| शब्द का अर्थ | 
					
				| बेसंदर					 : | पुं० [सं० वैश्वानर] अग्नि। | 
			
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				| बेस					 : | स्त्री० [सं० वयम्] उम्र। अवस्था। उदा०—बाल बेस ससि ता समीप, अम्रित रस पिन्निय।—चंदबरदाई। पुं० वि०=बेश।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बेसन					 : | पुं० [देश०] चने की दाल का चूर्ण। चने का आटा। | 
			
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				| बेसनी					 : | वि० [हिं० बेसन+ई (प्रत्य० )] १. बेसन का बना हुआ। जैसे—बेसनी लड्डू। २. जिसमें बेसन पड़ा या मिला हो। जैसे—बेसनी पूरी या रोटी। स्त्री० १. बेसन की बनी हुई पूरी। २. बेसन भरकर बनाई हुई कचौरी। | 
			
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				| बेसर					 : | स्त्री० [?] नाक में पहनने की एक तरह की बुलाक। पुं० १. गधा। २. खज्जर। ३. एक अंत्यज जाति। | 
			
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				| बेसरा					 : | वि० [फा० बे+सरा= ठहरने का स्थान] जिसके लिए ठहरने का कोई स्थान न हो। आश्रयहीन। पु० एक प्रकार की चिड़िया। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बेसवा					 : | स्त्री०=वैश्या। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बेसवार					 : | पुं० [देश०] वह सड़ाया हुआ मसाला जिससे शराब चुआई जाती है। | 
			
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				| बेसहना					 : | स०=बेसाहना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बेसा					 : | स्त्री०=वेश्या। पुं० भेस।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बेसाख्ता					 : | अव्य० [बे+साख़्तः] [भाव० बेसाख्तगी] बिलकुल आप से आप और स्वाभाविक रूप से। | 
			
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				| बेसारा					 : | वि० [हिं० बैठाना, गुज० बैसाना] १. बैठानेवाला। २. जमाकर रखने या स्थापित करनेवाला। | 
			
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				| बेसाहना					 : | स० [सं० व्यवसन] १. मोल लेना। खरीदना। २. जान-बूझकर अपने ऊपर लेना अथवा पीछे या साथ लगाना। बिसहना। जैसे—किसी से झगड़ा या बैर बेसाहना। | 
			
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				| बेसाहनी					 : | स्त्री० [हिं० बेसाहना] १ खरीदने या मोल लेने की किया या भाव। क्रय। २. मोल ली हुई चीज। सौदा। ३. जान-बूझकर अपने पीछे लगाई हुई चीज या बात।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बेसाहा					 : | पुं० [हिं० बेसाहना] १. खरीदी हुई चीज। सौदा। सामग्री। २. जान-बूझकर अपने ऊपर लिया हुआ संकट। | 
			
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				| बेसी					 : | स्त्री०=बेशी। वि०=बेश। | 
			
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				| बेसुध					 : | वि० [फा०+हिं० सुध-होश] १. जिसे सुध अर्थात् होश न हो। अचेत।बेहोश। २. जिसका होश-हवास ठिकाने न हो। बहुत घबराया हुआ। बद-हवास। | 
			
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				| बेसुधी					 : | स्त्री० [हिं, बेसुध+ई (प्रत्य०)] बेसुध होने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| बेसुर					 : | वि०=बेसुरा। | 
			
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				| बेसुरा					 : | वि० [हिं० बे+सुर=स्वर] १. जो नियमित स्वर में न हो। जो अपने नियत स्वर से हटा हुआ हो। (संगीत) जैसे—बेसुरा गाना। २. (व्यक्ति) जो ठीक स्वर में न गाता हो। ३. जो उपयुक्त अथवा ठीक अवसर या समय पर न हो। बे-मौका। | 
			
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				| बेसूद					 : | वि० [फा०] जिसमें कुछ भी लाभ न हो। बेफायदा। | 
			
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				| बेस्या					 : | स्त्री० [सं० वेश्या] १. रंडी। वेश्या। २. एक प्रकार की बर्रे जो देखने में बहुत सुन्दर होती है पर जिसका डंक बहुत जहरीला होता है। | 
			
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