि० [सं० प्रति√भा+क्त] १. प्रभायुक्त। चमकदार। २. जाना हुआ। ज्ञात। ३. सामने आया हुआ। ४. प्रतीत।
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प्रतिभान  : पुं० [सं० प्रति√भा+ल्युट्—अन] १. प्रभा। चमक। २. बुद्धि। समझ। ३. उपस्थित बुद्धि। ४. विश्वास। ५. प्रगल्भता।
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प्रतिभान्वित  : वि० [सं० प्रतिभा-अन्वित, तृ० त०] जिसमें प्रतिभा हो। असाधारण बुद्धिवाला। प्रतिभाशाली।
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प्रतिभाव  : पुं० [सं०] १. किसी भाव के प्रतिकूल या विरुद्ध पड़नेवाला भाव। २. प्रतिच्छाया। परछाईं।
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प्रतिभावान् (वत्)  : वि० [सं० प्रतिभा+मतुप् ] १. प्रतिभाशाली। २. दीप्तिमान्। चमकीला।
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प्रतिभाव्य  : वि० [सं० प्रति√भू (होना)+णिच्+यत्] (अपराधी या अभियुक्त) जो निर्णय काल तक के लिए छुड़ाय़ा जा सकता हो। जिसकी जमानत हो सकती हो। (वेलेबुल)
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प्रतिभाशाली (लिन्)  : वि० [सं० प्रतिभा√शाल्+णिनि] [स्त्री० प्रतिभाशाली] १. जिसमें प्रतिभा हो। प्रभावशाली।
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प्रतिभाषा  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] १. उत्तर। जवाब। २. उत्तर मिलने पर दिया जानेवाला उसका दूसरा उत्तर। प्रत्युत्तर।
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प्रतिभास  : पुं० [सं० प्रति√भास् (चमकना)+घञ्] १. आकस्मिक रूप से या एकाएक होनेवाला ज्ञान या बोध। २. यों ही या ऊपर से देखने पर होनेवाला भ्रम। ३. भ्रम। ४. आकृति।
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प्रतिभासन  : पुं० [सं० प्रति√भास्+ल्युट्—अन्] [भू० कृ० प्रतिभासित] १. चमकना। २. दिखाई देना। ३. भासित होना। जान पड़ना।
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प्रतिभिन्न  : भू० कृ० [सं० प्रति√भिद् (फाड़ना)+क्त] १. जिसका भेदन किया गया हो। २. जो अलग हो गया हो। विभक्त।
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प्रतिभू  : पुं० [सं० प्रति√भू+क्विप्] १. वह व्यक्ति जो ऋण देनेवाले (उत्तमर्ण) के सामने ऋण लेनेवाले (अधमर्ण) की जमानत करता हो। जामिन। २. वह जो किसी की किसी तरह की जमानत दे। जमानतदार। जामिन। ३.प्रतिभूति। (दे०)
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प्रतिभूत  : भू० कृ० [सं० प्रति√भू+क्त] १. (व्यक्ति) जिसकी जमानत की गई हो। २. (धन) जो जमानत के रूप में जमा किया गया हो। ३. (संपत्ति) जो जमानत या रहने के रूप में किसी को दी या सौंपी गई हो। (प्लेज्ड)
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प्रतिभूति  : स्त्री० [सं० प्रति√भू+क्तिन्] १. कोई काम या वचन पूरा करने आदि के लिए दिया गया निश्चित आश्वासन या उसके बदले जमा की गई वस्तु या धन। मुचलका। (सिक्योरिटी) २. ऋण आदि के प्रमाण-स्वरूप जारी किया गया सरकारी कागज। साख-पत्र। ३. प्रतिभू के द्वारा दी हुई जमानत। (बेल)
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प्रतिभू-पत्र  : पुं० [सं० ष० त०] वह पत्र जिसमें कोई प्रतिभू या जमानतदार अपने उत्तरदायित्व की स्वीकृति लिखकर देता है। (बांड आफ श्योरिटी)
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प्रतिभेद  : पुं० [सं० प्रति√भिद्+घञ्] १. प्रभेद। अन्तर। फरक। २. विभाग। ३. भेद या रहस्य प्रकट करना या खोलना।
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प्रतिभेदन  : पुं० [सं० प्रति√भिद्+ल्युट्—अन] १. प्रतिभेद या अन्तर उत्पन्न करना। २. विभाग करना। विभाजन। ३. बंद करना।
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प्रतिभोग  : पुं० [सं० प्रति√भुज् (भोगना)+घञ्] उपभोग।
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प्रतिभोजन  : पुं० [सं० प्रा० स०] चिकित्साशास्त्र में, किसी के लिए या कुछ विशिष्ट स्थितियों के विचार से या निर्दिष्ट किया हुआ भोजन। (प्रेस्क्राइब्ड डायट)
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प्रतिभौ  : पुं० [सं० देप्रति+भाव] शरीर का तेज और बल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) उदा०—हा जदुनाथ, जरा तनु ग्रास्यौ। प्रतिभौ उतरि गयो।—सूर।
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प्रतिमंडल  : पुं० [सं० प्रा० स०] ग्रह, नक्षत्र आदि के चारों ओर का घेरा। परिवेश। भा-मंडल।
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प्रतिमंडित  : भू० कृ० [सं० प्रति√मंड् (अलंकृत करना)+क्त] सजाया हुआ। अलंकृत।
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प्रतिमंत्रण  : पुं० [सं० प्रति√मंत्र् (गुप्त भाषण करना)+ल्युट्—अन] १. अभिमन्त्रण। २. उत्तर। जवाब।
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प्रतिमंत्रित  : भू० कृ० [सं० प्रति√मंत्र्+क्त] १. मन्त्र द्वारा पवित्र किया हुआ। अभिमंत्रित। २. जिसका जवाब दिया जा चुका हो। उत्तरित।
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प्रतिमर्श  : पुं० [सं० प्रति√मृश् (छूना)+घञ्] एक तरह का चूर्ण।
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प्रतिमा  : स्त्री० [सं० प्रति√मा (मापना)+अङ्+टाप्] १. किसी की वास्तविक अथवा कल्पित आकृति के अनुसार बनाई हुई मूर्ति या चित्र। अनुकृति। २. आराधन, पूजन आदि के लिए धातु, पत्थर मिट्टी आदि की बनाई हुई देवता या देवी की मूर्ति। देव-मूर्ति। ३. प्रतिबिंब। परछाईं। ४. साहित्य में एक अलंकार जिससे किसी मुख्य पदार्थ या व्यक्ति के न होने की दशा में उसी के समान किसी दूसरे पदार्थ या व्यक्ति की स्थापना का उल्लेख होता है। ५. हाथियों के दांतों पर जड़ा जानेवाला पीतल, ताँबे आदि का छल्ला या मंडल। ६. तौलने का बटखरा। बाट।
