| शब्द का अर्थ | 
					
				| शाप					 : | पुं० [सं०√शप् (निंदा करना)+घञ्] १. अनिष्ट कामना के उद्देश्य से किया जानेवाला कथन। २. उक्त की सूचक बात या वाक्य। विशेष—प्राचीन भारत में प्रायः कुपित या पीड़ित होने पर ऋषि, मुनि, ब्राह्मण आदि हाथ में जल लेकर किसी दुष्ट या पीड़क के सम्बन्ध में कोई अशुभ कामना प्रकट करते थे। २. धिक्कार। भर्त्सना। ३. ऐसी शपथ जिसके न पालन करने पर कोई अनिष्ट परिणाम कहा जाय। बुरी कसम। | 
			
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				| शापग्रस्त					 : | भू० कृ० [सं० तृ० त०] जिसे किसी ने शाप दिया हो। शापित। | 
			
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				| शाप-ज्वर					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का ज्वर जो माता-पिता, गुरु आदि बड़ों के शाप के कारण होनेवाला कहा गया है। | 
			
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				| शापांबु					 : | पुं० [सं० मध्यम० स०] वह जल जो किसी को शाप देने के समय हाथ में लिया जाता था। | 
			
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				| शापास्त्र					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] शाप रूपी अस्त्र। | 
			
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				| शापित					 : | भू० कृ० [सं० शाप+इतच्] शाप से पीड़ित। | 
			
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				| शापोत्सर्ग					 : | पुं० [सं० ष० त० स०] किसी को शाप देने की क्रिया। | 
			
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				| शापोद्वार					 : | पुं० [सं० ष० त०] शाप या उसके प्रभाव से होनेवाला छुटकारा। शाप-मुक्ति। | 
			
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