| शब्द का अर्थ | 
					
				| बेठ					 : | पुं० [देश०] १. एक प्रकार की ऊसर जमीन जिसे बीहड़ भी कहते है। २. ऋण के रूप में लिया हुआ वह पेशगी धन जो मजदूर, कारीगर आदि धीरे-धीरे कुछ काम करके या सामान देकर चुकाते हैं। मुहा०—बेठ भरना=काम करके या सामान देकर उक्त प्रकार का ऋण चुकाना। उदा०—नित उठ कोरिया बेठ भरत है।...।—कबीर। | 
			
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				| बेठन					 : | पुं० [सं० वेष्ठन] वह वस्त्र जो किसी चीज को धूल, मिट्टी आदि से सुरक्षित रखने के उद्देश्य से उस पर लपेटा जाता है। पद—पोयी का बेठन=(क) जो कुछ भी पढ़ा-लिखा न हो। (ख) जो पढ़ा-लिखा होने पर भी किसी काम का न हो। | 
			
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				| बेठिकाने					 : | वि० [फा० बे+हि० ठिकाना] १. जो अपने स्थान पर न हो। स्थानच्युत। २. जिसका कोई ठौर-ठिकाना न हो। ३. जिसका कोई सिर-पैर न हो। ४. निरर्थक। व्यर्थ। अव्य० ठिकाने अर्थात् उपयुक्त या निश्चित स्थान पर न होकर किसी अन्य स्थान पर। अनुपयुक्त अवसर या स्थान पर। | 
			
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