| शब्द का अर्थ | 
					
				| शलंग					 : | पुं० [सं०√शल्+अङच्, ब० स०] १. लोकपाल। २. एक प्रकार का नमक। | 
			
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				| शल					 : | पुं० [सं०√शल् (गमनादि)+अच्] १. ब्रह्मा। २. धृतराष्ट्र का एक पुत्र। ३. कंस का एक अमात्य। ४. ऊँट। ५. भाला। ६. साही का काँटा। ७. दे० ‘शल्यराज’। | 
			
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				| शलक					 : | पुं० [सं० शल+वुन्-अक] १. मकड़ी। २. ताड़ का पेड़। ३. साही का काँटा। | 
			
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				| शलगम					 : | पुं० [फा० शलजम] एक प्रकार का कंद जो चरी के काम आता है तथा जिसकी तरकारी भी बनाई जाती है। | 
			
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				| शलभ					 : | पुं० [सं०√शल् (गमनादि)+अभच्] १. टिड्डी। शरभ। २. फतिंगा। ३. छप्पय के ३१ वें भेद का नाम। इसमें ४॰ गुरु और ७२ लघु कुल ११२ वर्ण या मात्राएँ होती हैं। | 
			
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				| शलवार					 : | स्त्री०=सलवार। | 
			
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				| शलाक-धूर्त्त					 : | पुं० [सं० ष० त० स०] वह जो शलाकाओं आदि की सहायता से पक्षियों को पकड़ता हो। चिड़ीमार। बहेलिया। | 
			
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				| शलाका					 : | स्त्री० [सं० शल+आकन्=टाप्] १. धातु, लकड़ी आदि की लंबी सलाई। सलाखा। सीख। २. आँख में सुरमा लगाने की सलाई। ३. घाव की गहराई आदि नापने की सलाई। ४. जूआ खेलने का पासा। ५. काठ का छोटा टुकड़ा जिसकी सहायता से निर्वाचन में मत लिया जाता था। (बैलट) ६. अस्थि। हड्डी। ७. तिनका। तृण। ८. मैना पक्षी। ९. मदन वृक्ष। १॰. सलाई का पेड़। शल्लकी। ११. बच। १२. पैर की नली की हड्डी। | 
			
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				| शलाकापत्र					 : | पुं० [ष० त० स०] प्राचीन भारत की शलाका के स्थान पर आज-कल प्रयुक्त होनेवाला वह पत्र जिसके द्वारा चुनाव के समय लोग अपना मत प्रकट करते हैं। (बैलट पेपर) | 
			
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				| शलाकापुरुष					 : | पुं० [सं० मध्यम० स०] बौद्धों के ६३ दैवपुरुषों में से एक। | 
			
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				| शलाका मुद्रा					 : | स्त्री० [सं०] सभ्यता के आरम्भिक काल की वे मुद्राएँ या सिक्के जो छोटे-छोटे धातु खंडों के रूप में होते थे और धातुओं के छड़ या शलाकाएँ काटकर बनाये जाते थे (बेन्टवार क्वायन)। विशेष—ऐसे सिक्कों पर प्रायः कोई अंक या चिन्ह नहीं होता था। | 
			
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				| शलाख					 : | स्त्री०=सलाख।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| शलातुर					 : | पुं० [सं० ब० स०] एक प्राचीन जनपद जो पाणिनी का निवास स्थान था। | 
			
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				| शली					 : | स्त्री० [सं०√शल् (हिंसा करना)+अच्-ङीष्] साही (जंतु)। | 
			
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				| शलीता					 : | पुं०=सलीता। | 
			
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				| शलूका					 : | पुं० [फा० सलूकः] आधी बाँह की एक प्रकार की कुरती जो प्रायः स्त्रियाँ पहना करती हैं। | 
			
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				| शल्क					 : | पुं० [फा० शल+क] १. टुकड़ा। खंड। २. कुछ विशिष्ट फलों का ऊपरी कड़ा छिलका। ३. मछली के शरीर का पर छिलका जो कड़ा और चमकीला होता है। (स्केल) | 
			
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				| शल्कल					 : | पुं० [सं०√शल् (संवरण करना आदि)+कलन्]=शल्क। | 
			
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				| शल्कली					 : | पुं० [सं० शल्कल+इनि शल्कलिन्] मछली। | 
			
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				| शल्मलि					 : | पुं० [सं०√शल्+मलच्-इनि, इञ्, वा] शाल्मली वृक्ष। सेमल। | 
			
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				| शल्य					 : | पुं० [सं०√शल्+यत्] १. मद्र देश के एक रजा का नाम जो द्रौपदी के स्वयंबर के समय भीमसेन के साथ मल्लयुद्ध में हार गये थे। २. एक प्रकार का तीर। ३. फोड़ों आदि को चीर-फाड़ के द्वारा की जानेवाली चिकित्सा। ४. हड्डी। ५. आँख में सुरमा लगाने की सलाई। ६. छप्पय के ५६वें भेद का नाम। इसमें १५ गुरु १२२ लघु कुल १३७ वर्ण या १५२ मात्राएँ होती हैं। ७.मैनफल। ८.सफेद खैर। ९.शिंलिग मछली। १॰.लोध। 1१. बेल का पेड़। १२. साही नामक जन्तु। १३. सांग। बरछी। १४. दुर्वचन। १५. पाप। १६. वे पदार्थ जिनसे शरीर में किसी प्रकार की पीड़ा या रोग आदि उत्पन्न होता है। | 
			
