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प्रपंच  : पुं० [सं० प्र√पञ्च् (विस्तार)+घञ्] १. फैलाव। विस्तार। २. फैला हुआ यह दृश्य जगत् जो मायावी और मिथ्या कहा गया है, तथा जिसमें परस्पर विरोधी तथा विभिन्न कार्य होते रहते हैं। ३. कोई ऐसा कार्य जिसमें कई तरह की परस्पर विरोधी बातें होती हैं, और सार कुछ भी नहीं होता या बहुत कम होता है। ४. विशेषतः कोई ऐसा कार्य जो छल-कपट या झगड़े-झंझट से भरा हो और जो तुच्छ अथवा हीन उद्देश्य से किया जा रहा हो। ५. झंझट। बखेड़ा।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
प्रपंचन  : पुं० [सं० प्र√पञ्च्+णिच्+ल्युट्—अन] [भू० कृ० प्रपंचित] १. विस्तार बढ़ाना। २. प्रपंच खड़ा करना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
प्रपंची (चिन्)  : वि० [सं० प्रपंच+इनि] १. प्रपंच रचनेवाला। २. कपटी। छली।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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