| शब्द का अर्थ | 
					
				| बेगा					 : | पु० [?] आत्मीय। ‘पराया’ का विपर्याय। उदा०—वेगा० कै मुदई मिलत।—घाघ। | 
			
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				| बेगानगी					 : | स्त्री० [फा०] १. बेगाना होने की अवस्था या परायापन। २. अपरिचय। | 
			
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				| बेगाना					 : | वि० [फा० बेगाना] १. जो अपना न हो। ग़ैर। पराया। २. जिससे आत्मीयता पूर्ण जान-पहचान, परिचय या सम्बन्ध न हो। ३. जो किसी काम या बात से अनजान या अपरिचित हो। ना-बाकिफ। | 
			
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				| बेगार					 : | स्त्री० [फा०] १. वह काम जो किसी से जबरदस्ती और बिना कुछ अथवा उचित पारिश्रमिक दिये कराया जाय। २. उक्त के आधार पर बिना किसी पारिश्रमिक या पुरस्कार की संभावना के चलता किया जानेवाला काम। मुहा०—बेगार टालना=बिना चित्त लगाये कोई काम यों ही चलता करना। पीछा छुड़ाने के लिए कोई काम जैसे—तैसे पूरा करना। ३. ऐसा व्यर्थ और झगड़े का काम जिसका कोई अच्छा फल न हो। उदा०—नाहि तो भव बेगारि महँ परिहौ छूटत अति कठिनाई रे।—तुलसी। | 
			
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				| बेगारी					 : | पुं० [फा०] १. वह मजदूर जिसमें बिना मजदूरी दिये जबरदस्ती का लिया जा। बेगार में काम करनेवाला आदमी। कि० प्र०—पकड़ना। २. मन लगाकर काम न करनेवाला। काम चलता करनेवाला। स्त्री०=बेगार। | 
			
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