| शब्द का अर्थ | 
					
				| प्रालंब					 : | पुं० [सं० प्र-आ लम्ब् (लटकना)+अच्] १. रस्सी या ऐसी ही कोई चीज जो किसी ऊँचे वस्तु में टँगी और लटकती हो। २. ऐसी माला या हार जो पहना जाने पर छाती तक लटकता हो। | 
			
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				| प्रालंबक					 : | पुं० [सं० प्रालंब+कन्] [स्त्री० प्रालंबिका] छाती तक लटकनेवाली माला या हार। | 
			
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				| प्राल					 : | पुं०=पराल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| प्रालब्ध					 : | पुं०=प्रारब्ध। | 
			
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				| प्रालेख					 : | पुं० [सं० प्र-अ√लिख् (लिखना)+घञ्] लेख, लेख्य, विधान आदि का वह टंकित-मुद्रित या हस्तलिखित आरंभिक रूप जो काटछांट संशोधन आदि के लिए तैयार किया जाता है। खाका। मसौदा। (ड्राफ़्ट) | 
			
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				| प्रालेय					 : | वि० [सं० प्रलय+अण् नि० एत्व, अथवा प्र-आ√ली (मिल जाना)+यत्] प्रलय-संबंधी। उदा०—व्यस्त बरसने लगा अश्रुमय यह प्रालेय हलाहल नीर।—प्रसाद। पुं० १. तुषार। २. बरफ। हिम। ३. भूगर्भशास्त्रानुसार वह समय जब बहुत अधिक हिम पड़ने के कारण उत्तरीय ध्रुव पर सब पदार्थ नष्ट हो जाते हैं और शीत की अधिकता के कारण कोई जंतु या वनस्पति वहाँ नहीं रह सकती। | 
			
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				| प्रालेय-रश्मि					 : | पुं० [ब० स०] चंद्रमा। | 
			
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				| प्रालेयांशु					 : | पुं० [सं० प्रालेय-अंशु, ब० स०] १. चंद्रमा। २. कपूर। | 
			
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				| प्रालेयाद्रि					 : | पुं० [सं० प्रालेय-अद्रि, ष० त०] हिमालय। | 
			
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