| शब्द का अर्थ | 
					
				| बीच					 : | पुं० [सं० विच्=अलग करना] १. किसी वस्तु का वह केन्द्रीय अंश या भाग जहाँ से उसके सभी छोर समान दूरी पर पड़ते हों। २. किसी वस्तु के दो छोरों के भीतर का कोई विंदु या स्थान। जैसे—काशी से दिल्ली जाते समय इलाहाबाद, कानपुर और अलीगढ़ बीच में पड़ते हैं। पद—बीच खेत=(क) खुले मैदान। सबके सामने। प्रकट रूप में। (ख) निश्चित रूप से। अवश्य। बीच बीच में।=(क) रह-रहकर। थोड़ी थोड़ी देर में। (ख) थोड़ी थोड़ी दूर पर। २. जगह। स्थान। जैसे—वहाँ तिल घरने को बीच नहीं है। ३. अन्तर। फरक। कि० प्र०—डालना।—पड़ना। मुहा०—बीच डालना या पारना=पार्थक्य या भेद उत्पन्न करना। बीच रखना=मन में पार्थक्य का भाव रखना। दूसरा या पराया समझना। ४. दो पक्षों में झगड़ा या विवाद होने पर उसे निपटाने के लिए की जाने वाली मध्यस्थता। पद—बीच बचाव=दो विरोधी पक्षों के बीच में आकर दोनों पक्षों के हितों की की जानेवाली रक्षा। मुहा०—बीच करना=(क) लड़नेवालों को लड़ने से रोकने के लिए अलग-अलग करना। (ख) दो दलों या पक्षों का आपस का झगड़ा निपटाना। ५. दो वस्तुओं या खंडों के बीच का अन्तर या अवकाश दूरी। मुहा०—(किसी को) बीच मान या रखकर=(क) किसी को मध्यस्थ बनाकर। (ख) किसी को साक्षी बनाकर। जैसे—ईश्वर को बीच मानकर प्रतिज्ञा करना। बीच में कूदना=अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप करना। व्यर्थ टाँग अड़ाना। बीच में पड़ना=(क) झगड़ा निपटाने के लिए मध्यस्थ बनना या होना। पंच बनना। (ख) किसी का जमानतदार या जिम्मेदार बनना। ६. अवसर। मौका। उदा०—चतुर गंभीर राम महतारी। बीच का निज बात सवाँरी।—तुलसी। अव्य० दरमियान। अन्दर में। स्त्री०=वीचि (लहर)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बीचु					 : | पुं०=बीच। | 
			
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				| बीचोबीच					 : | कि० वि० [हिं० बीच] बिलकुल बीच में। जैसे—सड़क के बीचो बीच नहीं चलना चाहिए। | 
			
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