| शब्द का अर्थ | 
					
				| यव					 : | पुं० [सं०√यु (मिश्रण)+अप्] १. जौ नामक एक प्रसिद्ध अन्न जिसका पिसान, सत्तू आदि मनुष्य खाते हैं। २. उक्त अन्न का पौधा। ३. प्राचीन काल की एक तौल जो जौ के एक दाने अथवा सरसों के बारह दानों के बराबर होती थी। ४. लंबाई की एक नाप जो एक इंच की एक तिहाई होती है। ५. सामुद्रिक में हथेली आदि में होनेवाला एक शुभ लक्षण जो जौ के दाने की आकृति का होता है। ६. कोई ऐसी वस्तु जो दोनों ओर उन्नतोदर हो। | 
			
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				| यवक					 : | पुं० [सं० यव+कन्] जौ। | 
			
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				| यवक्य					 : | वि० [सं० यवक+यत्] (खेत) जो जौ की बोआई के लिए उपयुक्त हो। | 
			
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				| यव-क्रीत					 : | पुं० [सं० तृ० त०] भरद्वाज के पुत्र एक ऋषि। | 
			
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				| यव-क्षार					 : | पुं० [मध्य० स०] जवाखार (दे०)। | 
			
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				| यव-चतुर्थी					 : | स्त्री० [मध्य० स०] वैशाख शुक्ला-चतुर्थी। | 
			
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				| यवज					 : | पुं० [सं० यव√जन् (उत्पत्ति)+ड] १. जवाखार। २. गेहूँ का पौधा। ३. अजवायन। वि० यव से उत्पन्न या प्राप्त होनेवाला। | 
			
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				| यव-तिक्ता					 : | स्त्री० [उपमित० स०] शंखिनी (लता)। | 
			
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				| यव-दोष					 : | पुं० [सं० ष० त०] कुछ रत्नों में होनेवाला जौ के आकार का चिन्ह जिसकी गिनती दोषों में होती है। | 
			
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				| यव-द्वीप					 : | पुं० [मध्य० स०] जावा (द्वीप)। | 
			
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				| यवन					 : | पुं० [सं०√यु+युच्] [स्त्री० यवनी] १. वेग। तेजी। २. तेज चलनेवाला घोड़ा। ३. प्राचीन भारत में यूनान से आये हुए लोगों की संज्ञा। ४. परवर्ती भारत में मुसलमानों की संज्ञा। ५. कालयवन नामक म्लेच्छ राजा जो कृष्ण से कई बार लड़ा था। | 
			
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				| यवन-प्रिय					 : | पुं० [ष० त०] मिर्च। | 
			
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				| यवनाचार्य					 : | पुं० [यवन-आचार्य, ष० त०] एक प्रसिद्ध यवन ज्योतिषाचार्य। ताजिकशास्त्र, रमलामृत आदि ग्रन्थों के रचयिता। | 
			
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				| यवनानी					 : | स्त्री० [सं० यवन+ङीष्, आनुक] १. यूनान की भाषा। २. प्राचीन भारत में, यवनों की लिपि। | 
			
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				| यवनारि					 : | पुं० [यवन-अरि, ष० त०] श्रीकृष्ण, जो कालयवन के शत्रु थे। | 
			
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				| यवनाल					 : | स्त्री० [ब० स०] १. ज्वार का पौधा। २. ज्वार के दाने। ज्वार। ३. जौ के सूखे डंठल जो पशुओं को चारे के रूप में खिलाये जाते हैं | 
			
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				| यवनालज					 : | पुं० [सं० यव-नाल, ष० त०√जन्+ड] जवाखार। यवक्षार। | 
			
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				| यव-नाश्व					 : | पुं० [सं०] मिथिला के एक प्राचीन राजा जो बहुलाश्व का पिता था। | 
			
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				| यवनिका					 : | पुं० [सं०√यु+ल्युट-अन, ङीष्+कन्, टाप्, इत्व] १. कनात। २. परदा। ३. रंगमंच का परदा। | 
			
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				| यवनी					 : | स्त्री० [सं०√यु+ल्युट-अन+ङीष्] १. यूनान देश की स्त्री। २. यवन जाति की स्त्री। ३. विशेषतः मुसलमान स्त्री। | 
			
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				| यवनेष्ट					 : | पुं० [सं० यवन-इष्ट, ष० त०] १. सीसा। २. मिर्च। ३. गाजर। ४. शलजम। ५. प्याज। ६. लहसुन। ७. नीम। | 
			
