| शब्द का अर्थ | 
					
				| शोक					 : | पुं० [सं०√शुच् (शोक करना)+घञ्] १. किसी आत्मीय या महान परुष की मृत्यु के कारण घोर दुःख। सोग। (मोनिंग) २. बहुत अधिक दुःख। | 
			
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				| शोकघ्न					 : | पुं० [सं० शोक√हन् (मारना)+टच्, कुत्व] अशोक वृक्ष। | 
			
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				| शोकहर					 : | पुं० [सं० ब० स०] १. एक प्रकार का छंद जिसके प्रत्येक पद में ८, ८, ८, ६ के विश्राम से (अंत में गुरु सहित) तीस मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक पद के दूसरे चौथे और छठे चौकाल में जगण न पड़ें। इसे शुभंगी भी कहते हैं। वि० शोक दूर करनेवाला। | 
			
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				| शोकाकुल					 : | वि० [सं० तृ० त० स०] शोक से विकल। | 
			
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				| शोकारि					 : | पुं० [सं० ष० त० स०] कदम का पेड़। कदंब का वृक्ष। | 
			
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				| शोकार्त					 : | वि० [सं० तृ० त० स०] शोक से विकल। | 
			
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				| शोकी (किन्)					 : | वि० [सं० शोक+इनि] [स्त्री० शोकिनी] जिसे शोक हुआ हो या जो शोक कर रहा हो। स्त्री० रात। | 
			
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