| शब्द का अर्थ | 
					
				| प्रमोद					 : | पुं० [सं० प्र√मुद् (हर्ष)+घञ्] १. बहुत अधिक बढ़ा हुआ मोद, प्रसन्नता या हर्ष। आमोद या मोद का बहुत बढ़ा हुआ रूप। (मेरिमेन्ट) २. आराम। सुख। बृहस्पति के पहले युग के चौथे वर्ष का नाम। ४. कार्तिकेय का एक अनुचर। ५. प्रमोदा (देखें) नामक सिद्धि। ६. कड़ी सुगंधि। | 
			
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				| प्रमोदक					 : | पुं० [सं० प्र√मुद्+णिच्+ण्वुल—अक] एक प्रकार का जड़हन। वि० प्रमोद अर्थात् आनन्द उत्पन्न करेवाला। | 
			
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				| प्रमोदकर					 : | पुं० [ष० त०] दे० ‘मनोरंजन-कर’। | 
			
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				| प्रमोदन					 : | पुं० [सं० प्र√मुद्+णिच्+ल्युट्—अन] १. प्रमुदित करना। आनंदित करना। २. [प्र√मुद्+णिच्+ल्यु—अन] विष्णु। | 
			
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				| प्रमोदा					 : | स्त्री० [सं० प्रमोद+टाप्] सांख्य के अनुसार आठ प्रकार की सिद्धियों में से एक जिसकी प्राप्ति से आध्यात्मिक दुःखों का नाश हो जाता है और साधक परम प्रसन्न होता है। | 
			
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				| प्रमोदित					 : | भू० कृ० [सं० प्रमोद+इतच्] जो प्रमोद या आनन्द से युक्त किया गया हो। पुं० कुबेर। | 
			
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				| प्रमोदिनी					 : | स्त्री० [सं० प्रमोदिन्+ङीप्] जिंगिनी। | 
			
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				| प्रमोदी (दिन)					 : | वि० [सं० प्र√मुद्+णिच्+णिनि] १. प्रमोद संबंधी। २. प्रमुदित रहनेवाला। | 
			
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