शब्द का अर्थ
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प्राच्य :
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वि० [सं० प्राच्+यत्] १. जो पूरब अर्थात् पूर्वी भू-भाग में बना, रहता या होता हो। पूरबी। २. पूर्वीय देशों अर्थात् एशिया महाद्वीप के देश और उनके निवासियों से संबंध रखनेवाला। पूर्वीय। जैसे—प्राच्य सभ्यता। ३. पुराना। प्राचीन। पुं० १. पूर्वी भूभाग। २. पूर्वी देश। ३. कोशल, काशी, विदेह और अंग देश की प्राचीन सामूहिक संज्ञा। |
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प्राच्यक :
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वि० [सं० प्राच्य+कन्]=प्राच्य। |
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प्राच्यविद् :
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पुं० [सं०]=प्राच्यवेत्ता। |
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प्राच्य-विद्या :
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स्त्री० [सं०] पुरातत्व की वह शाखा जिसमें प्राच्य देशों अर्थात्, तुर्की, ईरान, भारत, बरमा, चीन, स्याम, मलाया आदि पूर्वीय देशों के इतिहास, धर्म, भाषा, संस्कृत, साहित्य आदि का अनुसंधानात्मक विचार और विवेचन होता है। (ओरियन्टलिज्म) |
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प्राच्य-वृत्ति :
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स्त्री० [सं० कर्म० स०] साहित्य में वैताली वृत्ति का एक भेद जिनके समपादों में चौथी और पाँचवीं मात्राएँ मिलकर गुरु हो जाती हैं। |
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प्राच्यवेत्ता :
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पं० [सं०] वह जो प्राच्य-विद्या का अच्छा ज्ञाता हो। (ओरिएन्टलिस्ट) |
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प्राच्य-व्रण :
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पुं० [सं० कर्म० स०] एक प्रकार का व्रण या घाव जो उष्ण कटिबन्ध के देशों में चेहरे या हाथ-पैर पर होता है। (ओरिएन्टल सोर) |
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प्राच्या :
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स्त्री० [सं० प्राच्य+टाप्] प्राच्य (कोशल, काशी, विदेह और अंग) के निवासियों की भाषा। अर्द्ध-मागधी और मागधी इसी के विकसित रूप हैं। |
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