| शब्द का अर्थ | 
					
				| बाण					 : | पुं० [सं०√बाण (शब्द)+घञ्] १. एक प्रकार का नुकीला अस्त्र जो कमान या धनुष पर चढ़ाकर चलाया जाता है। तीर। शर। सायक। ३. उक्त का अगला नुकीला भाग जो जाकर शरीर के अन्दर धँस जाता है। ३. वह चीज जिसे बेधने के उद्देश्य से वाण या तीर चलाया जाता है निशाना। लक्ष्य। ४. कामदेव के प्रसिद्ध पाँच वाणों के आधार पर पाँच की संख्या का वाचक शब्द। ५. गाय का थन। ६. अग्नि। आग। ७. रामसर। सरपत। ८. नीली कटसरैया। ९. दे० ‘वाणभट्ट’। | 
			
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				| बाण गंगा					 : | स्त्री० [सं० मध्य० स] हिमालय के सोमेश्वर गिरि से निकली हुई एक प्रसिद्द नदी। | 
			
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				| बाण गोचर					 : | पुं० [ष० त०] उतनी दूरी जितनी कोई बाण छूटने पर पार करता है। बाण की पहुँच या मार तक की दूरी। | 
			
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				| बाण-पति					 : | पुं० [ष० त०] वाणासुर के स्वामी महादेव। (डिं०) | 
			
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				| बाण-पाणि					 : | पुं० [ष० त०] बाणों से लैस। | 
			
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				| बाणपुर					 : | पुं० [ष० त०] शोणितपुर (आधुनिक तेजपुर, आसाम) जो वाणासुर की राजधानी थी। | 
			
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				| बाणरेखा					 : | स्त्री० [तृ० त०] बाण से शरीर पर होनेवाला लंबा घाव। | 
			
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				| बाणलिंग					 : | पुं० [मध्य० स०] नर्मदा में मिलनेवाला एक प्रकार का सफेद पत्थर जिसका शिवलिंग बनता है। | 
			
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				| बाणविद्या					 : | स्त्री० [ष० त०] वह विद्या जिससे बाण चलाना आवे। बाण चलाने की विद्या। तीरंदाजी। | 
			
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				| बाणवृष्टि					 : | स्त्री० [ष० त०] लगातार बाण चलाते रहना। बाणों की वर्षा। | 
			
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				| बाणावती					 : | स्त्री० [सं० ] बाणासुर की पत्नी का नाम। | 
			
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				| बाणावलि					 : | स्त्री० [सं० बाण-अवलि, ष० त०] १. बाणों की पंक्ति। २. शत्रुओं पर होनेवाली बाणों या तीरों की बौछार। | 
			
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				| बाणाश्रय					 : | पुं० [सं० बाण-आश्रय, ष० त०] तरकश। | 
			
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				| बाणासन					 : | पुं० [सं० बाण-आसन, ष० त०] धनुष। | 
			
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				| बाणासुर					 : | पुं० [सं० बाण-असुर , कर्म० स०] राजा बलि के सौ पुत्रों में से सबसे बड़े पुत्र का नाम जो बहुत वीर गुणी और सहस्त्रबाहु था। | 
			
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				| बाणिज्य					 : | पुं०=वाणिज्य। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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