| शब्द का अर्थ | 
					
				| बहार					 : | स्त्री० [फा०] १. फूलों के खिलने का मौसीम। वसंतऋतु। २. मन का आनन्द और प्रफुल्लता। मजा। मौज।—किसी जगह (या किसी की बातें) की बहार लेना। क्रि० प्र०—उड़ाना।—लूटना।—लेना। ३. किसी वस्तु या व्यक्ति या यौवन-काल जिसमें जिसे देखकर मन प्रसन्न होता है। ४. सौंदर्य आदि के फल-स्वरूप होनेवाली रमणीयता या शोभा। जैसे—पगड़ी पर कलगी खूब बहार देती है। क्रि० प्र०—देना। मुहा०—(किसी चीज का) बहार पर आना=ऐसी अवस्था में आना या होना कि उसकी शोभा या श्री देखकर मन प्रसन्न हो जाय। बहार बजना=आनंद उमड़ना। खुशी छाना। उदा०—मिले तार उनके औरों से नहीं, नहीं बजती बहार।—निराला। ५. संगीत में, वसंत रात से मिलती-जुलती एक प्रकार की रागिनी। | 
			
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				| बहार-गुर्जरी					 : | स्त्री० [फा० बहार+सं० गुर्जरी] संपूर्ण जाति की एक रागिनी जिसमें सब शुद्ध स्वर लगते हैं। | 
			
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				| बहारना					 : | स०=बुहारना। | 
			
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				| बहारबुर्ज					 : | पुं० [फा०+अ०] किले, महल, आदि का सबसे ऊँचा वह कमरा जो चारों ओर से खुला होता है और जिसमें बैठकर लोग चारों ओर की शोभा और सौन्दर्य देखते हैं। हवा-महल। | 
			
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				| बहारी					 : | स्त्री०=बुहारी। | 
			
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