| शब्द का अर्थ | 
					
				| शय्या					 : | स्त्री० [सं० शीक+क्यप्-टाप्] १. खाट। पलंग। २. पलंग पर बिछा हुआ बिछौना। | 
			
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				| शय्यागत					 : | वि० [सं० द्वि० त० स०] शय्या पर पड़ा हुआ। पुं० रोगी। | 
			
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				| शय्या-दान					 : | पुं० [सं० ष० त० स०] मृतक की प्रेत-आत्मा की शांति के उद्देश्य से महापात्र को दिया जानेवाला पलंग तथा बिछावन। | 
			
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				| शय्या-पाल					 : | पुं० [सं० शय्या√पाल् (पालन करना)+अच्] वह जो राजाओं आदि के शयनागार की व्यवस्था तथा रक्षा करता हो। | 
			
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				| शय्या-मूत्र					 : | पुं० [सं० ष० त० स०] बालकों का वह रोग जिसके कारण वे सोये सोये बिस्तर पर पेशाब कर देते हैं। | 
			
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				| शय्या-व्रण					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] रोगी के बहुत दिनों तक शय्या ग्रस्त रहने के कारण उसकी पीठ आदि के छिल जाने से होनेवाला घाव। बिस्तर घाव (बेड-सोर)। | 
			
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