| शब्द का अर्थ | 
					
				| प्रव्रज्या					 : | स्त्री० [सं० प्र√व्रज्+क्पप्+टाप्] १. चलकर कहीं दूर जाना। २. घर-बार छोड़कर दूर के किसी एकान्त स्थान में जा रहना। ३. सांसारिकं बंधनों को छोड़कर संन्यास ग्रहण करना। ४. आज-कल जीविका, निवास आदि के सुभीते के विचार से अपना देश या स्थान में जा बसना। (माइग्रेशन) ५. देश-निकाला। | 
			
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				| प्रव्रज्या-व्रत					 : | पुं० [सं० ष० त०] नैपाली बौद्धों का एक संस्कार जो हिन्दुओं के यज्ञोपवीत की तरह का होता है। | 
			
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