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प्रयोजन  : पुं० [सं० प्र√युज्+ल्युट्—अन] [वि० प्रयोजनीय, प्रयोज्य, भू० कृ० प्रयुक्त] १. किसी काम, चीज या बात का प्रयोग करने अर्थात् उसे व्यवहार में लाने की क्रिया या भाव। उपयोग। प्रयोग। व्यवहार। २. वह उद्देश्य जिससे प्रेरित होकर मनुष्य कोई काम करने में प्रवृत्त होता और उसे पूरा करता है। अभिप्राय। मतलब। (पर्पज़) जैसे—इन बातों से हमारा प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा। ३. हिन्दुओं में, कोई अच्छा, धार्मिक, बड़ा या शुभ काम या उत्सव। जैसे—जब उनके यहाँ कोई प्रयोजन होता है, तब वे हमें अवश्य बुलाते हैं।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
प्रयोजनवती लक्षणा  : स्त्री० [सं० प्रयोजन+मतुप् वत्व,+ङीप्, प्रयोजनवती लक्षणा, व्यस्तपद] साहित्य में, लक्षणा का वह प्रकार या भेद जिसमें मुख्य अर्थ का बाध होने पर किसी विशेष प्रयोजन के लिए मुख्य अर्थ से संबद्ध किसी दूसरे अर्थ का ज्ञान कराया जाता है। जैसे—‘वह गाँव पानी में बसा है।’ इसलिए कहा जाता है कि वह गाँव किसी जलशय के किनारे पर या रई ओर पानी से घिरा हुआ होता है। यह लक्षणा दो प्रकार की होती है—गौणी और शुद्धा।
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प्रयोजनीय  : वि० [सं० प्र√युज्+अनीयर्] १. प्रयोग में लाने योग्य। उपयोगी। २. काम या मतलब का।
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