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प्रतिमान  : पुं० [सं० प्रति√मा+ल्युट्—अन] १. समान मानवाली मुकाबले की दूसरी वस्तु। २. वह वस्तु या रचना जिसे आदर्श मानकर उसके अनुरूप और वस्तुएँ बनाई जाती हों। (मॉडल) ३. वह अच्छी और बढ़िया चीज जो पहले एक बार नमूने के तौर पर बनाकर रख ली जाती है और तब उसी के अनुरूप या वैसी ही चीजें बनाकर तैयार की जाती हैं। (पैटर्न) ४. उदाहरण। दृष्टांत।
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प्रतिमानीकरण  : पुं० [सं०] १. प्रतिमान के रूप में लाने की प्रक्रिया या भाव। २. दे० ‘मानकीकरण’।
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प्रतिमाला  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] स्मरणशक्ति का परिचय देने के लिए दो आदमियों का एक दूसरे के बाद लगातर एक ही तरह के अथवा एक दूसरे के बाद लगातार एक ही तरह के अलावा एक दूसरे के जोड़ के श्लोक या पद पढ़ना।
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प्रतिमावली  : स्त्री० [सं०] दे० ‘मूर्तिविधान’।
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प्रतिमित  : भू० कृ० [सं० प्रति√मा+क्त] १. जिसका प्रतिबिंब पड़ा हो। प्रतिबिंबित। २. अनुकृत। ३. जिसकी तुलना की गई हो।
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प्रतिमुक्त  : वि० [सं० प्रति√मुच् (छोड़ना)+क्त] १. पहना हुआ (कपड़ा या गहना)। २. छोड़ा या त्यागा हुआ। परित्यक्त। ३. खुला हुआ। मुक्त।
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प्रतिमुख  : वि० [सं० प्रा० स०] मुकाबले या सामने का। जैसे—प्रतिमुख वायु। पुं० १. मुख के पीछेवाला भाग। पीठ। २. दे० ‘प्रतिमुख सन्धि’।
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प्रतिमुख सन्धि  : स्त्री० [सं० मयू० स०] साहित्य में, रूपक (नाटक) की पाँच प्रकार की सन्धियों में से दूसरी सन्धि जिसमें ‘विन्दु’ नामक अर्थ नामक अर्थ-प्रकृति और ‘प्रयत्न’ नामक अवस्था का मिश्रण होता है। मुख-सन्धि में जो बीज बोया जाता है, उसके विकास का आरंभ इसी में दिखाई देता है। विलास, परिसर्प, विद्युत्, तपन, नर्म, नर्मद्युति, प्रगमन, विरोध, पर्यपासुन, पुप्प, वज्र, उपन्यास और वर्ण-संहार इसके १३ अंग कहे गये हैं जो प्रायः प्रयोग में नहीं लाये जाते।
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प्रतिमुद्रण  : पुं० [सं० प्रा० स०] [भू० कृ० स०] १. खुदी या लिखी हुई आकृति, लेख आदि पर से उसकी यथा-तथ्य प्रतिलिपि उतारने या छापने की क्रिया या भाव। २. उक्त प्रकार से ज्यों की त्यों उतारी या छापी हुई प्रति। जैसे—शिलालेख या हस्तरेखा का प्रति-मुद्रण।
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प्रतिमुद्रांकन  : पुं० [सं० प्रा० स०] [भू० कृ० प्रतिमुद्रांकित] १. जिस पर पहले किसी अधीनस्थ अधिकारी का मुद्रांकन हो चुका हो या मुहर लग चुकी हो उस पर किसी बड़े अधिकारी का अपनी स्वीकृति या सहमति सूचित करने के लिए अपनी मोहर भी लगाना। २. उक्त प्रकार से किया हुआ मुद्रांकन या लगाई हुई मोहर। (काउन्टर-सील)
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प्रतिमुद्रा  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] १. मुद्रण से ली जानेवाली छाप। २. मुद्रा (अँगूठी या मोहर) से ली जानेवाली छाप।
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प्रतिमूर्ति  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] किसी की आकृति को देखकर उसके अनुरूप बनाई हुई मूर्ति या चित्र आदि। प्रतिमा।
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प्रतिमूल्य  : पुं० [सं०] किसी काम, चीज या बात के बदले में दिया जानेवाला धन। मुआवजा। (कम्पेसेशन)
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प्रतिमोक्ष  : पुं० [सं० प्रा० स०] मोक्ष की प्राप्ति।
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प्रतिमोचन  : पुं० [सं० प्रति√मुच् (खोलना)+ल्युट्—अन] बंधन से मुक्त करना। छुड़ाना। मोचन।
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प्रतियत्न  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. लालच। प्राप्ति या लाभ की इच्छा। २. उपग्रह। ३. कैदी। ४. संस्कार।
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प्रतियाग  : पुं० [सं० प्रा० स०] विशेष उद्देश्य से किया जानेवाला यज्ञ।
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प्रतियातन  : पुं० [सं० प्रति√यत्+णिच्+ल्युट्—अन] १. प्रतिकार। २. प्रतिशोध। बदला।
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प्रतियातना  : स्त्री० [सं० प्रति√यत्+णिच्+युच्—अन, टाप्] प्रतिमा। मूर्ति।
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प्रतियान  : पुं० [सं० प्रति√या (जाना)+ल्युट्—अन] वापस आना। लौटना।
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प्रतियुत  : भू० कृ० [सं० प्रति√यु (मिश्रित होना)+क्त] बँधा हुआ।
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प्रतियुद्ध  : पुं० [सं० प्रा० स०] बराबरवालों का या बराबरी का युद्ध।
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प्रतियोग  : पुं० [सं० प्रति√युज् (जोड़ना)+घञ्] १. किसी चीज का विरोध पक्ष बनाना या तैयार करना। २. दो विरोधी तत्त्वों, पदार्थों आदि का होनेवाला मिश्रण या संयोग। ३. विरोधी तत्त्व या भाव। ४. किसी बात या मत का खण्डन। ५. किसी व्यक्ति का विरोधी। ६. वैर। शत्रुता। ७. किसी चीज, बात का परिणाम या प्रभाव नष्ट करनेवाला कार्य या तत्त्व। मारक। ८. एक बार विफल होने पर फिर से किया जानेवाला उद्योग या प्रयत्न।
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प्रतियोगिता  : स्त्री० [सं० प्रतियोगिन्+तल्—टाप्] १. वह स्थिति जिसमें कोई व्यक्ति किसी चीज को ठीक समय से प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हों। २. दुश्मनी। शत्रुता। ३. किसी विशिष्ट उद्देश्य की सिद्धि या फल की प्राप्ति के लिए कुछ लोगों में आपस में होनेवाली चढ़ा-ऊफरी या होड़। मुकाबला। (कम्पीटीशन)
