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श्रृंगार  : पुं० [सं० श्रृंग√ऋ (गमन करना आदि)+अण्] १. मूर्ति, शरीर आदि में ऐसी चीजें जोड़ना या लगाना जिनसे उनकी शोभा का सौन्दर्य और भी बढ़ जाय, और वे अधिक आकर्षक तथा प्रिय-दर्शन बन जाएँ। २. लाक्षणिक अर्थ में ऐसा तत्त्व या गुण जिससे किसी की शोभा बढती तथा सौन्दर्य निखरता है। जैसे—लज्जा स्त्री का श्रृंगार है। ३. स्त्रियों की वह क्रिया जो वे सुन्दर कपड़े, गहन आदि लगाकर अपने आप को अधिक आकर्षक तथा सुन्दर बनाने के लिए करती है। सजावट। ४. वे सब पदार्थ जिनके योग से किसी चीज की शोभा या सौन्दर्य बढ़ता हो। प्रसाधन-सामग्री। सजावट का सामान। ५. साहित्य का नौ रसों में से एक रस जिसमें प्रेमी और प्रेमिका के पारस्पिक प्रेमपूर्ण व्यवहारों की चर्चा होती है। विशेष-श्रृंगार का मूल शब्दार्थ ही है-ऐसी स्थिति जिसमें काम वासना की प्राप्ति या वृद्धि हो। मनुष्य की काम-वासना से सम्बद्ध बातों से मिलनेवाला आनन्द या सुख ही इस रस का मूल आधार है, और यह सब रसों में प्रधान माना गया है। इसके दो मुख्य विभाग किए गए है। संयोग और वियोग श्रृंगार। ५. उक्त के आधार पर भक्ति का वह पक्ष जिसमें भक्त अपने इष्टदेव को पति तथा अपने आपको उसकी पत्नी मानकर उसकी आराधना करता है। ६. मैथुन। रति। संभोग। ७. सिंधूर जो स्त्रियों के सौभाग्य का मुख्य चिन्ह है। ८. लौंग। ९. अदरक आदी १॰. चूर्ण। ११. काला अगर। १२. सोना। स्वर्ण।
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श्रृंगारक  : पुं० [सं० श्रृंगार+कन्] १. प्रेम। प्रीति। २. सिंधूर। ३. लौंग। ४. अदरक। आदी। ५. काला अगर। वि० श्रृंगार करनेवाला।
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श्रृंगार-जन्मा (न्मन्)  : पुं० [सं० ब० स०] कामदेव।
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श्रृंगारण  : पुं० [सं०√श्रृंगार√नी (ढोना)+ड] कामवासना से प्रेरित होने पर किया जानेवाला प्रेम प्रदर्शन।
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श्रृंगारना  : स० [हिं० श्रृंगार+हिं० ना (प्रत्यय)] श्रृंगार करना। सजाना। सँवारना।
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श्रृंगारभूषण  : पुं० [सं० ष० त] १. सिंधूर। २. हरताल।
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श्रृंगारयोनि  : पुं० [सं० ष० त०] कामदेव।
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श्रृंगारवेग  : पुं० [सं० ष० त०] वह सुन्दर वेग जिसे धारण करके प्रेमी अपनी प्रेमिका के पास जाता है, अथवा प्रेमिका अपने प्रेमी के पास जाती है।
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श्रृंगारहाट  : स्त्री० [सं० श्रृंगार+हिं० हाट] वह हाट या बाजार जिसमें मुख्यतः वेश्याएँ रहती हों। चकला।
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श्रृंगारिक  : वि० [सं० श्रृंगार+ठक्—इक] १. श्रृंगार संबंधी। श्रृंगार का। जैसे—श्रृंगारिक सामग्री। २. श्रृंगार रस से संबंध रखनेवाला। जैसे—श्रृंगारिक काव्य।
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श्रृंगारिणी  : स्त्री० [सं०] १. श्रृंगार करनेवाली स्त्री० २. वह स्त्री जिसका यथेष्ठ श्रृंगार हुआ हो। ३. संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। ४. एक प्रकार का वृत्त जिसके प्रत्येक पाद में चार रगण (।ऽऽ) होते हैं। उसको ‘स्वाग्विणी’ ‘कामिनी’ ‘मोहन’ ‘लक्षीधरा’ और ‘लक्ष्मीधरा’ भी कहते हैं।
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श्रृंगारित  : भू० कृ० [सं० श्रृंगार+हिं० इया (प्रत्यय)] १. वह जो श्रृंगार करने की कला में निपुण हो। २. देव-मूर्तियों का श्रृंगार करनेवाला व्यक्ति। ३. बहुरूपिया।
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श्रृंगारी  : वि० [सं० श्रृंगारिन्] १. श्रृंगार संबंधी। श्रृंगार का। २. श्रृंगार रस का प्रेमी। ३. किसी के प्रेमपाश में बँधा हुआ। अनुरक्त। पुं० १. वेश-भूषा और सजावट आदि। २. हाथी। ३. चुन्नी या मानिक नामक रत्न। ४. सुपारी।
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श्रृंगार-सामग्री  : स्त्री० [ष० त०] अनेक प्रकार के सुगंधित चूर्ण तेल आदि ऐसे पदार्थ जिनका उपयोग कुछ लोग विशेषतः स्त्रियाँ अपने अंग, बालों शरीर की रंगत आदि का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए करती है। अंगराग (कास्मेटिक्स)।
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