| शब्द का अर्थ | 
					
				| मूँग					 : | पुं० [सं० मुदग्] एक प्रसिद्ध अन्न जिसकी दाल बनती है। पद—मूँग की दाल खानेवाला=डरपोक, निकम्मा या पुरुषार्थहीन। मुहावरा—(किसी पर) मूँग पढ़कर मारना=किसी प्रकार का तांत्रिक उपचार विशेषतः वशीकरण करने के लिए मंत्र पढ़ते हुए किसी पर मूँग के दाने फेंकना। (किसी की) छाती पर मूँग दलना=किसी को दिखलाते हुए ऐसा काम करना जिससे उसे ईर्ष्या या जलन हो, अथवा हार्दिक कष्ट हो। | 
			
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				| मूँगफली					 : | स्त्री० [हिं० भूस (भूमि)+फली] १. जमीन पर चारों ओर फैलनेवाला एक प्रकार का क्षुप जिसकी खेती उसके फलों के लिए प्रायः सारे भारत में की जाती है। इसकी जड़ में मिट्टी के अन्दर फल लगाते है, जिसके दाने या बीज रूप-रंग और स्वाद में बादाम से बहुत कुछ मिलते-जुलते होते हैं। २. इस क्षुप का फल। चिनिया बादाम। बिलायती मूँग। (संस्कृत में इसे भू-चरणक और भू-शिबिका कहते हैं)। | 
			
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				| मूँगर (ा)					 : | पुं० [स्त्री० अल्पा० मूँगरी]=मोंगरा। | 
			
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				| मूँगरी					 : | स्त्री० [?] एक प्रकार की तोप। | 
			
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				| मूँगा					 : | पुं० [हिं० मूँग] १. समुद्र में रहनेवाले हर प्रकार के कीड़ों के समूह-पिंड की लाल ठठरी जिसकी गुरिया बनाकर पहनते हैं। इसकी गिनती रत्नों में की जाती है। (कोरल) २. एक प्रकार का गन्ना। पुं० =मोग (रेशम)। | 
			
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				| मूँगिया					 : | वि० [हिं० मूँग+इया (प्रत्यय)] मूँग के दानों के रंग का। पुं० १. उक्त प्रकार का अमौआ या हरा रंग जिसमें कुछ नीली आभा भी होती है। मुंगी। २. उक्त रंग का पुरानी चाल का एक प्रकार का धारीदार कपड़ा। | 
			
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				| मूँगी					 : | वि० [हिं० मूँगा] मूंगे के रंग की तरह का लाल। पुं० उक्त प्रकार का लाल रंग। (कोरल) | 
			
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