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प्रतियोगी (गिन्)  : पुं० [सं० प्रति√युज्+घिनुण्] १. उन कई व्यक्तियों में से हर एक जो किसी एक ही चीज को पाने के लिए किसी एक समय में समान रूप से प्रयत्नशील हों। प्रतियोगिता करनेवाला व्यक्ति। २. साझेदार। हिस्सेदार। ३. वह जो मुकाबला या सामना कर रहा हो। वैरी शत्रु। ४. विरोधी। ५. मददगार। सहायक। ६. संगी। साथी। ७. वह जो तुलना आदि के विचार से बराबरी का हो। जोड़ीदार।
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प्रतियोद्धा (द्धृ)  : पुं० [सं० प्रति√युध् (लड़ाई करना)+तृच्] १. बराबरी का या मुकाबले में रहकर युद्ध करनेवाला। २. विरोधी। ३. शत्रु। दुश्मन।
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प्रतिरक्षा  : स्त्री० [सं० प्रति√रक्ष्+अ—टाप्] १. रक्षण। हिफाजत। २. आज-कल, राजनीतिक, सामाजिक आदि क्षेत्रों में किसी के आक्रमण से अपनी रक्षा करने का कार्य या व्यवस्था। ३. विधिक क्षेत्र में, अपने ऊपर लगे हुए अभियोग से अपना बचाव करने या अपनी निर्दोषिता दिखाने का प्रयत्न। सफाई। (डिफेन्स)
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प्रतिरथ  : पुं० [सं० ब० स०] १. बराबरी का लड़नेवाला योद्धा या रथी। २. वह जो मुकाबला करे। प्रतिद्वंद्वी।
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प्रतिरव  : पुं० [सं० प्रति√रु (शब्द)+अप्] १. विवाद। झगड़ा। २. प्रतिध्वनि। गूँज।
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प्रतिरुद्ध  : वि० [सं० प्रति√रुध् (रुकना)+क्त] १. जिसका प्रतिरोध हुआ हो। २. रुका हुआ। अवरुद्ध। ३. अटका या फँसा हुआ।
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प्रतिरूप  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. प्रतिमा। मूर्ति। २. चित्र। तस्वीर। ३. प्रतिनिधि। ४. एकदानव (महाभारत)। वि० नकली। जाली। (काउन्टरफीट)
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प्रतिरूपक  : पुं० [सं० प्रतिरूप+कन्] वह जो नकली या बनावटी चीजें विशेषतः सिक्के, नोट आदि बनाता हो। (काउन्टरफीटर)
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प्रतिरोद्धा (द्ध)  : वि० [सं० प्रति√रुध्+तृच्] १. प्रतिरोध करनेवाला। विरोधी। २. बाधा डालनेवाला। बाधक। ३. शत्रुता करनेवाला।
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प्रतिरोध  : पुं० [सं० प्रति√रुध्+घञ्] १. अड़चन। बाधा। रुकावट २. शत्रु के गढ़, सेना आदि के चारों ओर डाला जानेवाला घेरा। ३. आवेग, आक्रमण आदि को रोकने के लिए किया जानेवाला कार्य। ४. छिपाव। दुराव। ५. विरोध। ६. चोरी, डाका आदि दुष्कृत्व। ७. तिरस्कार। प्रतिबिंब। परछाईं।
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प्रतिरोधक  : वि० [सं० प्रति√रुध्+ण्वुल्—अक] [स्त्री० प्रतिरोधिका] प्रतिरोध करनेवाला। रोकने या बाधा डालनेवाला। पुं० चोर, ठग, डाकू आदि जो शान्तिपूर्वक जीवन बिताने में बाधक होते हैं।
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प्रतिरोधन  : पुं० [सं० प्रति√रुध्+ल्युट्—अन] प्रतिरोध करने की क्रिया या भाव।
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प्रतिरोधित  : भू० कृ० [सं० प्रति√रुध्+णिच्+क्त] १. जो रोका गया हो। २. जिसमें बाधा डाली गई हो।
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प्रतिलंभ  : पुं० [सं० प्रति√लभ् (प्राप्ति)+अप्, मुम्] १. बुरी चाल। कुरीति। २. किसी पर लगाया जानेवाला अभियोग, कलंक या दोष। ३. निंदा। बुराई। ४. प्राप्ति। लाभ।
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प्रतिलब्धि  : स्त्री० [सं० प्रति√लभ्+क्तिन] प्रतिप्राप्ति। (दे०)
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प्रतिलाभ  : पुं० [सं० प्रति√लभ्+घञ्] १. प्रति-प्राप्ति। (दे०) २. शालक राग का एक भेद।
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प्रतिलिपि  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] मूल लेख, पत्र आदि की ज्यों का त्यों और अक्षरशः तैयार की हुई नकल। (कॉपी)
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प्रतिलिपिक  : पुं० [सं० प्रा० स०] वह जो मूल लेखों, पत्रों आदि की प्रतिलिपियाँ तैयार करने का काम करता हो। (कापीइस्ट)
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प्रतिलिपित  : भू० कृ० [सं० प्रतिलिपि+णिच्+क्त] (पत्र-लेख आदि) जिसकी प्रतिलिपि तैयार हो चुकी हो।
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प्रतिलिप्त  : वि०=प्रतिलिपित।
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प्रतिलेखक  : पुं० [सं० प्रति√लिख्+ण्वुल्—अक] प्रतिलेख का काम करनेवाला लेखक।
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प्रतिलेखन  : पुं० [सं० प्रति√लिख+ल्युट्—अन] [भू० कृ० प्रतिलिखित] १. किसी लिखी हुई चीज की ज्यों की त्यों नकल उतारने या उसी तरह लिखने की क्रिया या भाव। २. भाषण, संकेत-लिपि आदि की टिप्पणियों के आधार पर पढ़ने योग्य लिखित प्रति तैयार करना। (ट्रान्सक्रिप्शन)
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प्रतिलोम  : वि० [सं० प्रा० स०] १. जो प्राकृतिक या प्रसम क्रम के ठीक विपरीत हो। उलटा। विपरीत। ‘अनुलोम’ या विपर्याय। जैसे—१,२,३,४ आदि का क्रम अनुलोम और ४,३,२,१ का क्रम प्रतिलोम कहलायेगा। (कानवर्स) २. तुच्छ और नीच।
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प्रतिलोमक  : पुं० [सं० प्रतिलोम+कन्] उलटा या विरीत क्रम। वि०=प्रतिलोम।
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प्रतिलोमज  : पुं० [सं० प्रतिलोम√जन् (उत्पन्न होना)+ड] १. वह जिसकी उत्पत्ति प्रतिलोम-विवाह (देखें) के फलस्वरूप हुई हो। २. वर्ण-संकर।