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				| शल्यकंठ					 : | पुं० [सं० ब० स०] साही जंतु। | 
			
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				| शल्यक					 : | पुं० [सं०शल्य√कै+क] १. साही नामक जन्तु। २. मैनफल। ३. खादिर। खैर। ४. बेल का पेड़ या फल। ५. लोध। ६. एक प्रकार की मछली। वि० १. शल्य संबंधी। २. शल्य चिकित्सा या शल्य कर्म से संबंध रखनेवाला (सर्जिकल)। | 
			
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				| शल्य-कर्त्तन					 : | पुं० [सं० ब० स०] रामायण के अनुसार एक प्राचीन जनपद। | 
			
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				| शल्य-कर्त्ता					 : | पुं० [सं०√शल्य√कृ+तृच्] शल्यकार। | 
			
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				| शल्यकार					 : | पुं० [सं० शल्य√कृ+अण्] वह जो शल्य चिकित्सा का अच्छा ज्ञाता हो, या शल्य चिकित्सा करता हो (सर्जन)। | 
			
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				| शल्यकारी					 : | स्त्री० [सं०] शल्य अर्थात् चीर-फाड़ करके चिकित्सा करने की क्रिया। (सर्जरी) | 
			
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				| शल्यकी					 : | स्त्री० [सं० शल्यक—ङीष्] साही। | 
			
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				| शल्य-क्रिया					 : | स्त्री० [सं० ष० त० स०] शारीरिक विकार को दूर करने के लिए की जाने वाली चीर-फाड़। (सर्जरी) | 
			
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				| शल्य-चिकित्सक					 : | पुं० [सं०]=शल्यकार। | 
			
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				| शल्य-चिकित्सा					 : | स्त्री० [सं०]=शल्यकारी। | 
			
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				| शल्यज नाड़ी व्रण					 : | पुं० [सं० नारी-व्रण, ष० त० स० शल्यज—नाड़ी व्रण कर्म० स०] नाड़ी में होनेवाला एक प्रकार का व्रण या घाव जो नाड़ी में कंकड़ी या काँटा पहुँच जाने पर होता है। | 
			
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				| शल्य-तंत्र					 : | पुं० [सं० मध्यम० स०] वह विद्या जिसमें शल्य-चिकित्सा के सब अंगों का विवेचन हो। | 
			
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				| शल्य-लोम (मन्)					 : | पुं० [सं० ब० स०] साही। | 
			
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				| शल्य-शालक					 : | पुं० [सं० ष० त० स०]=शल्यकारी। | 
			
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				| शल्य-शास्त्र					 : | पुं० [सं० ष० त०] चिकित्सा शास्त्र का वह अंग जिसमें शरीर में गड़े हुए काँटों आदि के निकालने का विधान रहता है। (सर्जरी) | 
			
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				| शल्या					 : | स्त्री० [सं० शल्य-टाप्] १. मेदा नाम की ओषधि। २. नाग वल्ली। ३. विकंकत। | 
			
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				| शल्यारि					 : | पुं० [सं० ष० त० स०] युधिष्ठिर। | 
			
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				| शल्योद्धार					 : | पुं० [सं० ष० त० स०] शरीर में गड़े हुए काँटे, तीर आदि को निकालने का कार्य। | 
			
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				| शल्योपचार					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] चिकित्सा क्षेत्र में शल्य के द्वारा किया जानेवाला उपचार। चीर-फाड़। (ऑपरेशन) | 
			
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				| शल्योपचारक					 : | पुं०=शल्योपचारी। | 
			
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				| शल्योपचारिक					 : | वि० [सं० ष० त०] शल्योपचार संबंधी। | 
			
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				| शल्योपचारी					 : | वि० [सं० शल्योपचार+इनि] वह जो शल्योपचार द्वारा चिकित्सा करता हो (सर्जिकल आपरेटर)। | 
			
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				| शल्ल					 : | पुं० [सं० शल्√ला (लेना)+क-शल्+लच् वा] १. चमड़ा। २. वृक्ष की छाल। ३. मेढ़क। वि० शिथिल तथा सुन्न। | 
			
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				| शल्लक					 : | पुं० [सं० शल्ल+कन्] १. शोणवृक्ष। सलई। २. साही नामक जन्तु। २. शरीर की खाल या चमड़ा। स्त्री० [तु०] बकवाद। | 
			
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				| शल्लकी					 : | स्त्री० [सं० शल्लक-ङीप्] १. साही। २. सलाई का पेड़। | 
			
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				| शल्व					 : | पुं० [शल+व०] शाल्व नामक एक प्राचीन भूखण्ड। | 
			
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