| शब्द का अर्थ | 
					
				| रतन					 : | पुं० =रत्न। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| रतन-जोत					 : | स्त्री० [सं० रत्न-ज्योति] १. एक प्रकार की मणि। २. एक प्रकार की सुगंधित लकड़ी जिसकी छाल से लाल रंग तैयार किया जाता या तेल आदि रँगा जाता है। ३. बड़ी दंती। | 
			
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				| रतनाकर					 : | पुं० १. दे० ‘रत्नाकर’। २. दे० ‘रतन-जोत’। | 
			
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				| रतनागर					 : | पुं० =रत्नाकर। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| रतनागरभ					 : | स्त्री० [सं० रत्नगर्भा] पृथ्वी। भूमि। (डि०) | 
			
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				| रतनार					 : | वि० =रतनारा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| रतनारा					 : | वि० [सं० रक्त, प्रा० रत्त अथवा रत्न=मानिक+आर (प्रत्यय)] लाल रंग का। सुर्ख। | 
			
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				| रतनारी					 : | पुं० [हिं० रतनार+ई (प्रत्यय)] एक प्रकार का धान। स्त्री० लाली। सुर्खी। वि०=रतनार। | 
			
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				| रतनारीच					 : | पुं० [सं० स० त०] १. कामदेव। २. कामुक और लंपट व्यक्ति। | 
			
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				| रतनालिया					 : | वि० =रतनारा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| रतनावली					 : | स्त्री०=रत्नावली। | 
			
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