| शब्द का अर्थ | 
					
				| प्रदर्श					 : | पुं० [सं० प्र√दृश, (देखना)+घञ्] १. आकृति। रूप। शकल। २. आदेश। आज्ञा। | 
			
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				| प्रदर्शक					 : | वि० [सं० प्र√दृश्+णिच्+ण्वुल्-अक] [स्त्री० प्रदर्शिका] १. प्रदर्शन करनेवाला। २. दिखलानेवाला। ३. पथप्रदर्शक। ४. दे० प्रादर्शनिक’। पुं० १. गुरु। २. दर्शक। ३. सिद्धान्त। | 
			
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				| प्रदर्शन					 : | पुं० [सं० प्र√दृश्+णिच्+ल्युट्—अन] [वि० प्रादर्शनिक, भू० कृ० प्रदर्शित] १. लोगों की जानकारी के लिए कोई काम उन्हें दिखालाना। जैसे—बालकों द्वारा व्यायाम प्रदर्शन। २. जनता को अपना असंतोष, दुःख आदि बतलाने तथा उसकी सहानुभूति प्राप्त करने रूप से संबंद्ध अधिकारियों के अन्याय के विरोध में नारे आदि लगाते हुए निकाला जानेवाला जुलूस। (डिमांस्ट्रेन) ३. दे० ‘प्रदर्शनी’। | 
			
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				| प्रदर्शनी					 : | स्त्री० [सं० प्रदर्शन+ङीप्] ऐसा स्थान जहाँ विशेष रूप में नई तथा चामत्कारिक चीजों का प्रदर्शन किया जाता है। (एक्सहिबिशन) | 
			
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				| प्रदर्शित					 : | भू० कृ० [सं० प्र√दृश्+णिच्+क्त] १. जिसका सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन हुआ हो। दिखलाया हुआ। २. प्रदर्शनी में रखा हुआ। | 
			
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				| प्रदर्शी (र्शिन्)					 : | वि० [सं० प्र√दृश्+णिनि] [स्त्री० प्रदर्शिनी] १. जो देखता हो। दर्शक। २. दे० ‘प्रदर्शक’। | 
			
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