| शब्द का अर्थ | 
					
				| बोध					 : | पुं० [सं० बुध्+घञ्] १. किसी के अस्तित्व प्रकार, स्वरूप आदि का होनेवाला मानसिक भान। २. शब्दों के द्वारा होनेवाला किसी चीज या बात का ज्ञान। अर्थ। ३. तसल्ली। धीरज। सान्त्वना। | 
			
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				| बोधक					 : | वि० [सं०√बुध्+णिच्-ण्वुल्-अक] १. बोध या ज्ञान करानेवाला। जतानेवाला। ज्ञापक। पुं० [सं०] श्रृगार रस के हावों में से एक हाव जिसमें किसी संकेत या क्रिया द्वारा एक-दूसरे को अपना मनोगत भाव जताया जाता है। | 
			
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				| बोधगम्य					 : | वि० [सं०] (विषय) जिसका बोध हो सके। समझ में आने योग्य। | 
			
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				| बोधन					 : | पुं० [सं०√बुध्+णिच्+ल्युट—अन] १. बोध या ज्ञान कराने की क्रिया या भाव। ज्ञापन। जताना। २. सोते हुए को जगाना। ३. अग्नि, दीपक आदि प्रज्वलित करना। ४. तेज या प्रबल करना। उद्दीपन। ५. मंत्र आदि सिद्ध करना या जगाना। | 
			
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				| बोधना					 : | स० [सं० बोधन] १. बोध या ज्ञान कराना। जताना। २. कुछ कह-सुनकर संतुष्ट या शांत कराना। समझाना-बुझाना उदाहरण—मुकता पानिस सरिस स्वच्छ कहिं कछु मन बोधत।—रत्ना। ३. उद्दीप्त या प्रज्वल्लित करना। | 
			
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				| बोधनी					 : | स्त्री० [सं० बोधन+ङीष्] १. प्रबोधिनी एकादशी। २. पिप्पली। | 
			
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				| बोधव्य					 : | वि० [सं० बोद्धव्य] १. जिसका बोध प्राप्त किया जा सकता हो या किया जाने को हो। २. जिसे किसी बात का बोध कराया जा सके या कराया जाय। | 
			
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				| बोधि					 : | पुं० [सं०√बुध्+इन्] १. एक प्रकार की समाधि। २. पीपल का पेड़। | 
			
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				| बोधित					 : | भू० कृ० [सं०√बुध् (जानना)+णिच्+क्न, गुण, इट्] जिसे बोध हो चुका हो। | 
			
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				| बोधि तरु					 : | पुं० [सं० कर्म० स०] दे० ‘बोधिवृक्ष’। | 
			
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				| बोधितव्य					 : | वि० [सं०√बुध्+णिच्+तव्य] जानने योग्य। | 
			
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				| बोधिद्रुम					 : | पुं० दे० ‘बोधिवृक्ष’। | 
			
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				| बोधिवृक्ष					 : | पुं० [सं० कर्म० स०] बुद्धगया में पीपल का वह वृक्ष जिसके नीचे बुद्ध को बोध हुआ था। | 
			
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				| बोधिसत्व					 : | पुं० [सं० उपमि० स०] वह जो बुद्धत्व प्राप्त प्राप्त करने का अधिकारी हो, पर बुद्ध न हो पाता हो। (बौद्ध) | 
			
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				| बोधी (धिन्)					 : | वि० [सं० बोध+इनि] जाननेवाला। | 
			
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				| बोध्य					 : | वि० [सं०√बुध् (जानना)+ण्यत्] जानने योग्य। | 
			
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