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प्रतिलोमतः  : अव्य० [सं० प्रतिलोम+तस्] प्रतिलोम अर्थात् उलटे क्रम से।
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प्रतिलोम विवाह  : पुं० [सं० कर्म० स०] वह विवाह जिसमें पुरुष छोटे वर्ण का और स्त्री उच्च वर्ण की हो। विशेष—शास्त्रों में उच्च वर्ण के पुरुष को तो छोटे या नीचे वर्ण की स्त्री के साथ विवाह करना विहित माना गया है, पर इसके विपरीत रूप का विवाह वर्जित है।
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प्रतिवक्ता (क्तृ)  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. वह जो किसी की बात का उत्तर दे। २. कानून या विधान की व्याख्या करनेवाला व्यक्ति।
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प्रतिवचन  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. उत्तर। जवाब। २. प्रतिध्वनि। गूँज।
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प्रतिवर्णिक  : वि० [सं० प्रति-वर्ण, प्रा० स०,+ठन्—इक] १. एक ही जैसे रंगवाला। २. समान। सदृश।
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प्रतिवर्तन  : पुं० [सं० प्रति√वृत् (बरतना)+ल्युट्—अन] १. वापस आना या होना। लौटना। २. वापस करना। लौटाना। ३. किसी प्रकार के आचरण या व्यवहार के बदले में किया जानेवाला वैसा ही दूसरा आचरण या व्यवहार। उदा०—दोनों का समुचित प्रतिवर्तन जीवन में शुद्ध विकास हुआ।—प्रसाद। ४. पिछली या पुरानी घटनाओं, तथ्यों आदि को फिर से देखना या विचार करना। अनुदर्शन। सिंहावलोकन। (रिट्रास्पेक्शन)
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प्रतिवर्ती (तिन्)  : वि० [सं० प्रति√वृत्+णिनि] [स्त्री० प्रति वर्तिनी] १. पीछे की ओर घूमने, मुड़ने या लौटानेवाला। २. वापस होने या लौटानेवाला। ३. जो किसी के प्रति उसके द्वारा किये हुए आचरण के अनुसार व्यवहार करता हो। ४. जिसका संबंध पिछली या बीती हुई घटनाओं या भूत काल से भी हो। (रिट्रास्पेक्टिव) जैसे—वेतन-वृद्धि के इस निश्चय का प्रभाव इस वर्ष के लिए प्रतिवर्ती भी होगा (अर्थात् इस वर्ष के जो महीने बीत चुके हैं, उनके वेतन में इसी प्रकार की वृद्धि होगी।)
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प्रतिवस्तु  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] १. वह जो रूप आदि में किसी वस्तु के तुल्य हो। दूसरी सदृश् वस्तु। २. किसी वस्तु के बदले में दी जानेवाली वस्तु। ३. उपनाम।
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प्रतिवस्तूपमा  : स्त्री० [सं० प्रतिवस्तु-उपमा, ष० त०] साहित्य में, एक प्रकार का अलंकार जिसे कुछ लोग ‘उपमा’ अलंकार के अंतर्गत और कुछ लोग उसके पृथक् स्वतंत्र अलंकार मानते हैं। इस काव्यालंकार के प्रत्येक वाक्यार्थ में उपमा अर्थात् साधर्म्य का उल्लेख होता है अथवा एक ही साधारण धर्म का उपमान-वाक्य में भी और उपमेय-वाक्य में भी समान रूप से कथन होता है। जैसे—मैं तुम्हारे मुख पर अनुरक्त हूँ, चकोर चंद्रमा पर ही अनुरक्त होता है। विशेष—दृष्टांत और प्रतिवस्तूपमा अलंकारों का अन्तर जानने के लिए। दें० ‘दृष्टांत’ (अलंकार) का विशेष।
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प्रतिवहन  : पुं० [सं० प्रति√वह् (ढोना)+ल्युट्—अन] पीछे की ओर या विपरीत दिशा में ले जाने की क्रिया या भाव।
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प्रतिवाक्य  : पुं० [सं० प्रा० स०] प्रतिवचन। (दे०)
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प्रतिवाणी  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] १. कोई शब्द सुनकर उसके उत्तर में कही जानेवाली उसी तरह की दूसरी बात। २. जवाब का जवाब। प्रत्युत्तर।
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प्रतिवाद  : पुं० [सं० प्रति√वद् (बोलना)+घञ्] १. किसी बात के विरुद्ध कही जानेवाली बात। २. विशेषतः ऐसा कथन या वक्तव्य जो किसी के द्वारा उपस्थित किये हुए तर्क, लगाये गये अभियोग आदि का खण्डन करने तथा उसे मिथ्या सिद्ध करने के लिए दिया जाता है। ३. विवाद। बहस। ४. उत्तर। जवाब।
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प्रतिवादक  : वि० [सं० प्रति√वद्+णिच्+ण्वुल्—अक] प्रतिवाद करने वाला। जो प्रतिवाद करे।
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प्रतिवादिता  : स्त्री० [सं० प्रतिवादिन्+तल्—टाप्] १. प्रतिवाद करने की क्रिया या भाव। २. प्रतिवादी होने की अवस्था, धर्म या भाव।
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प्रतिवादी (दिन्)  : वि० [सं० प्रति√वद्+णिनि] १. प्रतिवाद-संबंधी। प्रतिवादक। २. (व्यक्ति या वस्तु) जो किसी का प्रतिवाद करता हो अथवा जिससे प्रतिवाद होता हो। ३. तर्क-वितर्क या वाद-विवाद करनेवाला। ४. प्रतिपक्षी। पुं० १. वह जो दूसरों द्वारा लगाये गये अभियोगों आदि का उत्तर दे। २. विधिक क्षेत्र में, वह जिसके संबंध में वादी ने न्यायालय में कोई अभियोग या वाद उपस्थित किया हो और जिसका उत्तर देने के लिए वह न्यायतः बाध्य हो। मुद्दालेह।
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प्रतिवाप  : पुं० [सं० प्रति√वप् (काटना)+घञ्] १. ओषधियों का वह चूर्ण जो किसी काढ़े आदि में डाला जाय। चूर्ण। बुकनी। ३. वैद्यक में धातुओं को भस्म करने की क्रिया या भाव।
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प्रतिवारण  : पुं० [सं० प्रति√वृ (रोकना)+णिच्+ल्युट्—अन] [भू० कृ० प्रतिवारित] १. मना करना। रोकना। २. चेतावनी।
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प्रतिवारित  : भू० कृ० [सं० प्रति√वृ+णिच्+क्त] १. रोका हुआ। २. जिसे चेतवानी दी गई हो।
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प्रतिवार्ता  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] किसी की बात का दिया जानेवाला उत्तर।
