| शब्द का अर्थ | 
					
				| रंजन					 : | पुं० [सं०√रंज्+ल्युट-अन] १. रंगने की क्रिया या भाव। २. वे पदार्थ जिनसे रंग निकलते या बनते हों ३. चित्त प्रसन्न करने की क्रिया या भाव। ४. शरीर में का पित्त नामक तत्त्व। ५. लाल चन्दन। ६. मूँज। ७. सोना। ८. जायफल। ९. कभीला नामक वृक्ष। १॰. छप्पय छंद के पचासवें भेद का नाम। वि० [स्त्री० रंजना] चित्त प्रसन्न करनेवाला। जैसे—चित्त रंजन। | 
			
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				| रंजनक					 : | पुं० [सं० रंजन+कन्] कटहल। | 
			
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				| रंजना					 : | स० [सं० रंजन] १. रंजन करना। २. मन प्रसन्न करना। आनंदित करना। ३. मन लगाकर किसी को भजना या बार-बार स्मरण करना। ४. दे० ‘रँगना’। वि० स्त्री० रंजन करनेवाली। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| रंजनी					 : | स्त्री० [सं० रंजन+ङीष्] १. ऋषभ स्वर की तीन श्रुतियों में से दूसरी श्रुति (संगीत) २. संगीत में कर्णाटकी पद्धति की एक रागिनी। ३. नीली नामक पौधा। ४. मंजीठ। ५. हलदी। ६. पर्पटी। ७. नागवल्ली। ८. जतुका लता। पहाड़ी। | 
			
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				| रंजनीय					 : | वि० [सं०√रंज्+अनीयर] १. जो रँगे जाने के योग्य हो। २. जिसका चित्त प्रसन्न किया जा सकता हो या किया जाने को हो। | 
			
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