| शब्द का अर्थ | 
					
				| महाल					 : | पुं० [अ० महल का बहु० रूप] १. महल्ला। टोला। २. कोई ऐसी चीज या जगह जिसमें एक ही तरह के बहुत से जीव एक साथ रहते हों जैसे—शहद की मक्खियों का महाल अर्थात् छत्ता। ३. जमीन के बन्दोबस्त के काम के लिए किया हुआ जमीन का ऐसा विभाग, जिसमें कई गाँव होते हैं। ४. मध्य युग में ऐसी जमींदारी जिसमें बहुत सी पट्टियाँ या हिस्सेदार होते थे। वि० =मुहाल (बहुत कठिन या दुष्कर)। | 
			
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				| महालक्ष्मी					 : | स्त्री० [सं० महती-लक्ष्मी, कर्म० स०] १. लक्ष्मी देवी की एक मूर्ति। २. एक कन्या जो दुर्गापूजा के उत्सव में दुर्गा का रूप धारण करती हैं। ३. नारायण की एक शक्ति। ४. एक प्रकार का वर्णिक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में तीन रगण होते हैं। | 
			
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				| महालय					 : | पुं० [सं० महत्-आलय, कर्म० स०] १. महाप्रलय। २. पितृपक्ष। ३. तीर्थ। ४. नारायण। | 
			
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				| महालया					 : | स्त्री० [सं० महालय+टाप्] आश्विन् कृष्ण अमावस्या, यह पितृ-विसर्जन का दिन है। | 
			
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				| महालिंग					 : | पुं० [सं० महत्-लिंग, ब० स०] महादेव। | 
			
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				| महालेखापाल					 : | पुं० [सं० महत्-लेखापाल, कर्म० स०] वह लेखपाल जिसकी अधीनता तथा निरीक्षण में अन्य लेखपाल विशेषतः किसी सार्वजनिक विभाग के सब लेखपाल काम करते हों। (अकाउंटेंट जनरल)। | 
			
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				| महालोक					 : | पुं० [सं० महत्-लोक, कर्म० स०]ऊपर से सात लोकों में से चौथा लोक। महालोक। | 
			
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				| महालोध्र					 : | पुं० [सं० महत्-लोध्र, कर्म० स०] पठानी लोध। | 
			
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				| महालोल					 : | पुं० [सं० महत्-लोल, कर्म० स०] कौआ। | 
			
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				| महालौह					 : | वि० [सं० महत्-लौह, कर्म० स०] चुम्बक। | 
			
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