| शब्द का अर्थ | 
					
				| बेहंगम					 : | वि० [सं० विहंगम] १. जो देखने में भद्दा हो। बेढंगा। २. बेढब। ३. विकट। | 
			
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				| बेहँसना					 : | अ०=विहँसना (ठठाकर हँसना)। | 
			
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				| बेह					 : | पुं० [सं० बेध] १. छेद। सुराख। २. दे० ‘वेध’। | 
			
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				| बेहर					 : | पुं० [?] पहाड़ी इलाकों में वह नीची और ऊबड़-खाबड़ भूमि जिसकी बहुत सी मिट्टी नदी या वर्षा के जल से बह गई हो, और जगह जगह गहरे गड्ढ़े पड़ गये हों। | 
			
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				| बेहड़					 : | वि० पुं०=बीहड़ पुं०=बेहट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बेहतर					 : | वि० [फा०] अपेक्षाकृत अच्छा। किसी की तुलना या मुकाबले में अच्छा। किसी से बढ़कर। अव्य० प्रार्थना या आदेश के उत्तर में स्वीकृति-सुचक अव्यय। अच्छा। (प्रायः इस अर्थ में इसका प्रयोग ‘बहुत’ शब्द के साथ होता है। जैसे—आप कल सुबह आइयेगा ? उत्तर—बहुत बेहतर। | 
			
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				| बेहतरी					 : | स्त्री० [फा०] १. बेहतर होने की अवस्था या भाव। अच्छापन। २. उपकार। भलाई। ३. कल्याण। मंगल। | 
			
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				| बेहद					 : | वि० [फ़ा०] १. जिसकी हद या सीमा न हो। असीम। अपार। २. बहुत अधिक। | 
			
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				| बेहन					 : | पुं० [सं० वपन] अनाज आदि का बीज जो खेत में बोया जाता है। बीया। कि० प्र०—डालना।—पड़ना। वि० [?] जर्द। पीला। | 
			
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				| बेहना					 : | पुं० [देश०] १. जुलाहों की एक जाति जो प्रायः रूई घुनने का काम करती है। २. धुनिया। | 
			
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				| बेहनौर					 : | पुं० [हिं० बेहन+और (प्रत्य०)] वह स्थान जहाँ धान या जड़हन का बीज डाला जाय। पनीर। बियाड़ा | 
			
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				| बेहर					 : | वि० [सं० विहृ ?] १. अचर। स्थावर। २. अलग। जुदा। पृथक्। उदा०—बेहर बेहर भाऊ तेन्ह खँड-खँड ऊपर जा।—जायसी। पुं० [?] वापी।= बावली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बेहरना					 : | अ० [हिं० बेहर] किसी चीज का फटना या तड़क जानआ। दरार पड़ना। | 
			
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				| बेहरा					 : | पुं० [देश०] १. एक प्रकार की घास जिसे चौपाये बहुत चाव से खाते हैं। (बुंदेल०) २. मूँज की घास जिसे चौपाये बहुत चाव से खाते हैं। (बुंदेल०) २. मूँज की बनी हुई गोल या चिपटी पिटारी जिसमें नाक में पहनने की नथ रखी जाती है। वि० [हिं० बेहर] अलग। जुदा। पृथक्। पुं०=बेयरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बेहराना					 : | सं० [हिं० बेहरना का स०] फाड़ना। | 
			
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				| बेहरी					 : | स्त्री० [सं० विहृति= बलपूर्वक लेना] १. किसी विशेष कार्य के लिए बहुत से लोगों से चंदे के रूप में माँगकर थोड़ा-थोड़ा धन इकट्ठा करने की क्रिया या भाव। क्रि० प्र०—उगाहना—माँगना। २. उक्त प्रकार से इकट्ठा किया हुआ धन। ३. वह किस्त जो असामी शिकमीदार को देता है। बाछा। | 
			
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				| बेहला					 : | पुं० [अं० वायोलिन] सारंगी की तरह का एक प्रकार का पाश्चात्य बाजा। | 
			
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				| बेहाई					 : | स्त्री० [फा बे-हयाई] बेहया होने की अवस्था या भाव। निर्लज्जता। बेशरमी। क्रि० वि० बे-हया बनकर। निर्लज्जता-पूर्वक। उदा०—आए नैन घाइ कै लीजै, आवत अब बेहया बेहाई।—सूर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बेहान					 : | पुं०=बिहान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बेही					 : | स्त्री० [?] नव विवाहित वर-बधू को गाँव के कुम्हारों द्वारा दिया जानेवाला नया बर्तन। (पूरब) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| बेहूदा					 : | वि० [फा० बेहूदः] १. (व्यक्ति) जिसे तमीज़ या समझ न हो और इसीलिए जो शिष्टता या सभ्यतापूर्वक आचरण या व्यवहार करना न जानता हो। (२. काम या बात) जो शिष्टता या सभ्यता ते विरुद्ध हो। अशिष्टता-पूर्ण। | 
			
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				| बेहूदापन					 : | पुं० [फा० बेहूदा+पन (प्रत्य०)] बेहुदा होने की अवस्था या भाव। बेहूदगी। अशिष्टता। | 
			
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