शब्द का अर्थ
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					वाद					 :
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					पुं० [सं०√वद्+घञ्] १. कुछ कहना या बोलना। २. वह जो कुछ कहा जाय। उक्ति। कथन। ३. किसी कथन के समर्थन के लिए उपस्थित किया जानेवाला तर्क। दलील। ४. किसी बात विशेषतः सैद्धांतिक बात के संबंध में दोनों ओर से कही जानेवाली बातें। तर्क-वितर्क। विवाद। बहस। ५. अफवाह। किवदन्ती। ६. विचार के लिए न्यायालय में उपस्थित किया जानेवाला अभियोग। मुकदमा। (सूट) ७. कला, विज्ञान या कल्पना मूलक किसी विषय के संबंध में नियमों, सिद्धांतों आदि के आधार पर स्थिर किया हुआ वह व्यवस्थित मत जो कुछ क्षेत्रों में प्रामाणिक और मान्य समझा जाता हो। (थियरी) जैसे– विकासवाद, सापेक्षवाद। ८. कोई ऐसा त्तत्व या सिद्धांत जो तत्त्वज्ञों का विशेषज्ञों द्वारा नियत या निश्चित हुआ हो। (इज़्म)। विशेष–इस अंतिम अर्थ में इसका प्रयोग कुछ संज्ञाओं के अन्त में प्रत्यय के रूप में होता है। जैसे–छायावाद, रहस्यवाद साम्यवाद आदि।				 | 
			
			
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					वादऋणी					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] न्यायालय ने जिसे अपने फैसले में ऋणी ठहराया है। (जजमेंट क्रिडेटर)				 | 
			
			
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					वादक					 :
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					वि० [सं०√वद् (कहना)+णिच्+ण्वुल-अक] १. कहने या बोलनेवाला। २. वाद-विवाद करनेवाला। ३. बाजा बजानेवाला।				 | 
			
			
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					वाद-ग्रस्त					 :
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					वि०=विवादग्रस्त।				 | 
			
			
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					वाद-चंचु					 :
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					पुं० [स० त०] शास्त्रार्थ करने में पटु। वाद-विवाद करने में दक्ष।				 | 
			
			
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					वाददंड					 :
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					पुं० [ष० त०] सारंगी आदि बाजे बजाने की कमानी।				 | 
			
			
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					वादन					 :
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					पुं० [सं०√वद् (कहना)+णिच्+ल्युट-अन] १. कहने या बोलने की क्रिया। २. बाजा बजाना। ३. बाजा। वाद्य। ४. वादक।				 | 
			
			
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					वादनक					 :
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					पुं० [सं० वादन+कन्] बाजा।				 | 
			
			
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					वाद-पद					 :
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					पुं० [सं०] विधिक क्षेत्र में किसी वाद या दीवानी मुकदमे से संबंध रखनेवाली वे विवादास्पद और विचारणीय बातें जो पहले पक्ष की ओर से दावे के रूप में कही जाती हों, परन्तु दूसरा पक्ष जिनसे इन्कार करता हो। तनकीह। (इश्यू) विशेष—न्यायालय ऐसी ही बातों के सत्यासत्य का विचार करके उनके आधार पर मुकदमे का निर्णय करता है। यह दो प्रकार का होता है–विधि वाद-पद जिमसें केवल कानूनी दृष्टि से विचारणीय बातें आती हैं और तथ्य वाद-पद जिसमें तथ्य अर्थात् वास्तविक घटनाओं से संबंध रखनेवाली बातें आती हैं। इन्हें क्रमात् इश्यू ऑफ लाँ और इश्यू आँफ फ़ैक्ट्स कहते हैं।				 | 
			
			
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					वाद-प्रतिवाद					 :
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					पुं० [सं० द्व० स०] दो पक्षों या व्यक्तियों में किसी विषय पर होनेवाला खंडन-मंडन और तर्क-वितर्क।				 | 
			
			
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					वाद-मूल					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] वह मूल कारण जिसके आधार पर कोई मुकदमा या व्यवहार न्यायालय में विचारार्थ उपस्थित किया जाता है। (कॉज आँफ ऐक्शन)।				 | 
			
			
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					वादर					 :
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					पुं० [सं० वदर+अण्] १. कपास का पौधा। २. सूती कपड़ा। ३. बेर का पेड़। वि० सूती कपड़े का बना हुआ।				 | 
			
			
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					वादरायण					 :
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					पुं० [सं० वदर+अयन, ष० त०+अण्] बादरायण (वेदव्यास)।				 | 
			
