शब्द का अर्थ
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					विश्वक					 :
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					वि० [सं०] १. विश्व-संबंधी। २. जिसका प्रभाव, प्रसार आदि विश्व-व्यापी हो (यूनीवर्सल)।				 | 
			
			
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					विश्वकर्ता					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] विश्व का स्रष्टा। ईश्वर।				 | 
			
			
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					विश्वकर्मा (र्म्मन्)					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] १. समस्त संसार की रचना करनेवाला अर्थात् ईश्वर। २. ब्रह्मा। ३. सूर्य। ४. शिव। ५. वैद्यक में शरीर की चेतना नामक धास्तु। ६. एक शिल्पकार जो देवताओं के शिल्पी और वास्तु कला के सर्वश्रेष्ठ आचार्य माने गए है। ७. इमारत का काम करनेवाले राज, बढ़ई लोहार आदि।				 | 
			
			
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					विश्वकाय					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] सारा विश्व जिसका शरीर हो, अर्थात् विष्णु।				 | 
			
			
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					विश्वकाया					 :
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					स्त्री० [सं० विश्वकाय+टाप्] दुर्गा।				 | 
			
			
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					विश्वकार					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] विश्वकर्मा।				 | 
			
			
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					विश्वकार्य					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] सूर्य की सात किरणों का या रश्मियों में से एक।				 | 
			
			
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					विश्वकृत्					 :
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					पुं० [सं०] १. विश्व का निर्माता अर्थात् ईश्वर। २. विश्वकर्मा।				 | 
			
			
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					विश्वकेतु					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] (कृष्ण के पौत्र) अनिरुद्ध।				 | 
			
			
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					विश्वकोश					 :
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					पुं० [सं०] ऐसा कोश या भंडार जिसमें संसार भर के पदार्थ संगृहीत हो। २. ऐसा विशाल ग्रन्थ जिसमें ज्ञान-विज्ञान की समस्त शाखाओं, प्रशाखाओं तथा महत्वपूर्ण बातों का विश्लेषण तथा विवेचन होता है (एनसाइक्लोपीडिया) विशेष—विश्व कोश में विभिन्न विषयों के बड़े-बड़े विद्वानों के लिखे हुए ग्रन्थों,निबंधों,विवेचनों आदि के सारांश संकलित होते हैं और उन विषयों के शीर्षक प्रायः अक्षर-क्रम से लगे रहते हैं।				 | 
			
			
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