शब्द का अर्थ
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प्रादेश :
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पुं० [सं० प्र+दिश (बताना)+घञ्, दीर्घ] १. अधिकारिक रूप से दिया हुआ कोई आदेश, विशषतः लिखित आदेश। २. वह आदेशात्मक अधिकार जो प्रथम महायुद्ध के बाद राष्ट्र-संघ (लीग आफ नेशन्स) की ओर से कुछ बड़े-बड़े राष्टों को विजित उपनिवेशों, प्रदेशों आदि की शासनिक व्यवस्था के लिए दिया गया था। (मैनडेट) ३. तर्जनी और अँगूठे के सिरों के बीच की अधिकतम दूरी जो नाप में १२ उँगलियों के बराबर होती है। ४. तर्जनी और अँगूठे का बीच का भाग। ५. प्रदेश। ६. जगह। स्थान। |
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समानार्थी शब्द-
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प्रादेशात्मक :
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वि० [सं० प्रदेशात्मक+अण्] (व्यवस्था) जो किसी प्रादेश के अनुसार हो। (मैनडेटरी) |
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प्रादेशिक :
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वि० [सं० प्रदेश+ठक्—इक] [भाव० प्रादेशिकता] १. प्रदेश-संबंधी। किसी एक प्रदेश का। जैसे—प्रादेशिक परिषद्, प्रादेशिक भाषा। २. प्रदेश के भीतरी कामों या भागों से संबंध रखने वाला अथवा उनमें रहने या होनेवाला। (टेरिटोरियल) जैसे—प्रादेशिक सेना। ३. किसी प्रसंग या प्रस्तुत विषय के अनुसार या उससे संबद्ध। प्रसंग-गत। पुं० १. सरदार। सामंत। २. किसी प्रदेश का प्रधान अधिकारा। सूबेदार। |
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प्रादेशिकता :
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स्त्री० [सं० प्रादेशिक+तल्—टाप्] प्रांतीयता। |
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प्रादेशिक समुद्र :
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पुं० [सं०] किसी देश या प्रदेश के समुद्री तट के सामने के समुद्र का कुछ विशिष्ट भाग जिसमें दूसरे देशों के जहाजों को बिना अनुमति प्राप्त किये आने का अधिकार नहीं होता। विशेष—पहले इसका विस्तार समुद्री तट से तीन मील की दूरी तक माना जाता था, परन्तु अब बड़ी-बड़ी दूरमार तोपों के बन जाने के कारण यह विस्तार बढ़ाकर बारह मील कर दिया गया है। |
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प्रादेशिक सेना :
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स्त्री० [सं० कर्म० स०] किसी देश या प्रदेश के भीतरी भागों या सीमाओं के अन्दर रहकर स्थानिक सुरक्षा, शांति आदि की व्यवस्था करनेवाली सेना। (टेरिटोरियल आर्मी) |
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प्रादेशी (शिन्) :
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वि० [सं० प्रदोष+इनि] जो लंबाई में एक प्रादेश हो। |
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