| शब्द का अर्थ | 
					
				| प्रलाप					 : | पुं० [सं० प्र√लप् (कहना)+घञ्] [कर्त्ता प्रलापी] १. बात-चीत करना। वार्तालाप। २. मानसिक विकार या शारीरिक कष्ट के कारण पागलों की तरह या बे-सिर-पैर की बातें करना। ३. रो-रोकर किसी को अपना कष्ट या व्यथा सुनाना। ४. साहित्य में, श्रृंगार रस के प्रसंग में विरह से व्याकुल होकर इस रूप में बातें करना कि मानो वे सामने बैठे हुए प्रेमी या प्रेमिका से ही कही जा रही हों। ५. कुछ विकट रोगों में वह अवस्था जिसमें रोगी बहुत ही विकल होकर पागलों की तरह अंडबंड बातें बकता है। (डिलीरियम) | 
			
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				| प्रलापक					 : | पुं० [सं० प्र√लप्+णिच्+ण्वुल्—अक] एक प्रकार का सन्त्रिपात जिसमें रोगी प्रलाप करता अर्थात् अनाप-शनाप बकता है और उसका चित्त ठिकाने नहीं रहता। वि० १. प्रलाप करनेवाला। २. व्यर्थ या अंड-बंड बकनेवाला। | 
			
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				| प्रलापी (पिन्)					 : | वि० [सं० प्र√लप्+धिनुण्] [स्त्री० प्रलापिनी] १. प्रलाप करनेवाला। २. व्यर्थ बकवाद करने या अंड-बंड बकनेवाला। | 
			
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