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				| यव-फल					 : | पुं० [सं० ब० स०] १. इंद्र जौ। २. कुटज। ३. प्याज। ४. बाँस। ५. जटामासी। ६. पाकर नामक वृक्ष। | 
			
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				| यव-बिंदु					 : | पुं० [सं० ब० स०] वह हीरा जिसमें बिन्दु सहित यवरेखा हो। | 
			
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				| यव-मंड					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] जौ का माँड़ जो पथ्य रूप में कुछ विशिष्ट प्रकार के रोगियों को दिया जाता है। | 
			
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				| यव-मंथ					 : | पुं० [सं० ष० त०] जौ का सत्तू। | 
			
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				| यवमती					 : | स्त्री० [सं० यव+मतुप+ङीष्] एक प्रकार का वर्ण वृत्त जिसके विषम चरणों में क्रमशः रगण, जगण और जगण तथा सम चरणों में क्रमशः जगण, रगण और गुरु होता है। | 
			
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				| यव-मद्य					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] सडा़ये हुए जौ के खमीर से बनी हुई शराब। | 
			
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				| यव-मध्य					 : | पुं० [सं० ब० स०] १. एक प्रकार का चांद्रायण व्रत। २. पाँच दिनों में समाप्त होनेवाला एक प्रकार का यज्ञ। ३. एक प्राचीन नाप। | 
			
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				| यव-रस					 : | पुं० [सं०] जौ आदि अनाजों के दानों को पानी में फुलाकर उनसे निकाला जानेवाला सार भाग जिसका प्रयोग मादक द्रव्य प्रस्तुत करने में होता है और औषधों में जिसका प्रयोग पौष्टिक तत्त्व के रूप में होता है। (माल्ट)। | 
			
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				| यव-लास					 : | पुं० [सं० ब० स०] जवाखार। | 
			
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				| यव-वर्णाभ					 : | पुं० [सं० यव-वर्ण, ष० त० यववर्ण-आभा, ब० स०] सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार का जहरीला कीड़ा। | 
			
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				| यव-शर्करा					 : | स्त्री० [सं०] रासायनिक प्रक्रिया से जौ से बनाई जानेवाली चीनी (माल्टोज) | 
			
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				| यव-शूक					 : | पुं० [सं० ष० त०+अच्] जवाखार। | 
			
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				| यव-श्राद्ध					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का श्राद्ध जो वैशाख के शुक्ल पक्ष में कुछ विशिष्ट दिनों और योगों में तथा विषुव संक्रांति अथवा अक्षय तृतीया के दिन होता है। इनमें जौ के आटे का व्यवहार होता है। | 
			
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				| यवस					 : | पुं० [सं०√यु+असच्] १. घास। २. भूसा। | 
			
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				| यवागू					 : | पुं० [सं० यु+आगूच्] १. जौ अथवा किसी अन्य उबाले हुए अन्न की माँड़। २. उक्त माँड़ की काँजी। | 
			
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				| यवाग्र					 : | पुं० [सं० यव-अग्र, ष० त०] जौ का भूसा। | 
			
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				| यवाग्रज					 : | पुं० [सं० यवाग्र√जन् (उत्पत्ति)+ड] १. यवक्षार। २. अजवायन। | 
			
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				| यवास (क)					 : | पुं० [सं०√यु+आस] जवासा (क्षुप)। | 
			
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				| यविष्ठ					 : | पुं० [सं० युवन्+इष्ठन्, यवादेश] १. छोटा भाई २. अग्नि। आग। ३. ऋग्वेद के एक मंत्रद्रष्टा ऋषि। अग्नियविष्ठ। वि० १. सबसे छोटा। कनिष्ठ। २. नौजवान। युवा। | 
			
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				| यवीनर					 : | पुं० [सं०] १. पुराणानुसार (क) अजमीढ़ का एक पुत्र। (ख) द्विमीढ़ का एक पुत्र। | 
			
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				| यवीयान् (यस्)					 : | पुं० वि० [सं० युवन्+ईयसुन्, यवादेश]=यविष्ठ। वि० [सं०] १. यव, संबंधी। यवका २. यव या जौ से बना हुआ। | 
			
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				| यव्य					 : | पुं० [सं० यव+यत्]=यव-रस। | 
			
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