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प्रवेश  : पुं० [सं० प्र√विश् (पैठना)+घञ्] १. किसी निश्चिय या विशिष्ट सीमा को लाँधकर उसके अन्दर जाने की क्रिया या भाव। अन्दर जाना। जैसे—गृह-प्रवेश, जल-प्रवेश। २. किसी विशिष्ट संस्था आदि में भरती होना। (एडमिशन) २. किसी विशिष्ट संस्था आदि में भरती होना। (एडमिशन) ३. गति। पहुँच। रसाई। ४. किसी विषय की होनेवाली साधारण जानकारी। (एडमिशन)
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प्रवेशक  : वि० [सं० प्र√विश्+णिच्+ण्वुल्—अक] प्रवेश करनेवाला। पुं० नाटक में एक प्रकार का अर्थोपक्षेपक जो दो अंकों के बीच में होता है, और जिसमें नीच पात्रों के द्वारा किसी भावी या भूत कथांश की सूचना मात्र होती है।
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प्रवेश-द्वारा  : पुं० [सं० ष० त०] वह द्वारा या दरवाजा जिसमें से होकर अन्दर जाना पड़ता है।
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प्रवेशन  : पुं० [सं० प्र√विश्+णिच्+ल्युट्—अन] [भू० कृ० प्रविष्ट, प्रवेशनीय, प्रवेश्य] १. प्रवेश करना या अन्दर जाना। घुसना। पैठना। २. सिंहद्वार।
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प्रवेशना  : अ० [सं० प्रवेश] प्रवेश करना। स० प्रविष्ट करना। प्रवेश कराना।
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प्रवेश-पत्र  : पुं० [ष० त०] १. वह पत्र जिसमें किसी को कहीं प्रवेश करने के लिए अनुमति दी गई हो। पास। २. टिकट।
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प्रवेश-शुल्क  : पुं० [ष० त०] वह शुल्क जो किसी संस्था को उसमें प्रवेश करते समय दिया जाता है।
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प्रवेशार्थी  : पुं० [सं० प्रवेश+अर्थी] वह जो कहीं प्रवेश करना या पाना चाहता हो। प्रविष्ट होने के लिए उत्सुक या उद्यत व्यक्ति।
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प्रवेशिका  : स्त्री० [सं० प्र√विश्+णिच्+ण्वुल्—अक, टाप्, इत्व] १. प्रवेश-पत्र। २. उक्त के बदले में दिया जानेवाला धन या शुल्क। ३. आज-कल कुछ संस्थाओं में एक प्रकार की परीक्षा जो आरम्भिक शिक्षा के उपरान्त ली जाती है और जिसमें उत्तीर्ण होने पर विद्यार्थी उच्च कोटि की शिक्षा प्राप्त करने का अधिकारी होता है।
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प्रवेशित  : भू० कृ० [सं० प्र√विश्+णिच्+क्त] १. जिसे प्रविष्ट किया या कराया गया हो। २. अन्दर पहुँचाया हुआ।
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प्रवेश्य  : वि० [सं० प्र√विश्+ण्यत्] १. (स्थान) जिसमें प्रवेश हो सके। २. (व्यक्ति) जिसका कहीं प्रवेश हो सके। ३. (बाजा) जो बजाया जाता हो। पुं० प्राचीन भारत में वह माल जो विदेशों से आता था। आयात।
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