| शब्द का अर्थ | 
					
				| शीर					 : | पुं० [सं० शीर से फा०] दूध। पुं० [सं०] अजगर। वि० नुकीला। | 
			
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				| शीरखिस्त					 : | पुं० [फा०] एक प्रकार की यूनानी रेचक ओषधि। | 
			
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				| शीरखोरा					 : | वि० [फा० शीरख्वार] (बालक) जो अभी अपनी माँ का दूध पीता हो। | 
			
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				| शीरगर्म					 : | वि० [फा०] (तरल पदार्थ) जो उबलता हुआ न हो, बल्कि साधारण गर्म हो। उतना ही गरम जितना पीने योग्य दूध होता है। | 
			
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				| शीरमाल					 : | पुं० [फा०] एक प्रकार की मीठी रोटी जिसे पकाते समय दूध का छींटा दिया जाता है। | 
			
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				| शीरा					 : | पुं० [फा० शीरः] गुड़, चीनी, मिसरी आदि के घोल को उबालकर तैयार की हुई चाशनी। | 
			
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				| शीराज					 : | पुं० [फा०] एक प्रसिद्ध ईरानी नगर। | 
			
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				| शीराजा					 : | पुं० [फा० शीराजः] १. वह फीता जो किताबों की सिलाई की छोर पर शोभा और मजबूती के लिए लगाया जाता है। २. इन्तजाम। प्रबन्ध। व्यवस्था। ३. क्रम। सिलसिला। ४. कपड़ों की सिलाई। सीयन। क्रि० वि०—खुलन।—टूटना। | 
			
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				| शीराज़ी					 : | वि० [फा०] शीराज का। पुं० १. शीराज का निवासी। २. एक प्रकार का कबूतर। | 
			
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				| शीरीं					 : | वि० [फा०] १. मधुर। मीठा। २. प्रिय। रुचिकर। | 
			
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				| शीरी					 : | पुं० [सं० शीर+इनि] १. कुश। कुशा। २. मूँज। ३. कलिहारी। लांगली। | 
			
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				| शीरीनी					 : | स्त्री० [फा०] १. मिठास। मधुरिमा। २. मिठाई। मिष्ठान्न। ३. गुरु, देवता, पीर आदि के सामने आदरपूर्वक रखी जानेवाली मिठाई। क्रि० प्र०—चढाना।—बाँटना। | 
			
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				| शीर्ण					 : | भू० कृ० [सं०√शृ (टुकड़े होना)+क्त] [भाव० शीर्णता] १. खंड-खंड। टुकडे़-टुकड़े। २. गिरा हुआ। च्युत। ३. टूटा या फटा हुआ और फलतः बहुत पुराना। ४. कुम्हलाया या मुरझाया हुआ। ५. दुबला-पतला। कृश। पुं० थुनेर नामक गन्ध द्रव्य। | 
			
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				| शीर्णता					 : | स्त्री० [शीर्ण+तल्-टाप्] शीर्ण होने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| शीर्णत्व					 : | पुं० [शीण+त्व]=शीर्णता। | 
			
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				| शीर्णपत्र					 : | पुं० [सं० ब० स०] १. कर्णिकार। कनियारी। २. पठानी लोध। ३. नीम। | 
			
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				| शीर्णपर्द					 : | पुं० [सं० ब० स०] निंब। नीम। | 
			
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				| शीर्णपाद					 : | पुं० [सं० ब० स०] यमराज। | 
			
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				| शीर्णपुष्पी					 : | स्त्री० [सं० शीर्णपुष्प—ङीप्] सौंफ। | 
			
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				| शीर्ति					 : | स्त्री० [सं०√शृ (टुकड़े करना)+क्तिन्] तोडऩे-फोडने की क्रिया। खंडन। | 
			
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				| शीर्य					 : | वि० [सं०शृ (खंड करना)+क्विप्-यत्] १. जो तोड़ा-फोड़ा जा सके। २. भंगुर। नाशवान्। पुं० एक प्रकार की घास। | 
			
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				| शीर्ष					 : | पुं० [शिरस्-शीर्ष, पृषो√शृ+क, सुक् वा०] १. किसी चीज का सबसे ऊपरी तथा उन्नत सिरा। २. सिर। ३. मस्तक। ललाट। ४. काला अगर। ५. एक प्रकार की घास। ६. एक प्राचीन पर्वत। ७. ज्यामिति में वह बिन्दु जिस पर दो ओर से दो तिरछी रेखाएँ आकर मिलती हों (वर्टेक्स) ८. खाते में किसी मद का नाम (हेड)। | 
			
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				| शीर्षक					 : | पुं० [सं० शीर्ष√कै (होना)+क] १. सिर। १. मस्तक। माथा। ३. ऊपरी भाग। चोटी। ४. सिर की हड्डी। ५. टोपी आदि शिरस्त्राण। ६. लेखों आदि के ऊपर दिया जानेवाला उनका ऐसा नाम जिससे उनके विषय का कुछ परिचय मिलता हो (हेडिंग)। ७. राहु ग्रह। | 
			
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				| शीर्ष-कोण					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] ज्यामिति में किसी आकृति का वह कोण जो तल के ठीक ऊपरी भाग में खड़े बल में होता है। (वर्टिकल एंगिल)। | 
			
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				| शीर्ष-नाम					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] लेख्य, विधान आदि का वह पूरा नाम जो उसके आरम्भ में विशेषतः मुख पृष्ठ पर रहता है। | 
			
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				| शीर्ष-पट					 : | पुं० [सं० ष० त० स०] सिर पर लपेटा जानेवाला वस्त्र अर्थात् पगड़ी या साफा। | 
			
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				| शीर्ष-रक्ष					 : | पुं० [शीर्ष√रक्ष् (रक्षा करना)+अण्] शिरस्त्राण। | 
			
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				| शीर्ष-रेखा					 : | स्त्री० [सं० मध्य० स०] १. किसी वर्ण के ऊपरवाली रेखा या लकीर। २. देव-नागरी लिपि में चिन्हों के ऊपर की सीधी बेड़ी रेखा। | 
			
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				| शीर्ष-बिंदु					 : | पुं० [सं० ष० त० स०] १. आँख का मोतिय-बिंद नामक रोग। २. दे० ‘शिरोबिन्दु’। | 
			
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				| शीर्ष-स्थान					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] १. सबसे ऊँचा स्थान। २. सिर। | 
			
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				| शीर्षण्य					 : | पुं० [सं० शीर्ष+यत्-शीर्षन्] १. टोपी। २. सिर के साफ और सुलझे बाल। ३. खाट या चारपाई का सिरहाना। ४. पगड़ी। साफा। | 
			
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				| शीर्षासन					 : | पुं० [सं० शीर्ष+आसन] हठयोग, व्यायाम आदि में एक प्रकार का आसन या मुद्रा जिसमें सिर नीचे और पैर ऊपर करके सीधे खड़ा हुआ जाता है। | 
			
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				| शीर्षोदय					 : | पुं० [सं० ष० त० स०] मिथुन, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, कुंभ, और मीन राशियाँ जिनका उदय शीर्ष की ओर से होना माना गया है। | 
			
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