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प्रतिवास  : पुं० [सं० प्रति√वास् (सुगंधित् करना)+घञ्] १. सुगंधि। सुवास। खुशबू। २. समीप रहना। पास या बगल में रहना। ३. प्रतिवेश। पड़ोस।
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प्रतिवासिता  : स्त्री० [सं० प्रतिवासिन्+तल्—टाप्] प्रतिवासी अर्थात् पड़ोसी होने की अवस्था, धर्म या भाव।
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प्रतिवासी (सिन्)  : पुं० [सं० प्रति√वस्+णिनि] प्रतिवास अर्थात् पड़ोस में रहनेवाला व्यक्ति। पड़ोसी। प्रति-वासुदेव
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प्रतिविधान  : पुं० [सं० प्रति-वि√धा (धारण करना)+ल्युट्—अन] १. प्रतिकार। २. धर्म-शास्त्र में वह कृत्य जो किसी अन्य कृत्य के बदले में किया जाता है।
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प्रतिविधि  : स्त्री० [सं० प्रति-वि√धा+कि] १. प्रतिकार। २. ऐसा काम या बात जिससे किसी प्रकार की क्षति, दोष आदि का प्रतिमार्जन हो। (रेमेडी)
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प्रतिविधिक  : वि० [सं० प्रतिविधि] प्रतिविधि (उपचार या प्रतिकार) के रूप में किया हुआ अथवा होनेवाला। (रेमीडिएल)
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प्रतिविष  : पुं० [सं० ब० स०] विष का प्रभाव नष्ट करनेवाला पदार्थ। वि० विष का मारक।
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प्रतिवीर्य  : पुं० [सं० ब० स०] वह जिसमें प्रतिरोध करने का यथेष्ट बल या शक्ति हो।
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प्रतिवेदन  : पुं० [सं० प्रति√विद् (जानना)+ल्युट्—अन] [भू० कृ० प्रतिवेदित] १. प्रार्थना। २. किसी कार्य, घटना, तथ्य, योजना आदि के संबंध में छान-बीन, पूछ-ताछ आदि करने के उपरांत तैयार किया हुआ विवरण जो किसी बड़े अधिकारी के पास भेजा जाता है। (रिपोर्ट)
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प्रतिवेदित  : भू० कृ० [सं० प्रति√विद्+णिच्+क्त] १. प्रार्थित। २. जिसके संबंध में प्रतिवेदन तैयार करके बड़े अधिकारी के पास भेजा जा चुका हो। (रिपोर्टेड)
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प्रतिवेदी (दिन्)  : पुं० [सं० प्रति√विद्+णिच्+णिनि] १. वह जो प्रतिवेदन तैयार करता हो। २. वह जो समाचार-पत्रों में छपने के लिए समाचार लिखकर भेजता हो। (रिपोर्टर) वि० प्रतिवेदन-संबंधी।
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प्रतिवेश  : पुं० [सं० प्रति√विश्+घञ्] १. अपने घर के अगल-बगल या आस-पास का स्थान। पड़ोस। २. घर के आस-पास या सामने के मकान। पड़ोस। ३. किसी के अगल-बगल या आस-पास में रहने की अवस्था या भाव।
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प्रतिवेशी (शिन्)  : पुं० [सं० प्रतिवेश+इनि] प्रतिवेश अर्थात् पड़ोस में रहनेवाला व्यक्ति। पड़ोसी।
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प्रतिवेश्म  : पुं० [सं० प्रा० स०] पड़ोस या पड़ोसी अर्थात् पड़ोस का घर।
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प्रतिवेश्य  : पुं० [सं० प्रतिवेश+यत्] पड़ोसी।
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प्रतिवैर  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. वैर के बदले में किया जानेवाला वैर। २. वैर का प्रतिकार।
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प्रतिव्यूह  : पुं० [सं० प्रा० स०] शत्रु के विरुद्ध की जानेवाली व्यूह-रचना या मोर्चेबंदी।
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प्रतिशंका  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] १. किसी शंका के उत्तर में की जाने वाली दूसरी शंका। २. ऐसी शंका जो बराबर बनी रहे।
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प्रतिशत  : अव्य० [सं० अव्य० स०] हर सैकड़े के हिसाब से। हर सौ पर। फी सदी। (पर सेन्ट)
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प्रतिशतक  : पुं० [सं०] वह अनुपात जो प्रति सैकड़े के हिसाब से ठीक किया गया हो। सौ के हिसाब से लगाया जानेवाला लेखा या बैठाया जानेवाला पड़ता। (परसेन्टेज)
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प्रतिशब्द  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. पर्याय। २. प्रतिध्वनि। गूँज।
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प्रतिशयन  : पुं० [सं० प्रति√शी (सोना)+ल्युट्—अन्] किसा मनोरथ की सिद्धि के लिए किसी देवता के समक्ष निराहार पड़े रहने की अवस्था या भाव। धरना।
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प्रतिशयित  : भू० कृ० [सं० प्रति√शी (सोना)+क्त] जो प्रतिशयन कर रहा हो या धरना दे रहा हो।
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प्रतिशासन  : पुं० [सं० प्रति√शास् (शासन करना)+ल्युट्—अन] १. किसी को बुलाकर किसी काम के लिए कहीं भेजना। २. ऐसा शासन जिसमें शासक कोई वैरी या शत्रु हो।
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प्रतिशिष्य  : पुं० [सं० अव्या० स०] शिष्य का शिष्य।
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प्रतिशीत  : वि० [सं० प्रति√श्या (गति)+क्त] १. पिघला हुआ। २. तरल। चूता हुआ।
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प्रतिशोध  : पुं० [सं० प्रा० स०] किसी के द्वारा कोई अनिष्ट होने पर उसके बदले में उसके साथ किया जानेवाला वैसा ही अनिष्ट व्यवहार। बदला। प्रतिकार। (रिवेंज)
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प्रतिश्या  : स्त्री० [सं० प्रति√श्यै+अङ्—टाप्] प्रतिश्याय।
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प्रतिश्यान  : पुं० [सं० प्रति√श्यै+अन]=प्रतिश्याय।
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प्रतिश्याय  : पुं० [सं० प्रति√श्यै+घञ्] १. जुकाम या सरदी नामक रोग। २. पीनस नामक रोग।
