| शब्द का अर्थ | 
					
				| बका					 : | स्त्री० [अ० बका] १. नित्यता। २. अनश्वरता। ३. अस्तित्व में बने रहना। ४. जीवन। | 
			
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				| बकाइन					 : | पुं०=बकायन (वृक्ष)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बकाउ					 : | स्त्री०=बकावली। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बकाउर					 : | स्त्री०=बकावली। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बकाना					 : | स० [हिं० बकना का प्रे० रूप०] १. किसी को बकने में प्रवृत्त करना। २. किसी को दबाकर उसके मन की छिपी हुई बात कहलाना। | 
			
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				| बकायन					 : | पुं० [हिं० बड़का+नीम ?] नीम की जाति का एक पेड़ जिसकी पत्तियाँ नीम की पत्तियों के समान तथा कुछ बड़ी और दुर्गन्धयुक्त होती है। महानिंब। | 
			
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				| बकाया					 : | वि० [अ० बक़ायः] बाकी बचा हुआ। अवशिष्ट। शेष। पुं० १. वह धन जो किसी की ओर निकल रहा हो। ऐसा धन जिसका भुगतान अभी होने को हो। २. बचा हुआ धन। बचत। ३. किसी काम या बात का वह अंश जिसका अभी संपादन होना शेष हो। | 
			
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				| बकारि					 : | पुं० [सं० बक-अरि, ष० त०] बकासुर के शत्रु अर्थात् श्रीकृष्ण। | 
			
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				| बकारी					 : | स्त्री० [सं० वकार या वाक्य] वह शब्द जो मुँह से प्रस्फुटित् हो। मुँह से निकलनेवाला शब्द। क्रि० प्र०—निकलना।—फूटना। स्त्री०=बिकारी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बकावर					 : | स्त्री०=बकावली। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बकावली					 : | स्त्री० [सं० बक-आवली, ष० त०] १. बगुलों की पंक्ति। बक-समूह। २. दे० ‘गुल-बकावली’ (पौधा और फूल)। | 
			
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				| बकासुर					 : | पुं० [सं० बक-असुर, मध्य० स०] एक दैत्य जिसे श्रीकृष्ण ने मारा था। | 
			
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