| शब्द का अर्थ | 
					
				| प्रतिमा					 : | स्त्री० [सं० प्रति√मा (मापना)+अङ्+टाप्] १. किसी की वास्तविक अथवा कल्पित आकृति के अनुसार बनाई हुई मूर्ति या चित्र। अनुकृति। २. आराधन, पूजन आदि के लिए धातु, पत्थर मिट्टी आदि की बनाई हुई देवता या देवी की मूर्ति। देव-मूर्ति। ३. प्रतिबिंब। परछाईं। ४. साहित्य में एक अलंकार जिससे किसी मुख्य पदार्थ या व्यक्ति के न होने की दशा में उसी के समान किसी दूसरे पदार्थ या व्यक्ति की स्थापना का उल्लेख होता है। ५. हाथियों के दांतों पर जड़ा जानेवाला पीतल, ताँबे आदि का छल्ला या मंडल। ६. तौलने का बटखरा। बाट। | 
			
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				| प्रतिमान					 : | पुं० [सं० प्रति√मा+ल्युट्—अन] १. समान मानवाली मुकाबले की दूसरी वस्तु। २. वह वस्तु या रचना जिसे आदर्श मानकर उसके अनुरूप और वस्तुएँ बनाई जाती हों। (मॉडल) ३. वह अच्छी और बढ़िया चीज जो पहले एक बार नमूने के तौर पर बनाकर रख ली जाती है और तब उसी के अनुरूप या वैसी ही चीजें बनाकर तैयार की जाती हैं। (पैटर्न) ४. उदाहरण। दृष्टांत। | 
			
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				| प्रतिमानीकरण					 : | पुं० [सं०] १. प्रतिमान के रूप में लाने की प्रक्रिया या भाव। २. दे० ‘मानकीकरण’। | 
			
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				| प्रतिमाला					 : | स्त्री० [सं० प्रा० स०] स्मरणशक्ति का परिचय देने के लिए दो आदमियों का एक दूसरे के बाद लगातर एक ही तरह के अथवा एक दूसरे के बाद लगातार एक ही तरह के अलावा एक दूसरे के जोड़ के श्लोक या पद पढ़ना। | 
			
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				| प्रतिमावली					 : | स्त्री० [सं०] दे० ‘मूर्तिविधान’। | 
			
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