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प्रतिश्रम  : पुं० [सं० प्रति√श्रम् (आयास)+घञ्] परिश्रम। मेहनत।
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प्रतिश्रय  : पुं० [सं० प्रति√श्रि+अच्] १. आश्रम। २. सभा। ३. जगह। स्थान। ४. निवास-स्थान। ५. यज्ञशाला।
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प्रतिश्रव  : पुं० [सं० प्रति√श्रु (सुनना)+अप्] १. प्रतिज्ञा। २. प्रतिध्वनि। गूँज।
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प्रतिश्रवण  : पुं० [सं० प्रति√श्रु+ल्युट्—अन्] १. अच्छी तरह से सुनना। २. प्रतिज्ञा करना।
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प्रतिश्रित  : पुं० [सं० प्रति√श्रि+क्त] आश्रय-स्थान।
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प्रतिश्रुत्  : स्त्री० [सं० प्रति√श्रु+क्विप्, तुक्] प्रतिशब्द। प्रतिध्वनि।
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प्रतिश्रुत  : भू० कृ० [सं० प्रति√श्रु+क्त] १. अच्छी तरह सुना हुआ। २. माना या स्वीकृत किया हुआ। ३. (विषय) जिसके सम्बन्ध में कोई प्रतिज्ञा की गई हो या वचन दिया गया हो। ४. (व्यक्ति) जिसने किसी बात की कोई प्रतिज्ञा की हो अथवा किसी बात की जिम्मेदारी ली हो।
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प्रतिश्रुति  : स्त्री० [सं० प्रति√श्रु+क्तिन्] १. प्रतिध्वनि। २. किसी बात के लिए दिया जानेवाला वचन। (प्रामिस) ३. इस बात की जिम्मेदारी कि कोई चीज या बात ऐसी ही है इससे भिन्न, विपरीत या अन्यथा नहीं है। (गारन्टी)
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प्रतिश्रोता (तृ)  : वि० पुं० [सं० प्रति√श्रु+तृच्] १. अनुमति देनेवाला। २. मंजूर करनेवाला। ३. किसी बात या विषय की प्रतिश्रुति करनेवाला।
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प्रतिषिद्ध  : भू० कृ० [सं० प्रति√सिध् (गति)+क्त] (कार्य का बात) जिसे करने से किसी को रोका गया हो।
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प्रतिषेद्धा (द्धृ)  : पुं० [प्रति√सिध्+तृच्]=प्रतिषेधक।
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प्रतिषेध  : पुं० [सं० प्रति√सिद्ध+घञ्] १. निषेध। मनाही। २. खंडन। ३. साहित्य में एक अर्थालंकार जिसमें चमत्कार-पूर्ण ढंग से प्रसिद्ध अर्थ का निषेध किया जाता है। उदा०—मोहन कर मुरली नहीं है कछु बड़ी बलाय। यहाँ मुरली का निषेध किया गया है।
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प्रतिषेधक  : वि० [सं० प्रति √सिध्+णिच्+ण्वुल्—अक] (आज्ञा, कथन आदि) जिसमें या जिसके द्वारा किसी प्रकार का प्रतिषेध हो। (प्राहिबिटरी) पुं० वह जो प्रतिषेध करे। (प्राहिबिटर)
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प्रतिषेधन  : पुं० [सं० प्रति√सिध्+णिच्+ल्युट्—अन] प्रतिषेध करने की किया या भाव।
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प्रतिषेध-लेख  : पुं० [ष० त०] आज-कल विधिक क्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय की वह लिखित आज्ञा जो किसी को अन्तरिम काल में या अन्तिम निर्णय होने तक कोई काम करने से रोकने के लिए दी जाती हैं। (रिट आफ प्रोहिबिशन)
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प्रतिषेधाधिकार  : पुं० [प्रतिषेध-अधिकार, ष० त०] किसी शासक, संसद आदि को प्राप्त वह संवैधानिक अधिकार जिससे वह शासन के किसी अन्य अंग की आज्ञा, निर्णय, प्रस्ताव आदि अमान्य या रद्द कर सकता है। निषेधाधिकार। (वीटो)
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प्रतिषेधोपमा  : स्त्री० [सं० प्रतिषेध-उपमा, ष० त०] उपमालंकार का एक भेद जिसमें कुछ प्रतिषेधक तत्त्व होता है।
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प्रतिष्टंभ  : पुं० [सं० प्रति√स्तम्भ् (रोकना)+घञ्] [भू० कृ० प्रतिष्टब्ध] १. स्तब्ध या निश्चेष्ठ होने या करने की किया या भाव। २. बाधा।
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प्रतिष्ठ  : वि० [सं० प्रति√स्था (ठहरना)+क] प्रसिद्ध। प्रख्यात। मशहूर।
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प्रतिष्ठा  : स्त्री० [सं० प्रति√स्था+अङ्+टाप्] १. किसी चीज का कहीं अच्छी तरह रखा या स्थापित किया जाना। स्थापन। जैसे—मन्दिर में मूर्ति की प्रतिष्ठा; देव-मूर्ति में की जानेवाली प्राण-प्रतिष्ठा। २. ठहराव। स्थिति। ३. जगह। स्थान। ४. मान-मर्यादा। इज्जत। ५. आदर। सत्कार। ६. प्रख्याति। प्रसिद्धि। ७. कीर्ति। यश। ८. यश की प्राप्ति। ९. देह। शरीर। १॰. पृथ्वी। ११. व्रत का उद्यापन। १२. चार वर्णों के वृत्तों की संज्ञा। १३. एक प्रकार का छन्द।
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प्रतिष्ठान  : पुं० [सं० प्रति√स्था+ल्युट—अन] १. प्रतिष्ठित या स्थापित करने की क्रिया या भाव। बैठाना। स्थापन। २. मन्दिर आदि में देव-मूर्ति की स्थापना। ३. उपाधि। पदवी। ४. जड़। मूल। ५. जगह। स्थान। ६. व्रत आदि की समाप्ति पर किया जाने-वाला कृत्य। ७. दें० ‘प्रतिष्ठानुपुर’। ८. दक्षिण भारत का एक प्राचीन नगर जिसका आधुनिक नाम पैठण है।
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प्रतिष्ठानपुर  : पुं० [सं० ष० त०] १. गंगा और यमुना के संगम पर बसी हुई झूसी नामक बस्ती का पुराना नाम। २. गोदावरी के तट पर महाराष्ट्र देश का एक प्राचीन नगर जहाँ राजा शालिवाहन की राजधानी थी।
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प्रतिष्ठापन  : पुं० [सं० प्रति+स्था√णिच्, पुक्+ल्युट्—अन] प्रतिष्ठत अर्थात् स्थापित करने की क्रिया या भाव।
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प्रतिष्ठापयिता (तृ)  : पुं० [सं० प्रति √स्था+णिच्, पुक्, +तृच] प्रतिष्ठापन करनेवाला।
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प्रतिष्ठापित  : भू० कृ० [सं० प्रति+स्था√णिच्, पुक्+क्त] जिसका प्रतिष्ठापन किया गया हो या हुआ हो।
