शब्द का अर्थ
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					वीतंस					 :
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					पुं० [वि√तंस् (भूषित करना)+घञ्] वह (जाल या पिजरा) जिसमें पशु-पक्षी फँसाये या रखे जाते हैं।				 | 
			
			
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					वीत					 :
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					वि० [सं०√वी+क्त,वि√इ+क्त] १. गया या बीता हुआ। २. स्वतंत्र किया हुआ। ३. जो अलग या पृथक् हो गया हो। ४. ओझल। ५. युद्ध करने के लिए उपयुक्त। ६. किसी काम या बात से मुक्त या रहित। जैसे—वीतचिन्त, वीतराग। पुं० १. ऐसी चीज जो पुरानी होने के कारण काम आने के योग्य न रह गई हो। विशेष—प्राचीन भारत में बुड्ढे घोड़े, हाथी, सैनिक आदि वीत कहे जाते थे। २. अनुमान के दो भेदों में से एक।				 | 
			
			
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					वीतक					 :
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					पुं० [सं० वीत+कन्] १. कपूर और चन्दन का चूर्ण रखने का पात्र। २. घिरी हुई जमीन। बाड़ा।				 | 
			
			
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					वीत-मल					 :
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					वि० [सं०] १. मल से रहित निर्मल। २. निष्पाप।				 | 
			
			
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					वीतराग					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] १. ऐसा व्यक्ति जिसने सांसारिक आसक्ति का परित्याग कर दिया हो। वह जो निस्पृह हो गया हो। राग-रहित। ३. गौतम बुद्ध। ३. जैनों के एक प्रधान देवता।				 | 
			
			
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					वीतसूत्र					 :
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					पुं० [सं०] यज्ञोपवीत। √ जनेऊ।				 | 
			
			
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					वीतहव्य					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] वह जो यज्ञ में आहुति या हव्य देता हो।				 | 
			
			
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					वीतहोत्र					 :
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					पुं० वीतिहोत्र।				 | 
			
			
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					वीति					 :
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					स्त्री० [सं०√वी+क्तिन्] १. गति। चाल। २. चमक। दीप्ति। ३. खाने पीने की क्रिया। ४. गर्भ धारण करना। ५. यज्ञ। पुं० [√वी+क्तिच्] घोड़ा।				 | 
			
			
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					वीतिहोत्र					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] १. अग्नि। २. सूर्य। ३. याज्ञिक।				 | 
			
			
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