| शब्द का अर्थ | 
					
				| प्रायश्चित					 : | पुं० [सं० प्राय-चित् ष० त०, सुट् आगम] १. किये हुए दुष्कर्म या पाप के फल-भोग से बचने के लिए किये जानेवाला शास्त्र विहित कर्म जो बहुंधा दंड के रूप में होते हैं। जैसे—दान, व्रत आदि। जैनों के अनुसार आलोचना, प्रतिक्रण, आलोचना प्रतिक्रमण, विवेक, व्युत्सर्ग, तप, छेद, परिहर और उपस्थान ये नौ प्रकार के प्रायश्चित माने गये हैं। २. अपने पति क्रिया जानेवाला वह कठोर आचरण जो अपने किसी कार्य अथवा उसके परिणाम से क्षुब्ध होकर या ग्लानिवश किया जाता है। ३. साधारण बोल-चाल में, अपने किसी दोष, प्रमाद, भूल आदि के फलस्वरूप होनेवाला किसी प्रकार का कष्ट या हानि। | 
			
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				| प्रायश्चित्तिक					 : | वि० [सं० प्रायश्चित+ठञ्—इक] १. प्रायश्चित-संबंधी। प्रायश्चित्त का। २. (दूषित कार्य) जिसके लिए प्रायश्चित करना आवश्यक या उचित हो। | 
			
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				| प्रायश्चित्ती (त्तिन्)					 : | वि० [सं० प्रायश्चित्त+इनि] १. (व्यक्ति) जिसे प्रायश्चित्त करना आवश्यक या उचित हो। २. प्रायश्चित्त करनेवाला। | 
			
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				| प्रायश्चित्तीय					 : | वि० [सं० प्रायश्चित्त+छ—ईय] प्रायश्चित-संबंधी। प्रायश्चित्त् का। | 
			
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