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श्रुति  : स्त्री० [सं०√श्रु+क्तिन्] १. सुनने की क्रिया या भाव। श्रवण करना। सुनना। २. सुनने की इन्द्रिय कान। ३. कही या सुनी हुई बात। ४. आवाज। शब्द। ५. अफवाह। किवदन्ती। जनश्रुति। ६. उक्ति। कथन। ७. भारतीय आर्यों और सनातनी हिन्दुओं की दृष्टि में चारों वेद जिनमें उनके विश्वास के अनुसार सृष्टि के आरंभ से चला आया हुआ सारा अपौरुषेय और पवित्र ज्ञान भरा है (स्मृति से भिन्न) विशेष—परवर्ती काल में उपनिषदों की गिनती भी (श्रुति) में होने लगी। ८. चारों वेद के आधार पर चार की संख्या का सूचक शब्द। ९. भाषा-विज्ञान में वह ध्वनि जो किसी शब्द का उच्चारण करने के समय एक वर्ण या स्वर से दूसरे वर्ण या स्वर तक पहुँचने के समय प्रायः अज्ञात तथा अस्पष्ट रूप से मध्यवाले अवकाश में होती है। १॰. संगीतशास्त्र में, उक्त के आधार पर वह विशिष्ट प्रकार की ध्वनि जो किसी स्वर का उच्चारण करने में आंशिक रूप से सहायक होती है। विशेष—संगीत शास्त्र के आचार्यों का मत है कि नाभि के नीचे की ब्रह्म-ग्रंथि में जो वायु रहती है, उसके स्फुरण से २२ नाडि़यों के द्वारा २२ प्रकार की अलग अलग ध्वनियाँ होती हैं जो पारिभाषिक क्षेत्र में २२ श्रुतियों के नाम से प्रसिद्ध हैं। संगीत के सातों स्वर कई कई श्रुतियों के योग से उत्पन्न होते हैं। यथा-तीव्रा, कुमुद्वती, मुद्रा और वृन्दावती के योग से षड़ज, पद्यावती, रंजनी और रतिका के योग से गांधार, वज्रिका प्रसारिणी प्रीति और मार्जनी के योग से मध्यम, श्रिति, रक्ता, संदीपनी और आलपिनी के योग से पंचम, मदंती, रोहिणी और रम्या के योग से धैवत, तथा उग्रा और शोभिणी के योग से निषाद स्वर बनता है। ११. ज्यामिति में समकोणिक,त्रिभुज के समकोण के सामने की भुजा। १२. नाम। संज्ञा। १३. पांडित्य। विद्वता। १४. विद्या। १५. अत्रि ऋषि की कन्या जो कर्दम ऋषि की पत्नी थी। १६. दे० श्रुत्यानुप्रास।
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श्रुति-कटु  : वि० [सं० सप्त० स०] जो सुनने में बहुत अधिक या बुरा लगता हो। कर्कश।
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श्रुति-धर  : पुं० [सं० ष० त०] [भाव० श्रुतिधरता] १. वह जो एक बार सुनकर ही हर बात याद कर ले। बहुत बड़ा पंडित या विद्वान।
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श्रुति-धरता  : स्त्री० [सं० श्रुतिधर+तल्-टाप्] श्रुतिधर होने का भाव।
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श्रुति-भाल  : पुं० [सं० ब० स०] ब्रह्मा।
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श्रुति-मधुर  : वि० [सं० सप्त० स०] जो सुनने में भला और मीठा लगता हो।
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श्रुति-रंजनी  : स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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श्रुति-सुख  : वि० [सं० सप्त० स०] सुनने में मधुर। सुमधुर।
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श्रुति-हर  : वि० [सं० श्रुति√हृ+अच्] कानो को अपनी ओर आकृष्ट करनेवाला, अर्थात् श्रुति-मधुर।
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