| शब्द का अर्थ | 
					
				| शंकु					 : | पुं० [सं०√शंक+उण्] १. कोई ऐसा धन पदार्थ जिसका नीचेवाला भाग तो गोलाकार हो, मध्य भाग क्रमशः पतला होता गया हो और ऊपरी सिरा बिलकुल नुकीला हो (कोन)। २. कील। मेख। ३. खूंटा या खूँटी। ४. बरछा। भाला। ५. तीर की गाँसी या फल। ६. शंख नाम की बहुत बड़ी संख्या। ७. शिव ८. कामदेव। ९. जहर। विष। १॰. पाप। ११. राक्षस। १२. हंस। १३. एक प्रकार की मछली। १४. दीमकों में बाँबी। वल्मीक। १५. पुरानी चाल का एक प्रकार का बाजा। १६. बारह अंगुल की नाप। १७. उक्त नाप की वह खूंटी जिसकी सहायता से प्राचीन काल में दीपक सूर्य आदि की छाया नापी जाती थी। १८.व नस्पतियों की वह शक्ति जिससे वे जमीन के अन्दर का रस खींचती हैं। १९. पत्तें या पत्ती की नस। २॰. वास्तु शास्त्र में ऐसा खंभा जिसका बीच का भाग मोटा और ऊपर का भाग पतला होता है। २१. जूए का दाँव। बाजी। २२. लिंग। २३. नखी नामक गंध द्रव्य। | 
			
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				| शंकु गणित					 : | पुं० [सं०] ज्यामिति के अंतर्गत गणित की वह क्रिया जिससे शंकु के भिन्न-भिन्न भागों का मान स्थिर किया जाता है। (कोनिक्स) | 
			
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				| शंकुच्छाया					 : | स्त्री० [सं० ष० त०] प्राचीन भारत में १२ अंगुल की एक नाप जिससे दीपक, सूर्य आदि की छाया नापी जाती थी। | 
			
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				| शंकुमती					 : | स्त्री० [सं०] एक प्रकार का वैदिक छन्द जिसके पहले चरण में पाँच और बाकी चरणों छः छः या कुछ कम या अधिक वर्ण होते हैं। | 
			
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