			
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					वादरायणि					 :
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					पुं०=वादरायणि (शुकदेव)।				 | 
			
			
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					वाद-विवाद					 :
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					पुं० [सं० द्व० स०] १. वाद-प्रतिवाद। २. वह विचारपूर्ण बात-चीत जो किसी निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए होती है। (डिस्कशन)।				 | 
			
			
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					वाद-विषय					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] वाद-मूल। (दे०)				 | 
			
			
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					वाद-व्यय					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] किसी वाद या मुकदमे में होनेवाला उचित और नियमित व्यय (कास्टस)।				 | 
			
			
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					वाद-साधन					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] १. अपकार करना। २. तर्क करना।				 | 
			
			
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					वाद-हेतु					 :
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					पुं० [सं० ष० त०]=वाद-मूल।				 | 
			
			
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					वादा					 :
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					पुं० [अ० वाइदः] १. किसी काम या बात के लिए नियत किया हुआ समय। २. किसी से दृढ़ता और निश्चयपूर्वक यह कहना कि हम तुम्हारे लिए अमुक काम करेंगे या तुम्हें अमुक चीज देंगे। प्रतिज्ञा। वचन। क्रि० प्र०– पूरा करना। ३. दे० ‘वायदा’।				 | 
			
			
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					वादा-खिलाफी					 :
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					स्त्री० [अ०+फा०] वादा पूरा न करना। प्रतिज्ञा का पालन न करना।				 | 
			
			
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					वादानुवाद					 :
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					पुं० [सं० द्व० स०]=वाद-प्रतिवाद।				 | 
			
			
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					वादिक					 :
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					वि० [सं० वादि+कन्] कहनेवाला। पुं० १. जादूगर। २. भाट। चारण। ३. तार्किक।				 | 
			
			
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					वादित					 :
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					भू० कृ० [सं०√वद् (कहना)+णिच्+क्त] जिसमें से नाद या स्वर उत्पन्न किया गया हो। बजाया हुआ।				 | 
			
			
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					वादित्र					 :
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					पुं० [सं०√वद् (कहना)+णिच्+इत्र] वाद्य। बाजा।				 | 
			
			
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					वादींद्र					 :
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					पुं० [सं० स० त०] मंजुघोष का एक नाम।				 | 
			
			
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					वादी					 :
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					वि० [सं० वादिन्] १. बोलनेवाला। वक्ता। २. जो किसी वाद से सम्बन्ध रखता हो या उसका अनुयायी हो। जैसे—समाजवादी। पुं० १. वह जो कोई ऐसा विषय उपस्थित करे जिस पर विचार होने को हो या दूसरों को जिसका खंडन अथवा विरोध करना पड़े। २. वह जो न्यायालय में किसी के विरुद्ध कोई अभियोग उपस्थित करे। फरियादी। मुद्दई। २. संगीत में वह स्वर जो किसी राग में सर्वप्रमुख होता है, और जिसका उपयोग और स्वरों की अपेक्षा अधिक होता है। इसी स्वर पर ठहराव भी अपेक्षया अधिक होता है और इसी के प्रयोग से उस राग में जान भी आती है और उसकी शोभा भी होती है। जैसे—यमन राग में गांधार स्वर वादी होता है। स्त्री०=आई (वात की अधिकता या जोर)। (पश्चिम) वि०=वातग्रस्त। जैसे—वादी शरीर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					वादीवदि					 :
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					क्रि० वि० [सं० वाद से] कह-बदकर। दृढ़तापूर्वक कह कर। उदा०–बहुतै कटकि माहि वादीवदि।—प्रिथीराज।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					वाद्य					 :
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					पुं० [सं०√वद् (कहना)+णिच्+यत्] १. बाजा बजाना। २. बाजा।				 | 
			
			
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					वाद्यक					 :
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					पुं० [सं० वाद्य√कन्] बाजा बजानेवाला।				 | 
			
			
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					वाद्य-वृंद					 :
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					पुं० [सं०] १. अनेक प्रकार के बहुत से बाजों का समूह। २. उक्त प्रकार के बाजों का वह संगीत जो ताल, लय आदि के विचार से एक साथ बजने पर होता है। (आर्केस्ट्रा)				 | 
			
			
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					वाद्य-संगीत					 :
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					पुं० [सं०] ऐसा संगीत जिसमें केवल वाद्य या बाजे ही बजते हों, कंठ संगीत बिलकुल न हो। (इन्स्ट्रूमेंटल म्यूजिक)				 | 
			
			
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