शब्द का अर्थ
|
प्रशस्ति :
|
स्त्री० [सं० प्र√शंस्+क्तिन्] १. प्रशंसा। स्तुति। २. विवरण। ३. किसी के विशेषतः अपने पालक या संरक्षक के गुणों, विशेषताओं आदि की कुछ बढ़ा-चढाकर की जानेवाली विशद और विस्तृत प्रसंशा। (ग्लोरिफ़िकेशन) ४. प्राचीन भारत में, वह ईश्वर-प्रार्थना जो किसी नये राजा के सिहासन पर बैठने के समय राज्य और लोक की मंगल-कामना से की जाती थी। ५. परवर्ती भारत में (क) राजाओं के एक प्रकार के प्रख्यापन जो चट्टानों, ताम्रपत्रों आदि पर अंकित किये जाते थे। (ख) ग्रंथों के आदि या अंत का वह अंश जिसमें उनके कर्ता, रचना-काल, विषय आदि का उल्लेख रहता था। पुष्पिका। और (ग) वे प्रशंसा-सूचक पद या वाक्य जो पत्रों आदि के आरंभ में संबोधन के रूप में लिखे जाते थे। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
|