| शब्द का अर्थ | 
					
				| प्रशंस					 : | स्त्री०=प्रशंसा। वि०=प्रशंस्य (प्रशंसनीय)। | 
			
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				| प्रशंसक					 : | वि० [सं० प्र√शंस् (स्तुति करना)+ण्वुल्—अक] १. प्रशंसा करनेवाला। २. किसी के अच्छे गुणों या बातों को आदर की दृष्टि से देखनेवाला। (एडमायरर) | 
			
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				| प्रशंसन					 : | पुं० [सं० प्र√शंस्+ल्युट्—अन] [वि० प्रशंसनीय, प्रशंस्य, भू० कृ० प्रशसित] प्रशंसा या तारीफ करना। सराहना। | 
			
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				| प्रशंसना					 : | स० [सं० प्रशंसन] किसी की प्रशंसा या तारीफ करना। गुणानुवाद करना। सराहना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| प्रशंसनीय					 : | वि० [सं० प्र√शंस्+अनीयर्] जिसकी प्रशंसा की जा सकती हो। प्रशंसा का अधिकारी या पात्र। | 
			
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				| प्रशंसा					 : | स्त्री० [सं० प्र√शंस्+अ+टाप्] [भू० कृ० प्रशंसित] १. प्रसन्नतापूर्वक किसी के अच्छे गुणों या कार्यों का किया जानेवाला ऐसा उल्लेख जिससे समाज में उसका आदर तथा प्रतिष्ठा बढ़ती हो। २. प्रसन्न होकर यह कहना कि कोई चीज बहुत अच्छी है, तथा गुण-संपन्न है। (पेज) | 
			
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				| प्रशंसित					 : | भू० कृ० [सं० प्रशंसा+इतच्] जिसकी प्रसंशा की गई हो या हुई हो। सराहा हुआ। | 
			
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				| प्रशंसोपमा					 : | स्त्री० [सं० प्रशंसा-उपमा, मध्य० स०] उपमालंकार का एक भेद जिसमें उपमेय की प्रशंसा करके उपमान को प्रशंसनीय सिद्ध किया जाता है। | 
			
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				| प्रशंस्य					 : | वि०=प्रशंसनीय। | 
			
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