| शब्द का अर्थ | 
					
				| यथार्थ					 : | अव्य० [सं० यथा—अर्थ, अव्य० स०] १. जो अपने अर्थ (आशय, उद्देश्य, भाव आदि) आदि के ठीक अनुरूप हो। ठीक। वाजिब। उचित २. जैसा होना चाहिए, ठीक वैसा। विशेष—यथार्थ और वास्तविक का अन्तर जानने के लिए दे० ‘वास्तविक’ का विशेष। ३. सत्यपूर्वक। | 
			
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				| यथार्थतः (तस्)					 : | अव्य० [सं० यथार्थ+तस्] १. अपने यथार्थ रूप में। वास्तव में। वस्तुतः। सचमुच। २. दे० ‘वस्तुतः’। | 
			
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				| यथार्थता					 : | स्त्री० [सं० यथार्थ+तल्—टाप्] १. यथार्थ होने की अवस्था या भाव। २. सचाई। सत्यता। २. दे० ‘वास्तविकता’। | 
			
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				| यथार्थवाद					 : | पुं० [सं० ष० त०] १. दार्शनिक क्षेत्र में, प्लेटो द्वारा प्रवर्तित यह मर्त किसी पद से जिस अमूर्त कि या मूर्त बात या वस्तु का बोध होता है, वह स्वतंत्र सत्तावाली इकाई होती है। २. आज-कल साहित्यिक क्षेत्र में, (आदर्शवाद से भिन्न) यह मत या सिद्धान्त कि प्रत्येक घटना या बात अपने यथार्थ रूप में अंकित या चित्रित की जानी चाहिए (रियालिज्म)। विशेष— इसमें आदर्शों का ध्यान छोड़कर उसी रूप में कोई चीज या बात लोगों के सामने रखी जाती है, जिस रूप में वह नित्य या प्रायः सबके सामने आती रहती है। इसमें कर्ता न तो अपनी ओर से टीका-टिप्पणी करता है न अपना दृष्टिकोण बतलाता है और निष्कर्ष निकालने का काम दर्शकों या पाठकों पर छोड़ देता है। | 
			
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				| यथार्थवादी (दिन्)					 : | वि० [सं० यथार्थवाद+इनि] १. यथार्थवाद से सम्बन्ध रखनेवाला। २. यथार्थवाद के अनुरूप होनेवाला। ३. सत्यवादी। पुं० यथार्थवाद के सिद्धान्तों का समर्थक। | 
			
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