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मुख्य  : वि० [सं० मुख+यत्] [भाव० मुख्यता] १. जो सब से आगे बढ़ा हुआ या ऊपर और मुख के रूप में हो। प्रधान। खास। २. (अन्यों की अपेक्षा) अधिक आवश्यक महत्त्वपूर्ण या सारभूत। जैसे—अपने भाषण में उन्होंने मुख्य बात यही कही कि...। ३. अपने वर्ग का सबसे बड़ा। जैसे—मुख्य मंत्री, मुख्य न्यायाधीश। पुं० १. यज्ञ का पहला कल्प। २. वेदों का अध्ययन और अध्यापन. ३. अमांत मास।
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मुख्य-चांद्रमास  : पुं० [सं० कर्म० स०] चांद्र मास के दो भेदों में से एक जो शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होकर अमावस्या को समाप्त होता है। इसी को ‘अमांत’ भी कहते हैं। (दूसरा) भेद ‘गौण’ चांद्र ‘मास’ या ‘पूर्णिमांत’ कहलाता है।
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मुख्यतः (तस्)  : अव्य० [सं० मुख्य√तस्] मुख्य रूप से।
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मुख्यता  : स्त्री० [सं० मुख्य+तल्+टाप्] मुख्य होने की अवस्था, गुण या भाव।
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मुख्य-मन्त्री (त्रिन्)  : पुं० [सं० कर्म० स०] भारतीय गणतंत्र के किसी राज्य (प्रांत) का सबसे बड़ा मंत्री। राज्य के मंत्रियों में सबसे बड़ा मंत्री। (चीफ मिनिस्टर)।
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मुख्य-सर्ग  : पुं० [सं० कर्म० स०] स्थावर सृष्टि।
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मुख्याधिष्ठाता (तृ)  : पुं० [सं० मुख्य-अधिष्ठातृ, कर्म० स०] किसी स्थान विशेषतः शिक्षा-संस्था का प्रधान अधिकारी और व्यवस्थापक। जैसे—गुरुकुल के मुख्याधिष्ठाता।
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मुख्यालय  : पुं० [सं० मुख्य-आलय, कर्म० स०] १. किसी संस्था का केन्द्रीय और प्रधान स्थान कार्यालय। २. किसी बड़े अधिकारी या व्यक्ति का मुख्य निवास स्थान (हेड क्वार्टर)।
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