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प्रतिष्ठित  : भू० कृ० [सं० प्रति√स्था+क्त] १. जिसकी प्रतिष्ठा या इज्जत की गई हो या हुई हो। आदर-प्राप्त। २. जिसकी स्थापना की गई हो। स्थापित। जैसे—मन्दिर में मूर्ति प्रतिष्ठित करना। ३. जो किसी स्थान पर बैठा या बैठाया गया हो। जैसे—आसन पर प्रतिष्ठत। पुं० विष्णु।
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प्रतिष्ठिति  : स्त्री० [सं० प्रति√स्था+क्तिन्] स्थापित करने या होने की क्रिया या भाव। प्रतिष्ठान।
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प्रतिसंख्या  : स्त्री० [सं० प्रति-सम्√ख्या (कहना)+अङ्—टाप्] १. चेतना। २. सांख्य के अनुसार ज्ञान की एक अवस्था या रूप।
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प्रतिसंचर  : पुं० [सं० प्रति-सम्√चर् (गति)+अप्] पुराणानुसार प्रलय का एक भेद।
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प्रतिसंदेश  : पुं० [सं० प्रा० स०] संदेश के जबाव में भेजा हुआ संदेश।
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प्रतिसंधान  : पुं०=अनुसंधान।
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प्रतिसंधि  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] १. वियोग। विछोह। २. अनुसंधान। खोज। तलाश। ३. अन्त। समाप्ति। ४. दो युगों का संधि-काल। ५. भाग्य की प्रतिकूलता। ६. पुनर्जन्म।
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प्रतिसंविद्  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] किसी विषय का सांगोपांग ज्ञान।
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प्रतिसंवेदक  : वि० [सं० प्रति-सम्√विद् (जानना)+णिच्+ण्वुल—अक] जिससे किसी के संबंध में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती हो।
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प्रतिसंस्कार  : पुं० [सं०] [भू० कृ० प्रतिसंस्कृत] १. फिर से किया जानेवाला संस्कार। २. मरम्मत।
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प्रतिसंहरण  : पुं० [सं०] किसी की दी हुई आज्ञा या किये हुए कार्य या निश्चय को नई आज्ञा या निर्णय से रद्द अथवा नहीं के समान करना। रद्द करना। (रिवोकेशन)
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प्रतिसंहार  : पुं० [सं० प्रति-सम्√हृ+घञ्] १. समेट लेना। २. त्यागना। ३. किसी वस्तु से दूर रहना। ४. निरर्थक या रद्द करना। मिटाना।
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प्रतिसम  : विं० [सं० प्रा० स०] १. जो समान हो। २. जो बराबरी या मुकाबले का हो।
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प्रतिसमाधान  : पुं० [सं० प्रति-सम्-आ√धा+ल्युट्—अन] १. प्रतिकार। बदला। २. इलाज।
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प्रतिसर  : पुं० [सं० प्रति√सृ (गति)+अच्] १. सेवक। नौकर। २. सेना का पिछला भाग। ३. विवाह के समय पहना जानेवाला कंगन। ४. कंगन नाम का गहना। ५. जादू-टोना करने का मंत्र। ६. घाव का भराव। ७. प्रातःकाल। सवेरा। ८. माला। हार।
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प्रतिसरण  : पुं० [सं० प्रति√सृ+ल्युट्—अन] किसी के सहारे उठँघने की क्रिया।
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प्रतिसर्ग  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. पुराणानुसार वे सब सृष्टियाँ जो ब्रह्मा के मानस-पुत्रों रुद्र, विराट पुरुष, मनु, यक्ष, मारीचि आदि ने उत्पन्न की थीं। २. प्रलय। ३. पुराणों का वह अंश जिसमें सृष्टि के प्रलय का वर्णन है।
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प्रतिसव्य  : वि० [सं० प्रा० स०] १. विरुद्ध आचरण करनेवाला। विरुद्धाचारी। २. प्रतिकूल। विपरीत।
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प्रतिसारक  : वि० [सं० प्रति√सृ+णिच्+ण्वुल्—अक] प्रतिसरण करनेवाला।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
प्रतिसारण  : पुं० [सं० प्रति√सृ+णिच्+ल्युट्—अन] १. अलग या दूर करना। हटाना। २. मसूड़े साफ करने के लिए किया जानेवाला मंजन। ३. किसी अंग पर कोई दवा या मरहम लगाकर मलना। ४. वैद्यक में एक प्राचीन प्रकिया जिसमें किसी रुग्ण अंग की चिकित्सा के लिए उसे जलाने के लिए घी या तेल से दागा जाता था। ५. आज-कल, घावों और फोड़े-फुन्सियों को धोकर और उन पर दवा लगाकर पट्टी आदि बाँधने की क्रिया। मरहम-पट्टी। (ड्रेसिंग)
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प्रतिसारण-शाला  : स्त्री० [सं० ष० त०] वह स्थान या कमरा जहाँ रोगियों के घावों आदि का प्रतिसारण या मरहम-पट्टी होती है। (ड्रेंसिंग रूम)
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प्रतिसारणीय  : वि० [सं० प्रति√सृ+णिच्+अनीयर्] १. हटाकर दूसरे स्थान पर ले जाने के योग्य। प्रतिसारण के योग्य। २. (घाव) जिस पर मरहम-पट्टी की जाने को हो या की जानी चाहिए। पुं० सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार की क्षार-पाक-विधि जो कुष्ठ, भकंदर, दाह, कुष-व्रण, झाँई, मुँहासे और बवासीर आदि में अधिक उपयोगी होती है।
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प्रतिसारी (रिन्)  : वि० [सं० प्रति√सृ (गति)+णिनि] उलटी दिशा में जानेवाला।
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प्रतिसूर्य  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. सूर्य का मंडल या घेरा। २. गिरगिट। ३. आकाश में होनेवाला एक प्रकार का उत्पात जिसमे सूर्य के सामने एक और सूर्य निकलता हुआ दिखाई देता है।
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प्रतिसृष्ट  : भू० कृ० [सं० प्रति√सृज् (भेजना, त्यागना)+क्त] १. भेजा हुआ। प्रेषित। २. जिसका अस्वीकरण या निराकरण हुआ या किया गया हो। ३. मत्त। मतवाला।
