| शब्द का अर्थ | 
					
				| प्राप्य					 : | वि० [सं० प्र√आप+ण्यत्] १. जो कहीं से या किसी से प्राप्त हो सकता हो। मिल सकने के योग्य। (एवेलेबुल) २. (बाकी धन या वस्तु) जो किसी की ओर निकलता हो और इसी लिए उससे अधिकारिक और आवश्यक रूप से प्राप्त किया जाने को हो या किया जा सकता हो। (ड्यू) ३. जिस तक पहुँच हो सके। गम्य। | 
			
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				| प्राप्यक					 : | पुं० [सं०] वह पत्र जिसमें किसी प्राप्त धन का ब्योरा होता है। विपत्र। (बिल) | 
			
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				| प्राप्यक-समाहर्ता (तृ)					 : | पुं० [ष० त०] वह अधिकारी जो प्राप्यक का बाकी धन उगाहने का काम करता है। (बिल कलक्टर) | 
			
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