शब्द का अर्थ
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					वेशंत					 :
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					पुं० [सं०] १. पानी का गड्ढा। २. अग्नि। आग।				 | 
			
			
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					वेश					 :
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					पुं० [सं०√विश् (प्रवेश करना)+घञ्] १. अन्दर जाने या पहुँचने की क्रिया या भाव। प्रवेश। २. प्रवेश का द्वार, मार्ग या साधन। ३. रहने का स्थान, घर या मकान। ४. वेश्या का घर। ५. पहनने के कपड़े आदि। पोशाक। ६. कुछ खास तरह के ऐसे कपडे जिन्हें पहनने पर कोई विशिष्ट रूप प्राप्त होता है। भेस। (डिस्गाइज) जैसे—अभिनेता कभी राजा का कभी सेवक का वेश धारण करता है। ७. परिश्रम या सेवा के बदले में मिलनेवाला धन। पारिश्रमिक। ८. खेमा। तंबू।				 | 
			
			
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					वेशक					 :
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					वि० [सं० वेश+कन्] प्रवेश करनेवाला। पुं० घर। मकान।				 | 
			
			
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					वेशकार					 :
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					पुं० [सं०] १. वह जो पुतलियाँ बनाता और उनका श्रृंगार करता हो। २. पहनने के अनेक प्रकार के वस्त्र बनानेवाला। (आउट-फ़िटर)।				 | 
			
			
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					वेशता					 :
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					पुं० [सं० वेश+तल्+टाप्] वेश का धर्म या भाव। वेशत्व।				 | 
			
			
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					वेशत्व					 :
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					पुं० [सं० वेश+त्व]=वेशता।				 | 
			
			
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					वेशधर					 :
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					पुं० [सं०] १. वह व्यक्ति जिसने किसी दूसरे का वेश धारण किया हो। २. वह जिसने किसी को छलने के लिए अपना वे बदल लिया हो। ३. जैनियों का एक सम्प्रदाय।				 | 
			
			
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					वेशन					 :
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					पुं० [सं०] प्रवेश करना।				 | 
			
			
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					वेशनी					 :
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					स्त्री० [सं०√विश् (प्रवेश करना)+ल्युट-अन+ङीष्] ड्योढ़ी। पौरी।				 | 
			
			
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					वेश-युवती					 :
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					स्त्री० [सं० कर्म० स०] वेश्या। रंडी।				 | 
			
			
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					वेशर					 :
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					पुं० [सं० वेश+रक्] खच्चर।				 | 
			
			
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					वेश-रथ्या					 :
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					स्त्री० [सं० कर्म० स०] वेश-वीथी।				 | 
			
			
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					वेश-वधू					 :
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					स्त्री० [सं० कर्म० स०] वेश्या। रंडी।				 | 
			
			
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					वेश-वनिता					 :
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					स्त्री० [सं०] वेश्या। रंडी।				 | 
			
			
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					वेश-वार					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] १. वेश्या का घर। २. धनिया, मिर्च लौंग आदि मसाले।				 | 
			
			
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					वेशवास					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] वेश्या का कोठा। वेश्यालय।				 | 
			
			
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					वेश-वीथी					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] वह गली या बाजार जिसमें वेश्याएँ रहती हों।				 | 
			
			
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					वेश-स्त्री०					 :
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					स्त्री० [सं० कर्म० स०] वेश्या रंडी।				 | 
			
			
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					वेशांत					 :
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					पुं० [सं०√विश् (प्रवेश करना)+अ-अन्त, ष० त० ब० स०] छोटा तालाब।				 | 
			
			
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					वेशिक					 :
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					पुं० [सं० वेश+ठक्-इक] हस्त-शिल्प। दस्तकारी।				 | 
			
			
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					वेशी (शिन्)					 :
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					वि० [सं०√विश् (प्रेवश करना)+णिनि] प्रेवश करनेवाला।				 | 
			
			
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					वेश्म					 :
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					पुं० [सं०√विश्+मनिन्] घर। मकान।				 | 
			
			
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					वेशमस्त्री					 :
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					स्त्री० [सं०] वेश्या। रंडी।				 | 
			
			
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					वेश्मांत					 :
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					पुं० [सं०] अन्तःपुर। जनानाखाना।				 | 
			
			
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					वेश्मा					 :
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					पुं० [सं०] १. वेश्या के रहने का मकान। रंडी का घर। २. वेश्या की वृत्ति। रंडी का पेशा।				 | 
			
			
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					वेश्यांगना					 :
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					स्त्री० [सं० कर्म० स०] ऐसी स्त्री जो वेश्यावृत्ति करती हो।				 | 
			
			
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					वेश्या					 :
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					स्त्री० [सं०] १. ऐसी स्त्री जो धन लेकर लोगों के साथ संभोग कराने का व्यवसाय करती हो। गणिका। २. आज-कल ऐसी स्त्री जो उक्त प्रकार का व्यवसाय करने के सिवाय लोगों को रिझाने के लिए नाचगाने का भी काम करती हो तवायफ।				 | 
			
			
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					वेश्याचार्य					 :
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					पुं० [सं०] रंडियो का दलाल। भडुआ।				 | 
			
			
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					वेश्या-पत्तन					 :
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					पुं० [सं०] वह बाजार जहाँ वेश्याएँ रहती हों। चकला।				 | 
			
			
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					वेश्यालय					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] वेश्या या वेश्याओं के रहने की जगह।				 | 
			
			
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					वेश्या-वृत्ति					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] १. वेश्या बनकर अर्थात् धन लेकर पर-पुरुषों से संभोग कराना। कसब कमाना। २. गुण, शक्ति का वह परम घृणित और निदनीय उपयोग जो केवल स्वार्थ साधन के लिए बहुत बुरी तरह से किया या कराया जाय। (प्रॉस्टीट्यूशन)				 | 
			
			
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