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प्रतिसेना  : स्त्री० [स० प्रा० स०] विपक्षी की सेना।
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प्रतिस्त्री  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] पराई स्त्री।
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प्रतिस्थापन  : पुं० [सं० प्रति√स्था+णिच्, पुक्+ल्यूट्—अन] [भू० कृ० प्रतिस्थापित] १. किसी चीज के न रह जाने, नष्ट हो जाने अथवा हट जाने पर उसके स्थान पर वैसी ही दूसरी चीज रखना। २. किसी व्यक्ति के हट जाने पर उसका काम चलाने के लिए उसके स्थान पर दूसरा व्यक्ति रखना। (सब्स्टिट्यूशन)
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प्रतिस्थापित  : भू० कृ० [सं० प्रति√स्था+णिच्, पुक्+क्त] काम चलाने के लिए किसी के स्थान पर बैठाया या रखा हुआ। (सब्स्टिट्यूट)
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प्रतिस्पर्धा  : स्त्री० [सं० प्रति√स्पर्ध (होड़ लगाना)+अ-टाप्] वह स्थिति जिसमें दो या अधिक व्यक्ति एक दूसरे से किसी काम में आगे निकलने के लिए प्रयत्नशील तथा कटिबद्ध होते हैं। (राइवलरी)
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प्रतिस्पर्धी (र्धिन्)  : पुं० [प्रति+स्पर्ध्√णिनि] वह जो किसी से प्रतिस्पर्धा करता हो। प्रतिद्वंद्वी। (राइवल)
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प्रतिस्त्राव  : पुं० [सं० प्रति√स्त्रु (बहना)+घञ्] १. एक रोग जिसमें नाक में से पीला या सफेद रंग का बहुत गाढ़ा कफ निकलता है। २. पीले या सफेद रंग का उक्त कफ।
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प्रतिस्वन  : पुं० [सं० प्रा० स०] प्रतिशब्द। ध्वनि।
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प्रतिस्वर  : पुं० [सं० प्रा० स०] प्रतिशब्द।
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प्रतिहंता (तृ)  : वि० [सं० प्रति√हन् (हिंसा)+तृच्] १. रोकनेवाला। बाधक। २. मुकाबले में खड़ा होनेवाला।
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प्रतिहत  : भू० कृ० [सं० प्रति√हन्+क्त] १. जिसे कोई ठोकर या आघात लगा हो। २. जिसके सामने कोई बाधा या विध्न हो। ३. हटाया हुआ। ४. फेका हुआ। ५. गिरा हुआ। ६. निराश।
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प्रतिहति  : स्त्री० [सं० प्रति√हन्+क्तिन]=प्रतिहनन।
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प्रतिहनन  : पुं० [सं० प्रति√हन+ल्युट,—अन] १. किसी हनन करनेवाले को मार डालना। २. आघात के बदले में आघात करना। प्रतिघात।
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प्रतिहरण  : पुं० [प्रति√हृ (हरण करना)+ल्युट—अन] १. विनाश। बरबादी। २. निवारण।
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प्रतिहर्त्ता (र्तृ)  : वि० [सं० प्रति√हृ+तृच्] प्रतिहरण का विनाश करनेवाला। पुं० यज्ञ के १६ ऋत्विजों में से बारहवाँ ऋत्विज।
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प्रतिहस्त  : पुं० [सं० ब० स०] १. वह जो किसी के न होने की दशा में उसके स्थान पर हो या रखा गया हो। २. प्रतिनिधि।
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प्रतिहस्ताक्षरण  : पुं० [सं० प्रतिहस्ताक्षर+णिच्+ल्युट्—अन] [भू० कृ० प्रतिहस्ताक्षरित] किसी के हस्ताक्षर का अनुमोदन या समर्थन करने के लिए किसी बड़े अधिकारी का भी उसके साथ हस्ताक्षर करना। (काउन्टर-साइनिंग)
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प्रतिहस्ताक्षरित  : भू० कृ० [सं० प्रतिहस्ताक्षर, प्रा० स०,+इतच्] जिस पर किसी के हस्ताक्षर को साक्षीकृत करने के लिए किसी बड़े अधिकारी ने हस्ताक्षर किये हों। (काउन्टरसाइन्ड)
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प्रतिहार  : पुं० [सं० प्रति√हृ+अण्] [भाव० प्रतिहारत्व, स्त्री० प्रतिहारी] १. प्राचीन काल का एक राजकर्मचारी जो सदा राजाओं के पास रहा करता था और राजाओं के संदेश लोगों तक पहुँचाता था। २. द्वारपाल। दरबान। ३. चोबदार। ४. ऐंद्रजालिक। जादूगर। ५. सामवेद गान का एक अंग। ६. दो दलों या व्यक्तियों में होनेवाली वह सन्धि या समझौता जिसमें यह निश्चय होता है कि पहले हम तुम्हारा अमुक काम कर देते हैं; पर इसके उपरान्त तुम्हे भी हमारा अमुक काम करना पड़ेगा।
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प्रतिहारक  : पुं० [सं० प्रति√हृ+ण्वुल्—अक] १. इंद्रजाल दिखानेवाला। बाजीगर। २. वह जो प्रतिहार नामक सामक गान करता हो।
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प्रतिहरण  : पुं० [प्रति√हृ+णिच्+ल्युट—अन] [भू० कृ० प्रतिहारित] १. द्वार। दरवाजा। २. द्वार में प्रवेश करने की अनुमति। ३. द्वार पर पहुँचकर किया जानेवाला स्वागत।
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प्रतिहारत्व  : पुं० [सं० प्रतिहार+त्व] ड्योढ़ीदारी। प्रतिहार या द्वारपाल का काम या पद।
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प्रतिहारित  : भू० कृ० [सं० प्रति√हृ+णिच्+क्त] जिसका स्वागत किया गया हो।
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प्रतिहारी (रिन्)  : पुं० [सं० प्रति √हृ+णिनि] [स्त्री० प्रतिहारिणी] द्वारपाल। दरबान। स्त्री० वह स्त्री जो प्राचीनकाल में राजाओं के यहाँ प्रतिहार का काम करती थी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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प्रतिहार्य  : पुं० [सं० प्रति√हृ+ण्यत्] इंद्रजाल। बाजीगरी।
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प्रतिहिंसा  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] हिंसा के बदले में की जानेवाली हिंसा।
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प्रतिहित  : भू० कृ० [सं० प्रति√धा (रहना)+क्त, हि-आदेश] १. रखा हुआ। २. जमाया या स्थापित किया हुआ।
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