शब्द का अर्थ
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प्रायः :
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अव्य. [सं० प्र√अय् (गति)+असुन्] १. अधिकतर अवसरों, अवस्थाओं आदि में। अवसर। २. करीब-करीब। लगभग। ३. बीच बीच में। जल्दी जल्दी। जैसे—मुझे प्रायः उनके यहाँ जाना पड़ता है। |
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प्राय :
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वि० [सं० प्र√अय् (गति)+घञ्] १. रूप, स्थिति आदि के विचार से किसी के बहुत-कुछ अनुरूप या समान। कुछ बातों में किसी से मिलता-जुलता या उस तक पहुँचता हुआ। (प्रायः यौ० के अंत में) जैसे—नष्ट प्राय, मृतपाय आदि। (और कभी कभी यौ० के आरंभ में भी) जैसे—प्राय-द्वीप। २. किसी तत्त्व या बात से बहुत अधिक युक्त या भरा हुआ। जैसे—कष्ट-प्राय शरीर, जल-प्राय देश। पुं० १. अनशनादि जिनसे मनुष्य शक्तिहीन होकर मृतक से तुल्य हो जाता या मर जाता है। २. मृत्यु। मौत। ३. अवस्था। उमर। वय। |
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प्रायगत :
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वि० [सं० द्वि० त०] जिसके मरने में अधिक विलंब न हो। मरणासन्न। |
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प्रायण :
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पुं० [सं० प्र√अय्+ल्युट्—अन] १. एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना। प्रयाण। २. एक शरीर छोड़कर दूसरा शरीर धारण करना। ३. दूसरा जन्म। जन्मान्तर। ४. अनशन करते हुए अर्थात् खाना-पीना छोड़कर प्राणदेना या मरना। ५. अनशन, व्रत आदि की समाप्ति पर किया जानेवाला जलपान या भोजन। ६. एक तरह का दूध से बनाया हुआ व्यंजन। ७. प्रदेश। ८. आरंभ। ९. शरण। |
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प्रायणीय :
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पुं० [सं० प्रयण+छ—ईय] १. सोमयोग में पहली सुत्या के दिन में का कर्म। २. आरंभिक कृत्य। वि० आरंभ या शुरू में होनेवाला। आरंभिक। जैसे—प्रायणीय कर्म, प्रायणीय याग। |
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प्रायद्वीप :
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पुं० [सं० प्रायोद्वीप] स्थल का वह भाग जो, तीन ओर से समुद्र से घिरा हो और जिसके केवल एक ओर स्थल मिला हो। (पेन्निशुला) |
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प्रायद्वीप खंड :
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पुं० [सं०] भूगोल में स्थल खंड का वह छोटा संकरा भाग जिसके तीन ओर जल रहता हो और जल में नुकीली चोंच के रूप में बढ़ा हुआ होता है। |
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प्रायशः :
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अव्य० [सं० प्राय०+शस्] प्रायः। अक्सर। |
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प्रायश्चित :
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पुं० [सं० प्राय-चित् ष० त०, सुट् आगम] १. किये हुए दुष्कर्म या पाप के फल-भोग से बचने के लिए किये जानेवाला शास्त्र विहित कर्म जो बहुंधा दंड के रूप में होते हैं। जैसे—दान, व्रत आदि। जैनों के अनुसार आलोचना, प्रतिक्रण, आलोचना प्रतिक्रमण, विवेक, व्युत्सर्ग, तप, छेद, परिहर और उपस्थान ये नौ प्रकार के प्रायश्चित माने गये हैं। २. अपने पति क्रिया जानेवाला वह कठोर आचरण जो अपने किसी कार्य अथवा उसके परिणाम से क्षुब्ध होकर या ग्लानिवश किया जाता है। ३. साधारण बोल-चाल में, अपने किसी दोष, प्रमाद, भूल आदि के फलस्वरूप होनेवाला किसी प्रकार का कष्ट या हानि। |
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प्रायश्चित्तिक :
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वि० [सं० प्रायश्चित+ठञ्—इक] १. प्रायश्चित-संबंधी। प्रायश्चित्त का। २. (दूषित कार्य) जिसके लिए प्रायश्चित करना आवश्यक या उचित हो। |
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प्रायश्चित्ती (त्तिन्) :
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वि० [सं० प्रायश्चित्त+इनि] १. (व्यक्ति) जिसे प्रायश्चित्त करना आवश्यक या उचित हो। २. प्रायश्चित्त करनेवाला। |
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प्रायश्चित्तीय :
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वि० [सं० प्रायश्चित्त+छ—ईय] प्रायश्चित-संबंधी। प्रायश्चित्त् का। |
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प्रायाणिक :
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वि० [सं० प्रयाण+ठक्—इक] प्रयाण-संबंधी। प्रयाण या यात्रा का। पुं० यात्रा के समय शुभ माने जानेवाले शंख, चवँर, दही आदि मांगलिक द्रव्य। |
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प्रायिक :
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वि० [सं० प्राय+ठक्—इक] [भाव० प्रायिकता] १. जो नियमित रूप से या सदा तो नहीं फिर भी बीच-बीत में प्रायः होता रहता हो। (यूज़ुअल) जैसे—सावन-भादों में वर्षा प्रायिक होती है। २. अनुमान, संभावना आदि के विचार से बहुत-कुछ ठीक तथा संभव। |
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प्रायोगिक :
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वि० [सं० प्रयोग+ठक्—इक] १. प्रयोग-संबंधी। प्रयोग का। २. उपयोगी, ठीक या मान्य सिद्ध करने के लिए अभी जिसका प्रयोग या परीक्षा मात्र हो रही हो। (एक्सपेरिमेन्टल) ३. प्रयोग के रूप में किया या काम में लाया जानेवाला। (एप्लाएड) ४. क्रियात्मक। व्यावहारिक। |
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प्रायोगिक-कला :
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स्त्री० [सं० कर्म० स०] व्यवहारिक कला। |
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प्रायोगिका-विज्ञान :
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पुं० [सं० कर्म० स०] व्यावहारिक विज्ञान। |
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प्रायोज्य :
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वि० [सं० प्र-आ√युज् (जोड़ना)+णिच् ण्यत्] जिससे कोई प्रयोजन सिद्ध होता हो। उपयोग या प्रयोग में आनेवाला। पुं० ऐसी वस्तु या वस्तुएँ जिनका काम किसी को नित्य पड़ता हो। |
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प्रायोपगमन :
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पुं० [सं० प्राय-उपगमन, ष० त०] आमरण अनशन। |
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प्रायोपविष्ट :
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वि० [सं० प्राय-उपविष्ट, ष० त०] जो आमरण अनशन कर रहा हो। |
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प्रायोपवेश :
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पुं० [सं० प्राय-उपवेश, सुप्सपा स०] प्रायोपगमन। आमरण अनशन। |
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प्रायोपवेशन :
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पुं०=प्रायोपमन। |
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प्रायोपवेशी (शिन्) :
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वि० [सं० प्रायोपवेश+इनि] [स्त्री० प्रायोपवेशिनी] आमरण अनशन करनेवाला। |
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प्रायोभावी (विन्) :
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वि० [सं० प्रयास्√भू (होना)+णिनि] जो प्रायः या सब जगह हो अर्थात् साधारण या सामान्य। |
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प्रायौगिक :
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वि०=प्रायोगिक। |
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